अपराध के राजनीतिकरण के दौर से गुजरता समाज
अनिल चमड़िया
पंजाब नेशनल बैंक में फर्जीवाड़े के विवरणों पर गौर करने के बजाय इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि इन घोटालों को लेकर राजनीतिक स्तर पर किस तरह की प्रतिक्रियाएं आती हैं. पंजाब नेशनल बैंक में फर्जीवाड़े में नीरव मोदी का नाम आया और उसे कांग्रेस के प्रवक्ता ने छोटा मोदी बुलाया. तब भाजपा के प्रवक्ता ने नीरव मोदी को छोटा मोदी कहे जाने पर गहरी आपत्ति प्रगट की.
उन्होंने कांग्रेस प्रवक्ता द्वारा दावोस में इस वर्ष जमा हुए भारतीय अमीरों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीरव मोदी के साथ सार्वजनिक ग्रुप फोटो को फिर से सार्वजनिक करने पर भी आपत्ति प्रगट की. भाजपा प्रवक्ता ने यह धमकी दी कि उनके पास भी कांग्रेस के नेताओं के साथ मेहुल चौकसी की तस्वीरे हैं. मेहुल चौकसी भी नीरव मोदी के साथ पंजाब नेशनल बंक के फर्जीवाड़े में शामिल हैं. भाजपा प्रवक्ता की घमकी के बाद ही यह भी सामने आ गया कि नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद एक भव्य कार्यक्रम में अपने सामने बैठे मेहुल चौकसी की तारीफ की थी.
भारतीय राजनीति में यह बात बिल्कुल बेमानी हो चुकी है कि किस घोटालेबाज का किस राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक नेताओं के साथ संबंध हैं. जब भी कोई घोटाला सामने आ रहा है तो ये एक राजनीतिक शैली बन गई है कि उस घोटालेबाज के रिश्ते राजनीतिक पार्टी के साथ किसी भी तरह जोड़कर दिखाया जाएं. यह घोटाले के खिलाफ एक लोकप्रिय होने वाले अंदाज की खोज होती है. उसे जनसंचार माध्यमों की संस्कृति से प्रभावित करार दिया जा सकता है लेकिन यह एक सतही विश्लेषण होता है. यह पूंजीवादी जन संचार माध्यमों की संस्कृति के प्रभाव के बजाय पूंजीवादी राजनीति की विवशता का परिचायक हैं.
एक तरह की पूंजीवादी पार्टियों के बीच यह समझौता है कि एक दूसरे पर घोटाले की वजहों को टालकर इन घोटालों को मौजूदा राजनीतिक संस्कृति से जुड़ने से रोका जाए. और इसके लिए भाषा का सबसे कारगर इस्तेमाल होता है. इसी तरह की कोशिशों की ही यह कड़ी है कि किसी नये घोटाले का सिरा विपक्ष की पुरानी सरकार के कार्यकाल से जोड़ा जाता है. पंजाब नेशनल बैंक के फर्जीवाड़े में भी भाजपा के प्रवक्ता ने इसे 2011 से चल रहे सिलसिले का भंडाफोड़ बताया तो कांग्रेस ने कहा कि पंजाब नेशनल बैंक के फर्जीवाड़े की जानकारी पिछले वर्ष ही सरकार को मिल गई थी.
एक सरसरी निगाह डाले तो यह पाते हैं कि हमने ऐसी एक ठोस राजनीतिक व्यवस्था विकसित कर ली है, जिसमें राजनीतिक पार्टियों की सक्रियता घोटालों के खिलाफ बनी भी रहें और घोटाले भी अमीरी और अमीरों को पैदा करते रहें.
अंग्रेजों के जाने के बाद से घोटालों को लेकर चर्चा की जा रही है. सत्ता से जुड़ने के बाद नेताओं की संपति में इजाफे के बारे में 1957 में डा. राम मनोहर लोहिया ने कार्यकर्ताओं की एक बैठक में दी थी. उन्होंने तब कहा कि वित मंत्री टी टी कृष्णमाचारी के बेटे या उनका कोई रिश्तेदार कंपनी चलाता है तो उस कंपनी की मिल्कियत कृष्णामाचारी के मंत्री बनने के पहले कितनी थी और मंत्री बनने के बाद कितनी है, इसकी अहमियत इस रूप में ज्यादा है कि हिन्दुस्तान किस तरफ जा रहा है. डा. लोहिया ने बताया था कि कृष्णामाचारी की एक कंपनी मुश्किल से बीस या तीस लाख की रही होगी और अब वह करोड़ों रूपय़े की हो गई हैं. घोटालों के जांच करने के तौर तरीकों में हर घोटाले के बाद परिवर्तन किया जाता है लेकिन किसी जांच की प्रक्रिया और सुधार ने घोटालों को कम नहीं होने दिया. नरेन्द्र मोदी की सरकार के बनने के पीछे तो यूपीए की मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए घोटालों के खिलाफ आंदोलन रहे हैं. इस दौरान आंदोलन में शामिल भागवाधारी रामदेव दस हजार करोड़ के मालिक हो गए हैं.
