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नए क़ानून पर विपक्ष ने कहा-बुल्डोजर न्याय नहीं चलने देंगे

नई दिल्ली । डेस्क: एक जुलाई से लागू हुए नए आपराधिक कानून को लेकर विपक्ष ने सरकार पर फिर निशाना साधा है. विपक्षी दल का कहना है कि इन क़ानूनों को थोपा जा रहा है.

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर ट्वीट किया, “चुनाव में राजनीतिक और नैतिक झटके के बाद मोदी जी और भाजपा वाले संविधान का आदर करने का ख़ूब दिखावा कर रहें हैं, पर सच तो ये है कि आज से जो तीन क़ानून लागू हो रहे हैं, वो 146 सांसदों को सस्पेंड कर जबरन पारित किए गए. ‘इंडिया’ अब ये “बुल्डोज़र न्याय” संसदीय प्रणाली पर नहीं चलने देगा.”

कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने भी नए आपराधिक क़ानूनों के लागू होने पर आपत्ति दर्ज़ की है. मनीष तिवारी ने इन कानूनों पर फिर से विचार करने की बात कही है.

मनीष तिवारी ने एक्स पर लिखा, “नए आपराधिक क़ानून एक जुलाई से लागू हो गए- जो भारत को एक पुलिस स्टेट में बदलने का आधार रखता है. इन्हें लागू होने से रोका जाना चाहिए और संसद को फिर से इनकी जांच करनी चाहिए.”

समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव ने कहा, “यह कानून बहुत गलत तरीके से संसद में पास किए गए हैं। इन कानूनों पर कोई चर्चा नहीं है… अगर कोई विदेशों में भी अपने अधिकारों को लेकर विरोध करता है तो उन पर भी ये कानून लागू होंगे. कहीं न कहीं यह कानून पूरे देशवासियों पर शिकंजा कसने की तैयारी है.”

कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला ने कहा, “विपक्ष की मांग है कि उसमें कई खंड ऐसे हैं जिन पर पुनर्विचार होना चाहिए लेकिन सरकार मान नहीं रही है और उसे लागू कर रही है.”

नए आपराधिक कानूनों पर आप नेता राघव चड्ढा ने कहा, “पहले इसका एक रिव्यू होना चाहिए…कानून को इतने आनन-फानन में लागू नहीं करना चाहिए. इसके बड़े दूरगामी परिणाम है.”

शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “…जब ये बिल संसदीय स्थायी समिति में लाया गया था तो सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई थी और उसमें क्या कमियां हैं वो सामने रखी थीं लेकिन उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया… 145 विपक्ष के सांसदों को निलंबित कर दिया गया था… हम चाहते थे इस पर चर्चा हो.”

कांग्रेस सांसद शशि थरुर ने कहा, “हमारी चिंता यह थी कि संसद में इस पर पूरी तरह से चर्चा नहीं हुई क्योंकि पूरा विपक्ष निलंबित था. यह ऐसी बड़ी बात है जो हर किसी के जीवन को प्रभावित करती है.”

ग़ौरतलब है कि तीन आपराधिक क़ानून- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता एक जुलाई यानी आज से देश में हो लागू हो गए हैं.

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता,1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह ले चुके हैं.

इस क़ानून से संबंधित विधेयक को पिछले साल संसद के दोनों सदनों में उस समय पारित किया गया था, जब विपक्षी दलों के 140 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था.

इन ऐतिहासिक बदलाव वाले क़ानूनों को महज़ पाँच घंटे की बहस के बाद पारित कर दिया गया था. विपक्ष का कहना था कि सत्ता पक्ष ने साज़िश के साथ ऐसा किया था.

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