पवन दीवान, ठहाके थे जिनकी पहचान
रायपुर | समाचार डेस्क: पवन दीवान के बारे में कहा जाता था संत नहीं कवि है छत्तीसगढ़ का फकीर है. वे प्रख्यात सरस भागवत कथा के प्रवचनकर्त्ता थे. पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिये कुशलतापूर्वक जन आंदोलन का भी उन्होंने नेतृत्व किया. राजनीति में भी उन्होंने उल्लेखनीय भागीदारी निभाई. किन्तु सच तो यह है कि पहले वे राष्ट्र प्रेमी, मानवतावादी और संवेदनशील कवि थे. छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय संत, कवि और राजनेता पवन दीवान का बुधवार को गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. छत्तीसगढ़ की माटी में रचे-बसे संत पवन दीवान ऐसे बिरले व्यक्ति हैं, जिनके ठहाकों ने ही उनकी अलग पहचान बनाई थी. दीवान का जब भी जिक्र आएगा, उनके सादा जीवन, खुले बदन, मनोहारी मुस्कान और जोरदार ठहाके अनायास ही दृश्यपटल पर अंकित हो जाएंगे.
दीवान के बारे में कहा जाता है कि वह जिस गांव, शहर और क्षेत्र में भागवत कथा कहने जाते थे, वहां हर घर से बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं उनके स्वागत में द्वार पर खड़े रहते थे. उनकी भागवत कथा सुनने गांव-गांव से लोग निकल पड़ते थे. उनकी धाराप्रवाह हिंदी, संस्कृत और छत्तीसगढ़ी भाषा भागवत कथा से लोगों को बांधे रखता था.
छत्तीसगढ़ में शायद ही ऐसा कोई होगा, जो पवन दीवान से परिचित न हो.
पवन दीवान का जन्म एक जनवरी 1945 को राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था. उनके पिता सुखरामधर दीवान शिक्षक थे.
दीवान ने राजधानी रायपुर के शासकीय संस्कृत महाविद्यालय से संस्कृत साहित्य में एम.ए. किया था. उन्होंने हिन्दी में भी स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की थी. वह संस्कृत, हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं के विद्वान थे.
उनके कविता संग्रहों में ‘मेरा हर स्वर उसका पूजन’ और ‘अम्बर का आशीष’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. उनके कविता संग्रह ‘अम्बर का आशीष’ का विमोचन उनके जन्मदिन पर एक जनवरी 2011 को राजिम में हुआ था.
हिन्दी साहित्य में ‘लघु पत्रिका आंदोलन’ के दिनों में वर्ष 1970 के दशक में पवन दीवान ने साइक्लोस्टाइल साहित्यिक पत्रिका ‘अंतरिक्ष’ का भी संपादन और प्रकाशन किया था. वह वर्तमान में ‘माता कौशल्या गौरव अभियान’ से भी जुड़े हुए थे.
1977 से 79 के बीच, वह राजिम से कांग्रेस विधायक बने और तत्कालीन अविभाजित मध्य प्रदेश सरकार में जेल मंत्री रहे. दीवान 1982 से 87 और 91 से 96 तक दो बार लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे.
दीवान की सादगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह स्वयं ही बिजली का बिल भरने लाइन में लग जाया करते थे. अविभाजित मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह भी उनसे सलाह लिया करते थे. पवन दीवान और सुनील दत्त दोनों एक ही समय में सांसद रहे. तब बताया जाता है कि दत्त दीवान से कविताएं सुनते थे.
दीवान की कविताओं में राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रीयता के भाव झंकृत होते हैं :
“तुझमें खेले गौतम गांधी, रामकृष्ण बलराम,
मेरे देश की माटी तुझको, सौ सौ बार प्रणाम.
बसा हमारे प्राणों में है प्राण राष्ट्र का
लिखा हमारे हाथों में निर्माण राष्ट्र का.
पाषाणों में बंधा नहीं भगवान राष्ट्र का
कोई प्राण न सोयेगा निष्प्राण राष्ट्र का”
वहीं दीवान की कविताओं में छत्तीसगढ़ के शोषण के विरुद्ध आक्रोश भी देखा गया :
“छत्तीसगढ़ में सब कुछ है, पर एक कमी स्वाभिमान की.
मुझसे सही नहीं जाती है, ऐसी चुप्पी वर्तमान की.”
छत्तीसगढ़ के शोषकों के प्रति उनके मन में आक्रोश था वे शोषकों को चेतावनी देते हुये कहते हैं :
घोर अंधेरा भाग रहा है, छत्तीसगढ़ अब जाग रहा है,
खौल रहा नदियों का पानी, खेतों में उग रही जवानी.
गूंगे जंगल बोल रहे हैं, पत्थर भी मुंह खोज रहे हैं,
धान कटोरा रखने वाले, अब बंदूकें तोल रहे हैं.
पवन दीवान संत कवि-