ईवीएम से छेड़छाड़ संभव
भोपाल | एजेंसी: भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव में मतदान के लिए ईवीएम के इस्तेमाल के खिलाफ मध्य प्रदेश में विरोध के स्वर तेज हो चले हैं. तमाम राजनीतिक दलों से जुड़े नेता इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर ईवीएम के इस्तेमाल पर अविलंब रोक लगाने की मांग कर रहे हैं.
भारत सरकार द्वारा वर्ष 1988 में लोक प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन कर मतपत्र के स्थान पर ईवीएम के इस्तेमाल का प्रावधान किया गया था. तब से आयोग कई लोकसभा व विधानसभा चुनाव ईवीएम के जरिए करा चुका है, अब राज्य में नगरीय व पंचायत चुनाव में भी ईवीएम के इस्तेमाल की तैयारी चल रही है.
राज्य में नगरीय निकाय व पंचायत निकाय ईवीएम से कराए जाने की कोशिशों के बीच ईवीएम के इस्तेमाल के खिलाफ विरोध तेज हो चले हैं. जनता दल युनाईटेड के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद यादव ने सूचना के अधिकार के तहत हासिल की गई जानकारी के आधार पर ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं.
यादव ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता को मताधिकार के जरिए अपने पसंद की सरकार व प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार है. मगर ईवीएम से होने वाले मतदान से उसका यह अधिकार खतरे में पड़ गया है. उनका कहना है कि ईवीएम पर हमारे देश में न तो शोध हुआ है और न ही परीक्षण किया है. इन मशीनों से तकनीकी तौर पर सक्षम लोग छेड़छाड़ भी कर सकते हैं.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव बादल सरोज का कहना है कि उनकी पार्टी काफी पहले ही मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष एक कम्प्यूटर विशेष के जरिए प्रदर्शन कर ईवीएम से छेड़छाड़ को संभव बताया था. उनकी पार्टी मानती है कि आयोग को चुनाव दोनों पद्धतियों से कराना चाहिए. एक मतदाता ईवीएम व मतपत्र दोनों से मतदान करे, तो वास्तविकता का पता चल जाएगा.
बादल ने आगे कहा कि अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में मतदान के दौरान ऐसी शिकायतें आई हैं कि मतदाता बटन कोई और दबाता था और लाईट कमल निशान के सामने जलती थी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक महेंद्र सिंह कालूखेडा ने विधानसभा में चर्चा के दौरान विभिन्न देशों के प्रतिवेदनों का जिक्र कर विधानसभा व लोकसभा चुनाव में ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक की मांग की. उनका कहना है कि राज्य में सरकार नगरीय व पंचायत चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल करने जा रही है, यह ठीक नहीं है. लिहाजा चुनाव में मतपत्रों के जरिए ही मतदान होना चाहिए. कई देश ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर इसके इस्तेमाल पर पहले ही रोक लगा चुके हैं.
राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों द्वारा ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर केंद्र सरकार द्वारा पूर्व में लिए फैसले को ही कटघरे में खड़ा कर दिया, अब देखना है कि इस मांग को चुनाव आयोग और सरकारें किस तरह लेती हैं.