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हसदेव की ग्राम सभा में कोयला खदान को ‘ना’

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में कलेक्टर के निर्देश पर आयोजित ग्राम सभा में सर्वसम्मति से कोयला खदान के विरोेध में प्रस्ताव पारित किया गया है. ग्राम सभा के इस विरोध के बाद परसा इस्ट केते बासन की स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है.

ग्राम पंचायत घाटबर्रा में 8 जून को आयोजित ग्राम सभा में ग्रामीणों में कोयला खदान को लेकर भारी विरोध व्यक्त किया गया. इसके बाद सर्वसम्मति से परसा इस्ट केते बासन के भूमि अर्जन, मुआवजा समेत दूसरी प्रक्रियाओं के विरोध में प्रस्ताव पारित किया गया.

सरगुजा के कलेक्टर ने 25 मई को एक आदेश जारी कर 28 मई को ग्रामसभा के लिए निर्देश जारी किए थे. लेकिन 28 मई को अध्यक्ष के चुनाव को लेकर हुए विवाद के बाद यह बैठक टाल दी गई थी. इसके बाद एसडीएम ने इस बैठक को 4 जून को कराने के निर्देश दिए. बाद में 8 जून को ग्रामसभा करने के लिए कहा गया.

8 जून को मौके पर मौजूद 317 लोगों की उपस्थिति में ग्राम सभा की शुरुआत हुई, जिसमें विस्तार से चर्चा के बाद कोयला खदान के विरोध में प्रस्ताव पारित किया गया.

ग्राम सभा को लेकर कलेक्टर का निर्देश
ग्राम सभा को लेकर कलेक्टर का निर्देश

ग्रामसभा में उपस्थित पंचायत घाटबर्रा के लोगों ने कहा कि बाहरी लोगों को बुला कर कोयला खदान के पक्ष में कंपनी माहौल बनाने की कोशिश कर रही है. जिन लोगों की ज़मीन नहीं जा रही है, उन्हें सामने खड़े कर के खदान शुरु करने की बात कही जा रही है.
ग्राम सभा में कोयला खदान का विरोध
ग्राम सभा में कोयला खदान का विरोध

ग्रामीणों में इस बात को लेकर भारी आक्रोश था कि गांव के लोगों को डराने-धमकाने और फर्जी मामलों में फंसाने के लिए कंपनी के लोग साजिश कर रहे हैं.

गौरतलब है कि बाहरी लोगों को कंपनी द्वारा गाड़ियों में भर-भर कर कंपनी के पक्ष में बयान दिये जाने को लेकर स्थानीय विधायक और मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी आपत्ति दर्ज की थी.

ग्राम सभा में कोयला खदान का विरोध
ग्राम सभा में कोयला खदान का विरोध

टीएस सिंहदेव जब सरगुजा पहुंचे तो कंपनी द्वारा गाड़ियों में भर कर अंबिकापुर और उदयपुर से लाए गए लोगों ने उनसे कहा कि कोयला खदान खुलना चाहिए. जब टीएस सिंहदेव ने जानना चाहा कि क्या वे प्रभावित इलाके के हैं तो कोयला खदान समर्थकों में मुर्दनी छा गई.

टीएस सिंहदेव ने कंपनी की ऐसी हरकतों पर भारी नाराजगी जताई थी.

दुनिया भर में विरोध

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में एक के बाद एक कोयला खदानों को मंजूरी दिये जाने के ख़िलाफ दुनिया भर में भारी विरोध किया जा रहा है.

कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने कैंब्रिज में भी इस विषय पर कहा कि राज्य सरकार जो कुछ कर रही है और हसदेव में जिस तरह से खदानों को मंजूरी दी जा रही है, उससे वो सहमत नहीं हैं.

राहुल गांधी ने कहा कि इस पर कुछ सप्ताह के भीतर ही बड़ा परिवर्तन लोग छत्तीसगढ़ में देखेंगे.

परसा कोयला खदान और पीईकेबी खदान में लगभग 4.5 लाख पेड़ कटने का अनुमान है. इसी तरह केते एक्सटेंशन में लगभग 7 लाख पेड़ कटने का अनुमान है.

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार केते एक्सटेंशन के 1760 में से 1742 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल है. ICFRE के अनुसार प्रति हेक्टेयर यहां 400 से अधिक पेड़ हैं. इस तरह यहां लगभग 7 लाख पेड़ के कटने का अनुमान है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किए गये अध्ययन में कहा गया था कि केते एक्सटेंशन का इलाका चरनोई नदी का कैचमेंट है और अगर यहां खनन हुआ तो चरनोई नदी प्रभावित होगी.

2021 में 19 जनवरी को केते एक्सटेंशन कोयला खदान की नीलामी को लेकर राज्य के खनिज सचिव ने केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय के सचिव को पत्र लिख कर यहां की जैव विविधता और लेमरू हाथी अभयारण्य का हवाला देते हुए इनके आवंटन पर रोक लगाने की मांग की.

पत्र में राज्य के खनिज सचिव अंबलगन पी ने लिखा-“हाथियों के संरक्षण, हाथी एवं मानव के बीच संघर्ष में हो रही वृद्वृधि को रोकने, क्षेत्र में अन्य जनधन की हानि को रोकने, पर्यावरणीय संतुलन को बनाये रखने, जल उपलब्धता के साथ प्रचुरता से विद्यमान जैव वानस्पत्ति विविधता को संरक्षित करने के दृष्टिकोण से भविष्य में कोयला खदान आवंटन की प्रक्रिया से प्रस्तावित लेमरू हाथी अभयारण्य क्षेत्र लगभग 3827 वर्ग किलोमीटर को संरक्षित किये जाने हेतु केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक की भूमि को कोयला धारक क्षेत्र अर्जन और विकास अधिनियम 1957 की धारा-4 की उपधारा-1 के अंतर्गत कृत कार्यवाही एवं इस अधिनियम की अन्य धाराओं के तहत प्रस्तावित कार्यवाही पर राज्य शासन आपत्ति दर्ज करता है. अतः प्रकरण में आगामी कार्यवाहियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाये जाने का अनुरोध है.”


पर्यावरण प्रेमी सवाल उठा रहे हैं कि राज्य की भूपेश बघेल की सरकार ने…हाथियों के संरक्षण, हाथी एवं मानव के बीच संघर्ष में हो रही वृद्वृधि को रोकने, क्षेत्र में अन्य जनधन की हानि को रोकने, पर्यावरणीय संतुलन को बनाये रखने, जल उपलब्धता के साथ प्रचुरता से विद्यमान जैव वानस्पत्ति विविधता को संरक्षित करने के दृष्टिकोण..का हवाला दिया था, क्या साल भर के भीतर वो परिस्थितियां ख़त्म हो गई हैं?

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