किसी घोटाले में किसी एक के अमीर और बड़े से बड़ा अमीर बनने की एक कहानी सामने आती है तो दूसरी तरफ उसके साथ यह तथ्य भी शामिल होता है कि उस घोटाले ने एक अमीर वर्ग तैयार किया है और उसमें वह राजनीतिक नेता शामिल है जो कि घोटाले की साजिश शुरु करने के वक्त सत्ता में मौजूद था. यह वर्ग भारत के कागजों में अपना पता-ठिकाना दिखाता है लेकिन रहता है अपने किसी सुरक्षित राष्ट्र में. सत्ता अमीर पैदा करने की मशीनरी है.
अस्सी प्रतिशत से ज्यादा राजनेताओं की संपति में सत्ता के प्रभाव से सौ सौ प्रतिशत से भी ज्यादा का इजाफा इस दौर में दिखता है. 73 प्रतिशत संपति एक प्रतिशत लोगों के पास पहुंच गई है और यह पहले यूपीए और इसके बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार के कार्यकाल का कड़वा सच है. तकनीकी रुप से घोटाले में शामिल नहीं होने की चालाकी से बचने का एक प्रशिक्षण होता है लेकिन घोटालों के नतीजे यह है कि एकतरफ अमीरों की संख्या बढ़ी है तो दूसरी तरफ बेतहाशा गरीबी बढ़ी है. एक घोटाला आबादी के एक बड़े हिस्से को गरीब और गरीब को और गरीब करता है.
भारतीय समाज में अमीर बनने का रास्ता उत्पादन की प्रक्रिया में शामिल होने से नहीं बनता है. यहां भ्रष्टाचार और घोटाले से अमीर और अमीरी की संस्कृति विकसित हुई है. ग्लोबल मार्केट में मेड इन इंडिया के रूप में नीरव मोदी की पहचान है तो इसका यह एक उदाहरण है. इसीलिए यह मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा बन गई है. नई आर्थिक व्यवस्था में बैंक घोटालों और भ्रष्टाचार के केन्द्र बने हुए है.
मार्च 2017 में आरबीई के मुताबिक 2016-17 के पहले नौ महीनों में आईसीआईसीआई बैंक से 1 लाख रुपये और ज्यादा की रकम के फर्जी ट्रांजैक्शन पकड़े गये, जबकि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के 429, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के 244 और एचडीएफसी बैंक के 237 फर्जी ट्रांजैक्शन सामने आए. अप्रैल से दिसंबर 2016 के बीच 177.50 अरब रुपये के फर्जीवाड़े के 3,870 मामले दर्ज करवाए गए. भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) बेंगलुरु के अध्ययन में पता चला है कि देश के सरकारी बैंकों को 2012 से 2016 के बीच फर्जीवाड़े से कुल 227.43 अरब रुपये का चूना लग चुका है.
सूचना-तकनीकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के आंकड़ों का हवाला देते हुए संसद को बताया था कि 1 जनवरी से 21 दिसंबर 2017 तक 179 करोड़ रुपये के बैंक फर्जीवाड़े के 25,800 से ज्यादा मामले सामने आए. इन फर्जीवाड़ों को क्रेडिट/डेबिट कार्ड्स और इंटरनेट बैंकिंग के जरिए अंजाम दिया गया था. लेकिन घोटालों को केवल बैंकों तक ही सीमित रखकर इसके राजनीतिक जुड़ाव को नहीं समझा जा सकता है. घोटालों से एक सामाजिक वर्ग तैयार हुआ है और वह बैंकों से लेकर व्यापम तक दिखता है. यह वर्ग राजनीतिक रुप से इस कदर ताकतवर है कि न्याय प्रणाली भी दिखती है. 2 जी स्कैम यूपीए में बताया गया लेकिन एनडीए के कार्यकाल में आरोपी मुक्त हुए. राजनीति का अपराधीकरण पुराना मुहावरा हैं. अपराध का राजनीतिकरण के दौर से भारतीय समाज गुजर रहा है.