योगेंद्र-प्रशांत भूषण की पाती
नई दिल्ली | संवाददाता: योगेन्द्र यादव ने ‘आप’ कार्यकर्ताओं को खुला पत्र लिखा है. इस पत्र के जरिये आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओँ से उनकी पार्टी स्वराज इंडिया में शामिल होने का आव्हान् किया गया है. पत्र में योगेन्द्र यादव के अलावा प्रशांत भूषण, अजित झा तथा आनंद कुमार ने हस्ताक्षर किये हैं. जाहिर है कि ‘आप’ के कार्यकर्ताओं से खुला आव्हान् करने में ये तीनों नेता भी शामिल हैं. पत्र में अरविंद केजरीवाल की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये गये हैं. उन पर आरोप लगाया गया है कि वे भी दूसरी पार्टियों के नेताओं के समान कार्य कर रहें हैं. यहां पर पूरा पत्र प्रस्तुत किया जा रहा है-
प्रिय साथी,
पांच साल पहले हमने एक सफर शुरू किया था. राजनीति से भ्रष्टाचार को मिटाने का, देश की राजनीति को बदलने का सपना लेकर चले थे हम सब. जब हमने ‘आम आदमी पार्टी’ बनायी तो हमें कोई कुर्सी नहीं दिख रही थी. कोई एम.पी. एम.एल.ए. या पार्षद का सपना लेकर नहीं चले थे. न जाने कितने कार्यकर्ताओं ने इस सफर में अपने घर-बार, नौकरी और कारोबार की आहुति दी. करोड़ों भारतवासियों को पहली बार राजनीति में आस जागी. ऐसा लगा कि देश बदल सकता है.
आज इस सफर में जिस मोड़ पर आ पंहुचे हैं, वहां एक सवाल खड़ा है: ये कहाँ आ गए हम?
इस सफर की शुरुआत में हमारे मन में डर था: कहीं पार्टी बनाने से हम बाकी पार्टियों जैसे काम तो नहीं करने लगेंगे? अन्ना ने भी यह सवाल उठाये थे. तब हमने सोचा था कि राजनीति हमें नहीं बदल सकती, हम राजनीति को बदलेंगे. लेकिन हुआ क्या? सभी पार्टियों की तरह कुछ लोग नेता बन गए, एक व्यक्ति की हाई कमांड बन गया. कार्यकर्ता को साइड में कर यहाँ भी टिकटें बंटने लग गयी. पहले चुनाव के बाद ही उन्हीं भ्रष्ट पार्टियों से गठबंधन भी शुरू हो गया.
सब फैसले अरविन्द केजरीवाल ने अपनी मन-मर्जी से लेने शुरू कर दिए. उस समय यह पत्र लिखने वाले हम चारों लोग पार्टी में थे. ये सब गलत तो लग रहा था, लेकिन ये सोच कर साथ दे रहे थे कि नयी-नयी पार्टी है, कुछ कमियां और गलतियाँ हो सकती हैं. सोचते थे कि अरविन्द को आलोचना नहीं मदद की जरुरत है. सोचते थे कि धीरज रखने से सब कुछ सुधर जायेगा.
लेकिन हुआ इसका उल्टा. दिल्ली का दूसरा चुनाव आते-आते केजरीवाल वो सब काम करने लगे जो दूसरी पार्टियां करती हैं. नीति वक्तव्य बनाने की बजाय कहा जब जिस बात का समर्थन करने से फायदा होगा वो कर लेंगे. भ्रष्ट और अपराधी छवि वाले लोगों को टिकट दिये, चोरी-छुपे सांप्रदायिक पोस्टर लगवाये, अपने ही कार्यकर्ताओं को बदनाम करने के लिए जाली एस.एम.एस. चलवाये, दो नंबर का पैसा लेना शुरू कर दिया. जब हमें पता लगा तो हमने इसे रोकने की हर कोशिश की. प्यार से समझाया, फिर चेतावनी दी, फिर पार्टी के अंदर कमिटी में ऐतराज़ किया और अंत में पार्टी के लोकपाल के पास लिखित शिकायत की. लेकिन केजरीवाल पर सत्ता का भूत सवार था. बस उन्हें तो सही-गलत किसी तरह से चुनाव जीतना था. और जब चुनाव जीत लिया तो किसी तरह से हमारे जैसे उन सभी लोगों का मुंह बंद करना था जो सही को सही और गलत को गलत बता सकते थे.
अगर हम चारों अपना मुंह बंद रखते तो जो चाहते वो मिल जाता. लेकिन हम यहाँ कुछ लेने नहीं आये थे. जब हमने सौदा नामंजूर कर दिया तो झूठे प्रचार और गुंडागर्दी का सहारा लेकर हमें पार्टी से निकाला गया. सारे देश ने इस तमाशे को देखा. अफ़सोस इस बात का नहीं था कि हमारे साथ कितना अन्याय हुआ. असली अफ़सोस यह था कि अनगिनत लोगों का इस पार्टी पर और खुद अपने आप पर भरोसा टूट गया.
