सरकार का स्थान पीपीपी लेगी?
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: देश के आजादी के 68वें सालगिरह पर योजना आयोग के कायाकल्प की घोषणा की गई है. इसकी घोषणा स्वंय देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की है. प्रधानमंत्री मोदी ने योजना आयोग के कायाकल्प का खुलासा करते हुए कहा, “कभी-कभी पुराने घर की रिपेयरिंग में खर्चा ज्यादा होता है लेकिन संतोष नहीं होता है. फिर मन करता है, अच्छा है, एक नया ही घर बना लें और इसलिए बहुत ही कम समय के भीतर योजना आयोग के स्थान पर, एक क्रिएटिव थिंकिंग के साथ राष्ट्र को आगे ले जाने की दिशा, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की दिशा, संसाधनों का ऑप्टिमम युटिलाइजेशन, प्राकृतिक संसाधनों का ऑप्टिमम युटिलाइजेशन, देश की युवा शक्ति के सामर्थ्य का उपयोग, राज्य सरकारों की आगे बढ़ने की इच्छाओं को बल देना, राज्य सरकारों को ताकतवर बनाना, संघीय ढाँचे को ताकतवर बनाना, एक ऐसे नये रंग-रूप के साथ, नये शरीर, नयी आत्मा के साथ, नयी सोच के साथ, नयी दिशा के साथ, नये विश्वास के साथ, एक नये इंस्टीट्यूशन का हम निर्माण करेंगे और बहुत ही जल्द योजना आयोग की जगह पर यह नया इंस्टीट्यूट काम करे, उस दिशा में हम आगे बढ़ने वाले हैं.”
प्रधानमंत्री के लाल किले पर दिये गये भाषण से साफ है कि आने वाले समय में देश के विकास की दिशा पीपीपी होगी. पीपीपी का अर्थ होता है पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप याने की जनता के नाम पर सरकार की निजी घरानों से पार्टनरशिप. सरकारे अपने कार्य-निवेश को निजी घरानों के माध्यम से करवाती है जिसके बदले वे अच्छा-खासा मुनाफा बटोर लिये जाते हैं, जो इससे पहले संभव नहीं था. वास्तव में इस नारे के तहत दुनिया भर में सरकारे अपनी जिम्मेदारी को निजी घरानों को सौंपती जाती है.
इसकी शुरुआत रैगन तथा थैचर के जमाने में हुआ था. उस समय नारा दिया गया था कि सरकारे शासन करने के लिये है व्यापार करने के लिये नहीं. जिसका परिणाम यह हुआ कि व्यापारी भी शासन में हस्तक्षेप करने लगे थे. वास्तव में नई आर्थिक नीति नहीं चाहती थी कि व्यापार में शासन हस्तक्षेप करें तथा इस नारे के तहत वे स्वंय शासन में हस्तक्षेप करने लगे और व्यापार का दायरा सरकार के द्वारा जनता के लिये किये जाने वाले कामों तक फैल गया.
इस प्रकार से पीने के पानी का निजीकरण, सड़कों के टोल टैक्स का निजीकरण, शिक्षा का निजीकरण, स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण होता चला गया. परिणाम स्वरूप जनता की जेब से पैसे निकल कर व्यापारियों के तिजोरी में भरने लगे. इतना ही नहीं इस दौर में प्राकृतिक संशाधनों को जमकर लूटा गया.
जिन कार्यो को सरकारें जनता के सेवा के रूप में करती थी उनमें भी निजी घरानों की घुसपैठ हो गई. मिसाल के तौर पर हमारे देश में पिछले दिनों हुए कोल ब्लाक का आबंटन में भयानक गड़बड़िया सामने आई. जिस पर अभी तक सीबीआई केस दर्ज कर रही है. हैरत की बात है कि इसके बावजूद भी “संसाधनों का ऑप्टिमम युटिलाइजेशन, प्राकृतिक संसाधनों का ऑप्टिमम युटिलाइजेशन” का राग अलापा जा रहा है.
वैसे तो मोंटेक सिंह के योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहते ही उन्होंने पीपीपी की शुरुआत कर दी थी परन्तु घोषित रूप से योजना आयोग के कायाकल्प की बात कभी नहीं की गई. मनमोहन-मोंटेक की जोड़ी ने विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की नीतियों के अनुसार भारत के विकास की दिशा बदलकर रख दी. हालांकि, इसकी शुरुआत नरसिंम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते ही हो गया था. धीरे-धीरे करके योजना आयोग ऐसी नीतिया बनाने लगा जिसमें जनता की सामाजिक सुरक्षा पर सरकार द्वारा खर्च कर की जाने वाली राशियों में कमी की गई तथा उसकी जिम्मेदारी निजी घरानों को दी जाने लगी.
मिसाल के तौर पर हमारे देश की जरूरत है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारे मिलकर स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पादन का 5-6 फीसदी खर्च करें परन्तु इसे 2 फीसदी से आगे बढ़ने नहीं दिया गया. फलस्वरूप चिकित्सा के लिये जनता को बाकी का खर्च अपने जेब से करने के लिये मजबूर होना पड़ा.
मोदी सरकार पर आरोप लगाया जा सकता है उसने योजना आयोग के आवरण के पीछे से जो कुछ किया जा रहा था उसे जनता के सामने करने का फैसला लिया है. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि यदा-कदा कांग्रेसी मोदी सरकार पर आरोप लगाते रहते हैं कि उन्हीं की नीतियों को नये तरह से पेश किया जा रहा है. जी हां, अब तैयार हो जाइये सरकार का काम पीपीपी किया करेगी.