हिंसा सभ्यता पर घाव- राष्ट्रपति
नई दिल्ली | संवाददाता: राष्ट्रपति ने कहा हिंसा की प्रत्येक घटना सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है. स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने कहा यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहला सकते. उन्होंने स्वामी विवेकानंद को याद करते हुये उनके द्वारा कही गई बात को दोहराया, ‘‘विभिन्न प्रकार के पंथों के बीच सहभावना आवश्यक है, यह देखना होगा कि वे साथ खड़े हों या एकसाथ गिरें, एक ऐसी सहभावना जो परस्पर सम्मान न कि अपमान, सद्भावना की अल्प अभिव्यक्ति को बनाए रखने से पैदा हो.’’
इस अवसर पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारत के पहले प्रधानमंत्री को उद्धृत करते हुये कहा, “यह सच है, जैसा कि 69 वर्ष पहले आज ही के दिन पंडित नेहरू ने एक प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि एक राष्ट्र के इतिहास में, ऐसे क्षण आते हैं जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति प्राप्त होती है. परंतु यह अनुभव करना आवश्यक है कि ऐसे क्षण अनायास ही भाग्य की वजह से न आएं. एक राष्ट्र ऐसे क्षण पैदा कर सकता है और पैदा करने के प्रयास करने चाहिए. हमें अपने सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए भाग्य को अपनी मुट्ठी में करना होगा.”
देश के विकास पर उन्होंने कहा, “भारत तभी विकास करेगा, जब समूचा भारत विकास करेगा. पिछड़े लोगों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना होगा. आहत और भटके लोगों को मुख्यधारा में वापस लाना होगा.”
उन्होंने आगे कहा, “मैं इस अवसर पर, हमारे सैन्य बलों, अर्द्धसैन्य और आंतरिक सुरक्षा बलों के उन सदस्यों को विशेष बधाई और धन्यवाद देता हूं जो हमारी मातृभूमि की एकता, अखंडता और सुरक्षा की चौकसी तथा रक्षा इन्हें कायम रखने के लिए अग्रिम सीमाओं पर डटे हुए हैं.”
अंत में राष्ट्रपति ने कहा- अंत में मैं एक बार दोबारा उपनिषद का आह्वान करता हूं जैसा कि मैंने चार वर्ष पूर्व स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संबोधन में किया था. यह भारत माता की तरह सदैव जीवंत रहेगी:
‘‘ईश्वर हमारी रक्षा करे
ईश्वर हमारा पोषण करे
हम मिलकर उत्साह और ऊर्जा के साथ कार्य करें
हमारा अध्ययन श्रेष्ठ हो
हमारे बीच कोई वैमनस्य ना हो
चारों ओर शांति ही शांति हो.’’
जय हिंद!