फिर भी अनेक सच्चे कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी के साथ बने रहे. उन्होंने सोचा कि चलो पुराने साथियों से भले ही अन्याय किया हो, अब पूरा बहुमत मिलने के बाद दिल्ली की जनता के साथ तो न्याय करेंगे. अब दो साल पूरे हो गए हैं. आप अपने दिल पर हाथ रख कर पूछिए, क्या ये सच नहीं है कि:
* एल.जी. ने सरकार के काम में अड़ंगे लगाए लेकिन सरकार ने भी हर बात पर एल.जी. का बहाना बनाया?
* मुख्यमंत्री ने अपना काम करने की बजाय हर रोज प्रधानमंत्री की उल्टी-सीधी आलोचना ही अपना काम बना लिया?
* रामलीला मैदान में हमने जो कुछ कहा था इस सरकार ने उसके उलटे काम किये- चाहे लोकपाल बिल का मामला हो या एम.एल.ए. की सैलरी बढाने का?
* इस सरकार ने कांग्रेस और बीजेपी से भी ज्यादा जनता के पैसे से पार्टी और केजरीवाल का झूठा प्रचार किया? जब सी.ए.जी. ने सवाल पूछे तो उल्टा उसे आँख दिखाई?
* नशामुक्ति का वादा करने के बाद इस सरकार ने 399 नए ठेके खोले?
* ऑटोवालों, बेरोजगारों, गेस्ट टीचर से किया एक भी वादा पूरा नहीं किया?
* माना कि दिल्ली पुलिस आम आदमी पार्टी के एमएलए और मंत्रियों को फंसने के लिए झूठे केस भी बना रही थी, लेकिन सरकार को खुद अपने आधे मंत्रियों को हटाना या खिसकाना क्यों पड़ा?
* क्या इस तरह की झूठी, घमंडी और ड्रामेबाज सरकार के लिए हमने रामलीला मैदान में आंदोलन किया था? जब 49 दिन की सरकार बनी थी तो भ्रष्टाचार एकदम ख़त्म हो गया था. आज आप दिल्ली में किसी से पूछ लीजिये, सब बोलेंगे कि भ्रष्टाचार बढ़ गया है.
* आपको याद होंगे वे दिन जब हम- आप गर्व से टोपी लगाकर घर से निकलते थे. आज जब आप दिल्ली में टोपी लगते हैं तो सड़क पर क्या सुनना पड़ता है?
ये देखकर या वोलंटियर के साथ ‘इस्तेमाल करो और फेंको’ की नीति के कारण पिछले दो साल में न जाने कितने साथी घर बैठ गए. फिर भी आप जैसे कई वोलंटियर पार्टी के साथ बने रहे- लालच से नहीं, बल्कि ये सोचकर कि दिल्ली में पार्टी को खुलकर काम करने का मौका नहीं मिल रहा. किसी और राज्य में जीत जाएँ तो सचमुच अच्छी सरकार दे पाएंगे. केजरीवाल और बाकी नेताओं ने कहा कि पंजाब में जीत पक्की है. बस ये सोचकर देश और विदेश से कितने कार्यकर्ता गोवा और पंजाब में पार्टी के प्रचार में जुट गए. पंजाब में जो कुछ हुआ वो आपसे छुपा नहीं है.
क्या ये सच नहीं है कि कार्यकर्ता को किनारे कर कांग्रेस और अकाली नेताओं और पैसे वालों को टिकट दिए गए?
क्या ये सच नहीं है कि डॉक्टर गाँधी जैसे ईमानदार और सुच्चा सिंह छोटेपुर जैसे कर्मठ नेताओं पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें हटाया गया?
क्या ये सच नहीं है की वोट लेने के लिए केजरीवाल ने पानी विवाद पर दोगले बयान दिए?
क्या से सच नहीं है कि केजरीवाल ने खुद पंजाब का मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रखी थी और इसीलिए पंजाब के किसी नेता को उभरने नहीं दिया?
क्या हम सबने किसी एक व्यक्ति की सत्ता की भूख को पूरा करने के लिए पार्टी बनायी थी? यह देखने के बावजूद आप जैसे कई आदर्शवादी वोलंटियर पार्टी से यह सोचकर जुड़े रहे कि और कुछ करे न करे, कम से कम इस पार्टी को चुनाव लड़ना आता है. इन बड़ी और बेईमान पार्टियों को चुनाव में आम आदमी पार्टी हरा सकती है. अब पंजाब और गोवा का परिणाम आने से इस दावे की कलई भी खुल गयी है. अकालियों और कांग्रेसियों को टिकट देने के बाद अकाली दल से भी कम वोट आये. लोकसभा चुनाव में जितने वोट मिले थे उससे भी घट गए. नयी पार्टी हार जाये तो कोई बात नहीं, लेकिन बाकी पार्टियों वाले कुकर्म भी किये और चुनाव भी हार गए. जिसे कहते हैं, न माया मिली न राम.
