अंगों के अभाव में जाती है सैकड़ों जानें
नई दिल्ली | एजेंसी: भारत में हर साल सैंकड़ों बीमार लोग अंगों के अभाव में अपनी जान गवा रहे हैं.
एक कालेज छात्रा नीरा यादव (परिवर्तित नाम) गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थी. उसका जीवन बचाने के लिए गुर्दा प्रत्यारोपरण की तत्काल आवश्यकता थी. उसके अभिभावकों की काफी कोशिशों के बावजूद दिल्ली में कोई गुर्दा दानकर्ता नहीं मिला और पिछले महीने उसकी मौत हो गई.
विशेषज्ञों के अनुसार यह कोई एक मामला नहीं है. सैकड़ों ऐसे लोग जिनको अंग प्रत्यारोपण की जरूरत होती है, समय पर दानकर्ता के न मिलने से मौत के शिकार होते हैं.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) स्थित जयप्रकाश नारायण एपेक्स ट्रामा सेंटर के प्रमुख एम.सी.मिश्रा के अनुसार भारत में अंगदान का परिदृश्य बहुत ही निराशाजनक है. ऐसा सरकार द्वारा 2008 में पारित कानून में संशोधन के बावजूद है.
मिश्रा ने कहा कि पश्चिमी देशों में 70-80 प्रतिशत लोग अंगदान करते हैं जबकि भारत में यह दर करीब 0.01 प्रतिशत ही है.
दिल्ली के वसंत कुंज स्थित नेफ्रोलॉजी विभाग के निदेशक संजीव गुप्ता ने आईएएनएस से कहा, “यहां अंगदान स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. स्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ. लोग अपने प्रियजनों की मौत के बाद भी उनके अंगों को अलग करना नहीं चाहते.”
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में अधिकांश दानकर्ता महिलाएं ही हैं. अधिकांश लोग धार्मिक मान्यताओं और अंधविश्वासों के कारण अंगदान नहीं करते.
मिश्रा ने कहा कि अंगदान में कमी का एक अन्य कारण लोगों द्वारा ब्रेन डेड की स्थिति को स्वीकार नहीं करना है. लोग सोचते हैं कि जब तक दिल धड़कता है व्यक्ति जीवित है.
एम्स के आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्षो में ट्रामा सेंटर में 205 लोग ब्रेन डेड घोषित किए गए. इनमें से केवल 10 संभावित अंगदाता थे.
गुलाटी के अनुसार जीवित अंगदाताओं में महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक है. महिला दानकर्ताओं और पुरुष दानकर्ताओं का अनुपात 80 : 20 का है.