वन विभाग में भ्रष्टाचार पर याचिका
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ वन विभाग में भ्रष्टाचार पर सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल लगाई गई है. वन विभाग में कथित रूप से व्याप्त आर्थिक अनियमितता व कैम्पा राशि के दुरुपयोग, कैम्पा के दिशानिर्देशों के उल्लंघन, जिन मदों पर व्यय नहीं करने का प्रावधान हैं, उन्हीं पर करोड़ों रूपए खर्च किए जाने को लेकर प्रदेश के एक पत्रकार व आरटीआई कार्यकर्ता ने मामला पीआईएल के रूप में दायर किया हैं.
उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका अधिवक्ता सुश्री ज्योति मेंदीरत्ता ने दायर किया हैं. छत्तीसगढ़ सरकार के विरुद्ध इस प्रकरण में केंद्र पोषित परियोजनाओं में अपव्यय और वन अधिकारियों के भ्रस्टाचार को निशाना बनाया गया हैं.
गौरतलब है कि राज्य क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंध एवं योजना प्राधिकरण यानी कैम्पा कोष का गठन सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से हुआ था, जब विभिन्न जनहित याचिकाओं का एक साथ निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2009 में उजड़े व बिगड़े वनों को फिर से हरा-भरा बनाने के लिए क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण का गठन करने केंद्र को कहा. इसका आदेश भारत सरकार के पर्यावरण व वन मंत्रालय के आदेश क्रमांक 5-1/2009-एफसी दिनांक 28 अप्रैल व दिशानिर्देश 2 जुलाई 2009 को जारी हुआ था.
इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी किया था. इस मद में हुये खर्च की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय, सीईसी व सीएजी के द्वारा किया जाना निर्धारित हैं. कैम्पा पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का पूरी तरह से नियंत्रण तय किया गया हैं. देश के 14 राज्यों से लेवी के रूप में राशि लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार जमा राशि का 10 फीसदी हर वर्ष राज्यों के वन विभाग को दिया जाता हैं. छत्तीसगढ़ को वर्ष 2009-10 में 123.21 करोड़ ,2010-11 में 134.11 करोड़,वर्ष 2011 -12 में 99.54 करोड़ व 2012 -13 में 114.38 करोड़ रूपए दिए गए.
याचिकाकर्ता ने जिन मदों पर व्यय करने की मनाही थी, उन मदों पर हुए करोड़ों के अपव्यय को प्रमुख तौर पर उठाया हैं. केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के आईजी फारेस्ट एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी सी डी सिंह ने कैम्पा के गाइडलाइन के संबंध में छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को पत्र की प्रतिलिपि भी भेजी थी. इसमें इस मद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी जिक्र था. गाइडलाइन में निर्माण, रेनोवेशन, कंस्ट्रक्शन, इको टूरिस्म, वाहनों की खरीदी अंतर्राष्ट्रीय यात्रा आदि को प्रतिबंधित बताया गया हैं. बावजूद इसके कैम्पा मद से ये सभी प्रतिबंधित कार्य किये गए.
महालेखाकार की वर्ष 2011 व 2012 -13 की रिपोर्ट में भी कैंपा के खर्चों को लेकर ढेरों आपत्तियां उठाई गई थीं. कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक छत्तीसगढ़ ने बिगड़े वनों के सुधार कार्य के लिए 400 पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रथम दो वर्षों के काम के लिए जिसमें सर्वे, सीमांकन, क्षेत्र तैयारी और पौध रोपण शामिल है, प्रति हेक्टेयर 15100 रुपए व्यय नार्मस निर्धारित किया था. सह निर्धारण अक्टूबर 2010 में हुआ, लेकिन वन मण्डलाधिकारी धमतरी और पूर्वी सरगुजा के पांच कक्षों में 52 हजार 704 रुपए प्रति हेक्टेयर खर्च कर 2.57 करोड़ का अधिक व्यय किया.
इस रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन करते हुए 77.500 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग ईको टूरिज्म केंद्र के विकास में किया गया. कैंपा मार्गदर्शिका और भारत सरकार के निर्देशों के विपरीत वाहनों की खरीद, अधो संरचना निर्माण, और ईको टूरिज्म गतिविधियों पर 12.31 करोड़ रुपए का अनाधिकृत व्यय किया.
इसी तरह कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि जंगल सफारी के अंतर्गत स्वीकृत कार्य करने में 2.40 करोड़ का अनियमित व्यय किया गया. साथ ही मूरम संग्रहण पर 40.20 लाख अधिक खर्च किए. इसी तरह कैम्पा मद के अंतर्गत विशेष प्रजाति रोपण योजना में पिछले वर्षों में रोपण होने के बावजूद क्षेत्र का चयन कर गलत प्रजातियों का चयन किया गया और उच्चतम दर का भुगतान कर 1.07 करोड़ का अनियमित /संदेहास्पद /अधिक व्यय हुआ.
इसके अलावा कैग ने इस बात पर भी आपत्ति दर्शाई थी कि क्षतिपूर्ति वनीकरण की राशि का इस दौरान जमकर दुरुपयोग हुआ. दर के गलत प्रयोग, मार्गदर्शिका/स्वीकृति आदेश की शर्तों का पालन न किए जाने और मांग जारी किए जाने से 89.56 करोड़ की क्षतिपूर्ति वनीकरण की लागत, शुद्ध प्रत्याशा मूल्य आदि का अनारोपण या कम वसूली की गई.