ओमपुरी का रायपुर प्रेम
बिकाश कुमार शर्मा
ओम पुरी ने कई बार अपने रायपुर प्रेम को जग जाहिर किया था. साल 1981. महान फिल्मकार सत्यजीत रे प्रेमचंद की ‘सद्गति’ नामक कहानी को इसी नाम से फिल्माने हेतु रायपुर आए हुए थे. जातिप्रथा पर तीव्र चोट करने वाली उस फिल्म में ओमपुरी ने मानसिक रूप से शोषित एक दलित की भूमिका निभाई थी, वहीँ उनके विपरीत स्मिता पाटिल ने उस दलित की पत्नी का रोल किया था. ओमपुरी की वह पहली छत्तीसगढ़ (तब मध्यप्रदेश) यात्रा थी, साथ ही उनकी रे से पहली मुलाकात भी.
ओमपुरी को आश्चर्य तब हुआ जब फिल्म में दकियानूसी ब्राह्मण की भूमिका निभाने वाले अव्वल कलाकार मोहन अगासे ने उन्हें मानिक दा (रे को ज्यादातर लोग इस नाम से ही पुकारते थे) से रायपुर स्टेशन पर प्रथम बार मिलवाया था. उस घटना को ओमपुरी अपनी प्रत्येक रायपुर यात्रा के दौरान याद करते हैं. एक मुलाकात में उन्होंने बताया था, “मैं जैसे ही स्टेशन पर उतरा, मोहन अगासे के साथ एक लंबा सा आदमी भीड़ में एकदम अलग दिखाई दे रहा था. मुझे कतई यह अंदाजा नहीं था कि खुद ‘मानिक दा’ मुझको लेने आएंगे.”
इस घटना का जिक्र आज इसलिए कि इस बहाने थोड़ी चर्चा ओमपुरी की उनके छत्तीसगढ़ या कहें रायपुर से लगाव को लेकर की जाए. फिल्म ‘सद्गति’ की समूची शूटिंग महासमुंद जिले के एक गांव में हुई थी, जबकि कहानी की पृष्ठभूमि कहीं-न-कहीं उत्तर भारतीय हिन्दी पट्टी के किसी गाँव की थी.
पिछले सवा साल में ओमपुरी का तीन बार रायपुर आगमन हुआ और हर बार वे एक से ज्यादा दिन तक यहां रहे, सड़कों पर घूमा, लोगों से मेल-मुलाकातें की. यहां उनका मन रम-सा जाता है. यह आप उनके साथ बैठकर बातचीत में महसूस कर सकते हैं. अभी हाल ही में (अक्टूबर 2015) अपने रायपुर आगमन पर देर रात को उन्होंने कुछ परिचितों के साथ शहर के प्रसिद्ध ‘बनारसी पान वाले’ के यहां पान चखा और जीई रोड पर स्थित उस दुकान पर आने वाले ग्राहकों से आत्मीयता से बातचीत भी की.
ओमपुरी सच्चे अर्थों में माटी पुरुष हैं. ‘मेरा जीवन खुली किताब’ की कहावत उनपर फिट बैठती है. उनका जन्म पंजाब में एक गरीब घर में हुआ और उनके बचपन के संघर्ष से लेकर अब तक की शिखर यात्रा के विशाल अनुभवों ने उन्हें लागातार मजबूत बनाया. इसलिए वे आज बढ़ती हुई उम्र में भी बिलकुल तरोताजगी एवं फक्कड़ी से अपनी जिन्दगी का लुत्फ उठा रहे हैं. उनके लिए हर लम्हे को जीना एक नए जीवन से साक्षात्कार है.
कुछ महीनों पूर्व ही एक शाम रायपुर के न्यू सर्किट हाउस में उनकी संगत का लाभ मुझे भी मिला. उन्होंने ग्रुप में शामिल कुछ पत्रकार, लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं से चुटकुले, गाने सुने और खुद भी अपने अनेक अनुभव साझा किए. एक पंजाबी लोक गीत सुनाते वक्त उनकी आँखें भर आई थीं. भारतीय फिल्म जगत में एक बीमारी तेज फैलती है, वो है खुद के अंदर सेलिब्रिटी का भान होना. ओमजी को यह सब कभी उतना आकर्षित नहीं कर पाया. तभी तो, चाहे वो आयोजन में मौजूद कोई युवा द्वारा उनके साथ फोटो खिंचवाने का आग्रह करना हो अथवा कॉफी हाउस के किसी कर्मचारी का उनके हस्ताक्षर मांगना, वे सबको समान रुप से तरजीह देते हैं. उनके छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान उनकी संगत में कुछ देर रहने के बाद यह महसूस करने से कोई नहीं चूक सकता कि क्या यहाँ उनका बचपन बिता है!
जहां अक्टूबर 2015 में ओमपुरी अपनी फिल्म ‘हो गया न दिमाग का दही’ के प्रमोशन के सिलसिले में रायपुर आए थे, वहीं वन्यजीवों पर कार्य करने वाली संस्था ‘कंजरवेशन कोर सोसायटी’ द्वारा आयोजित ‘वाइल्ड लाइफ सेमिनार’ में भी उन्होंने भाग लिया था. छत्तीसगढ़ में बढती खदानों की संख्या एवं घटते वन्य प्राणियों पर उन्होंने एक प्रस्तुतिकरण भी दिया था एवं अपने उद्बोधन में शिकारी प्रवृति वाले लोगों को यह संदेश भी दिया कि ‘बहादुर वो है जो निहत्थे शेर से लड़े, बंदूकों से शिकार करने वाले कायर होते हैं.‘ यह उनकी टीस थी.
वे पत्रकारों द्वारा कुछ बेतुके एवं सामान्य प्रश्नों से भी बचते रहते हैं, जिनमें उनसे उनके रायपुर आकर अच्छा लगने की बात स्वीकारना भी शामिल होता है. एक बार पत्रकार वार्ता में उन्होनें एक रिपोर्टर को यह भी कह दिया था, “पढ़ा लिखा करो, जो तुम पूछ रहे हो, वो गूगल पर भी मिल जाएगा.‘’ उनके कहने के ढंग में कहीं भी अहंकार नहीं था अपितु एक सीनियर द्वारा जूनियर को दी जाने वाली सीख का लहजा था.
गौरतलब है कि दिसंबर महीने में भी वे दूरदर्शन द्वारा बनाई जाने वाले वृत्तचित्र के सिलसिले में रायपुर आए थे तो उन्होंने कुछ करीबियों को कहा था कि अब लगता है छत्तीसगढ़ से उनका नाता कुछ ऐसा जुड़ चुका है कि लगता है यहां एक फ्लेट खरीद लें. ‘सद्गति’ पर लौटें, तो यह उल्लेखनीय है कि ओमपुरी छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान ऋचा मिश्रा (ठाकुर) को याद जरुर करते हैं. अक्टूबर 2014 में आयोजित ‘वन्यप्राणी फिल्म फेस्टिवल’ के दौरान भी उन्होंने इन दिनों भिलाई में निवासरत ऋचा को बुलवाया था और उनसे घंटों बातें की, उनके परिवार का कुशलक्षेम पूछा. ऋचा फिल्म में ओमपुरी की बेटी की भूमिका में थी, आज ओमपुरी उनको अपनी बेटी ही मानते हैं.
(18 जनवरी 2016 को बस्तर इंपैक्ट में प्रकाशित)