आज वक्त है इस सफर को फिर मुड़कर देखने का, आगे की दिशा तय करने का. इसलिए नहीं कि आम आदमी पार्टी चुनाव हार गयी है. बल्कि इसलिए कि यह पार्टी अपने आदर्शों और अपनी दिशा से भटक कर केजरीवाल की प्रधानमंत्री बनने की सनक का वाहन बन गयी है. इतिहास गवाह है कि नेता सत्ता के खेल खेलते हैं और कार्यकर्ता का मुंह काला होता है. इसीलिये हम यह चिठ्ठी आप जैसे उन सभी आदर्शवादी कार्यकर्ताओं को लिख रहे हैं जो चुनावी सफलता से पहले जुड़े थे और जो आज भी किसी तरह आम आदमी पार्टी में बने हुए हैं. चिठ्ठी यह अनुरोध करने के लिए लिख रहे हैं कि इस अनुभव से निराश होकर आप घर बैठ न जाएँ, राजनीति से मुंह न मोड़ लें. हम आपको स्वराज अभियान और स्वराज इंडिया से जुड़ने के लिए आमंत्रित करना चाहते हैं.
आज से पांच साल पहले रामलीला मैदान में हम सबने जो सपना देखा था, स्वराज इंडिया उसी सपने को साकार करने की कोशिश है. आम आदमी पार्टी द्वारा हम कुछ साथियों को असंवैधानिक तरीके से हटाये जाने पर हजारों वोलंटियर ने 14 अप्रेल 2015 को स्वराज अभियान की स्थापना की. तब से अब तक हमने ड्रामेबाजी और तिकड़म परहेज़ करते हुए वो काम किये जिसकी देश को जरूरत थी:
केंद्र सरकार के किसान विरोधी बिल का 10,000 गांवों में संपर्क के जरिये प्रतिरोध किया, संवेदना यात्रा और सर्वोच्च न्यायलय के जरिये सूखे से पीड़ित किसान के लिए रचनात्मक राहत में योगदान किया
तमाम सरकारों और पार्टियों के भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ किया, काले धन के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया
युवा संगठन ‘यूथ फॉर स्वराज’ की स्थापना की, युवाओं के लिए आत्मविकास और नेतृत्व निर्माण के प्रशिक्षण की शुरुआत की, शिक्षा स्वराज अभियान शुरू किया
सांप्रदायिक और जातीय सद्भाव की मुहिम चलायी
देश भर में 130 जिलों में लोकतान्त्रिक चुनाव से संगठन तैयार करने के बाद पिछले साल 2 अक्टूबर को हमने स्वराज इण्डिया नामक पार्टी की स्थापना की है. विधानसभा चुनावों में हमने कहीं उम्मीदवार नहीं उतारे. अब हम अपनी विचारधारा के अनुसार दिल्ली नगर पालिका चुनावों के जरिए चुनावी राजनीती में प्रवेश कर रहे हैं. हम लोगों ने वैकल्पिक राजनीति के जनांदोलन की दृष्टि और दिशा की विरासत को बचाकर आगे बढ़ने की जिम्मेदारी निभाई है. हमने जन आँदोलन और वैकल्पिक राजनीति की आत्मा को ज़िंदा रखा है.
हमारे पास कोई सरकार नहीं है, ओहदे बांटने को नहीं है, जरुरी पैसे भी नहीं हैं. काम हम पहले से ज्यादा करते हैं लेकिन मीडिया की निगाह पहले से काम रहती है. हमारे पास बस वो जूनून है जो रामलीला मैदान में पैदा हुआ था, देश बनाने और देश बचाने का एक सपना है और यह संगठन है जिसे कार्यकर्ता चलाते हैं. अगर आप जैसे सच्चे वोलंटियर और जुड़ेंगे तो हमारा हौसला बढ़ेगा, यह आंदोलन और मजबूत होगा.
आज इस आंदोलन की जरुरत पहले से भी ज्यादा है. आज सत्तारूढ़ पार्टी देश की मूलभूत मान्यताओं पर हमला कर रही है. विपक्ष का दिवालियापन सबके सामने है. आज चुनौती इस पार्टी या उस पार्टी को बचाने की नहीं है. आज देश बचाने की चुनौती है. पांच साल पहले देश की आम जनता में जो आत्मविश्वाश पैदा हुआ था, उसे बचाने की चुनौती है.
आपके जुड़े बिना ये काम हो नहीं पायेगा. हमें आपका इंतज़ार रहेगा.