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अंग्रेजों की लूट के कारण भारत गरीब-ऑक्सफेम

जेके कर
ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि आज दुनिया में जो आर्थिक असमानता है, वह पुरानी उपनिवेशवाद की ही उपज है. ऑक्सफेम की इस रिपोर्ट में भारत में अंग्रेज़ी राज के कई तथ्य सामने लाए गए हैं. ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार जितनी राशि अंग्रेजों ने भारत से लूटी, उससे लंदन को लगभग चार बार 50 पाउंड के नोटों से ढंका जा सकता है.

बता दें कि ऑक्सफैम एक वैश्विक संगठन है, जो गरीबी और अन्याय को खत्म करने के लिए काम करता है. इसका गठन 1995 में स्वतंत्र गैर-सरकारी संगठनों के एक समूह द्वारा किया गया था. ऑक्सफैम स्वच्छ जल, भोजन, जलवायु परिवर्तन, महिला अधिकार और आपदा राहत जैसे मुद्दों पर काम करता है.

उदाहरण के लिये ऑक्सफैम की रिपोर्ट में गणना की गई है कि ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश हुकूमत के शासन काल में 1765 से लेकर 1900 के बीच भारत से US$ 33.8 ट्रिलियन डालर (आज की गणना के अनुसार) भारत से निकाल कर ब्रिटेन ले जाया गया. यह दौलत उस समय ब्रिटेन के 10 फीसदी धन्ना सेठों की तिजोरियों में गया.

यह राशि लंदन शहर के सतह क्षेत्र को लगभग चार बार 50 पाउंड के नोटों से ढंकने के लिए पर्याप्त होगी. उपनिवेशवाद के दौर में खुद ब्रिटेन में भी आर्थिक असमानता रही, 1900 में 1 फीसदी रईसों की कमाई गरीबों से दोगुनी थी.

साल 1750 में भारतीय उपमहाद्वीप की वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में भागीदारी 25 फीसदी थी जो साल 1900 में घटकर करीब 2 फीसदी की हो गई. ब्रिटेन ने एशियाई वस्त्र उद्योग के विरुद्ध कठोर संरक्षणवादी नीतियां अपनाई जिस कारण से यह संभव हो पाया था. ब्रिटेन के 200 सालों के शासनकाल में भारत से US$ 64.82 डालर लूट लिये गये.

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अलावा यदि आप आज के दौर में भारत को देखेंगे तो पायेंगे कि प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंद दोहन किया जा रहा है तथा यह गिने-चुने एकाधिकार प्राप्त धन्ना सेठों की तिजोरियों में जा रहा है. सरकारें भी नीतियां ऐसी बनाती है कि इसका लाभ अमीरों को हो.

मिसाल के तौर पर बिजली, कोयला तथा टेलीकाम क्षेत्र को ही लें यह देश के दो घरानों के हाथ में सिमटकर रह गया है. एकाधिकार घरानों को लिये गये बैंक के कर्ज से राहत दी जा रही है तथा दूसरी तरफ कार्पोरेट टैक्स में कटौती की जा रही है. रोजगार के अवसर सिमट गये हैं तथा सरकारें नौकरी देने से बच रही है. लोगों की क्रयशक्ति घटती जा रही जिससे बाजार में संकट है. इसका असर देश के अर्थव्यस्था पर नकारात्मक रूप से पड़ रहा है. जाहिर है कि देश के अंदर भी असमानता की खाई आने वाले समय में और बढ़ती जायेगी. अर्थात अमीर, और अमीर तथा गरीब, और गरीब होते जायेंगे.

वैश्विक असमानता

दुनिया में आर्थिक असमानता का असर यह है कि आज अफ्रीका के लोगों की औसत आयु यूरोप की तुलना में 15 वर्ष कम है.

ऑक्सफैम के अनुसार साल 2024 में अरबपतियों की संपत्ति 2023 की तुलना में तीन गुना तेजी से बढ़ी है. वैश्विक गरीबों पर बताया गया है कि समग्र गरीबी दर दुनिया में घटी है परन्तु आज भी साल 1990 के समान 3.6 बिलियन लोग विश्व बैंक के गरीबी की रेखा के मानक के अनुसार गरीब हैं.

जाहिर है कि कागजी आंकड़ों तथा जमीनी हकीकत में फर्क बरकरार है. 1 फीसदी अमीरजादो के पास दुनिया की 45 फीसदी संपदा जमा है. इस असमानता को दूर करने के लिये सुझाव दिया गया है कि अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाया जाये.
गौरतलब है कि दुनिया भर में इसके उलट अमीरों को विभिन्न प्रकार के टैक्स एवं कर्ज अदायगी पर छूट दी जा रही है. जाहिर है कि इससे आर्थिक असमानता कम होने के बजाये और बढ़ेगी.

इस रिपोर्ट के अनुसार चौंकाने वाली बात यह है कि कम तथा मध्यम आय वाले देश औसतन अपने बजट का 45 फीसदी कर्ज चुकाने में करते हैं और यह रकम न्यूयार्क तथा लंदन के धन्ना सेठों की तिजोरियों में जाता है. यह रकम शिक्षा और स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च से भी ज्यादा है.

अध्ययन के आधार पर ऑक्सफैम ने कहा है कि अरबपतियों की ज़्यादातर संपत्ति कमाई नहीं जाती बल्कि ली जाती है. यह विचार कि अत्यधिक धन अत्यधिक प्रतिभा के कारण है, गलत है.

आज के अरबपति वर्ग की अत्यधिक संपत्ति काफी हद तक अनर्जित है. एक नये कुलीनतंत्र का उदय, जिसमें विरासत, भाई-भतीजावाद और एकाधिकार, अत्यधिक संपत्ति उत्पन्न करती है. धन केवल अति-धनी लोगों को ही नहीं, बल्कि वैश्विक उत्तर में अति-धनी लोगों को असमान रूप से हस्तांतरित होता है. हमारा युग अरबपति उपनिवेशवाद का युग है.

अति-धनवानों की अधिकांश संपत्ति इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप क्या जानते हैं, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि आप किसे जानते हैं. आप किसकी पैरवी करते हैं, आप किसका मनोरंजन करते हैं, किसके अभियान को वित्तपोषित करते हैं या किस व्यक्ति को रिश्वत देते हैं.

संक्षेप में, बहुत अधिक धन सबसे अमीर लोगों और सरकारों के बीच घनिष्ठ संबंधों का उत्पाद है. वैश्विक अर्थव्यवस्था के अधिक कुटिल, भ्रष्ट और कब्ज़े वाले हिस्सों में मूल रूप से अधिक अरबपति और अति-धनी लोग हैं, और यह कोई संयोग नहीं है. ऑक्सफैम ने गणना की है कि दुनिया के 6 फीसदी अरबपतियों की संपदा क्रोनी पूंजीवाद के कारण है.

वैश्विक दरोगा अमरीका की कमान फिर से डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में आ गई है. इससे उम्मीद की जा रही है कि संरक्षणवादी तथा एकाधिकार वाली नीतियों को निकट भविष्य में और अमलीजामा पहनाया जायेगा. जिसका असर वैश्विक होगा. इस तरह से आर्थिक असमानता और बढ़ने वाली हैं.

आर्थिक असमानता को कम करने के लिये जनता को रोजगार देना होगा तथा जनपक्षधर वाली नीतियां बनानी पड़ेंगी. इसके लिये नये राजनीतिक दर्शन की जरूरत है.

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