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तेल की क़ीमत नहीं होगी कम

नई दिल्ली | डेस्क: भारत में खाद्य तेलों में की बढ़ती क़ीमत को लेकर सरकार से अभी कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. सरकार का कहना है कि दिसंबर महीने तक क़ीमतो में कमी आ सकती है.

बीबीसी के अनुसार खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा कि खाद्य तेल की क़ीमतों में दिसंबर तक नरमी आने की संभावना है.

नई तिलहन फसलों के आने और वैश्विक क़ीमतो में गिरावट के चलते संभावना है कि दिसंबर महीने तक खाद्य तेल की क़ीमते कम हों.

हालांकि उन्होंने इस बात के भी स्पष्ट संकेत दिए कि सरकार आयात शुल्क में कटौती नहीं कर पाएगी क्योंकि उसे अपने संसाधनों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है, जो कोविड महामारी के कारण प्रभावित हुए हैं.

वैश्विक स्तर पर खाद्य तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी और भारत की सबसे प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन के कम घरेलू उत्पादन के कारण बीते वर्ष तेल की खुदरा क़ीमतों में 48% तक की वृद्धि हुई है.

हालांकि सुधांशु पांडेय ने यह भरोसा दिलाया कि खाद्य तेल के दामों में उछाल का दौर अब ख़त्म हो गया है.

पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, “सोयाबीन और पाम तेल की क़ीमतो में दिसंबर में मामूली गिरावट की संभावना है. इसलिए हम कम से कम यह उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि क़ीमतों बढ़ेंगी नहीं. ”

सुधांशु पांडेय ने पत्रकारों से कहा कि घरेलू सोयाबीन की फसल और रबी सीजन की सरसों की फसल के कारण भी क़ीमतें कम होने की उम्मीद है.

उन्होंने कहा, “उम्मीद है कि क़ीमतें नियंत्रण में रहनी चाहिए. गिरावट तो होगी लेकिन बहुत अधिक गिरावट नहीं होगी क्योंकि वैश्विक कमोडिटी दबाव अब भी बना हुआ है.”

अधिकारियों का कहना है कि वैश्विक क़ीमतों में उछाल का एक कारण यह भी है कि चीन बहुत अधिक मात्रा में खाद्य तेल ख़रीद रहा है.

एक दूसरा कारण यह भी है कि खाद्य तेल उत्पादक कई प्रमुख देश जैव ईंधन नीति का पालन कर रहे हैं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे अपने खाद्य तेल की फसल का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इसमें मलेशिया और इंडोनेशिया का पाम तेल और अमेरिका का सोयाबीन का तेल भी शामिल है. ये दोनों तेल भारत की कुल खपत का पचास फ़ीसदी हैं.

भारत वर्तमान में अपनी खाद्य तेल जरूरतों का लगभग 60% आयात करता है, जिससे देश में खुदरा क़ीमतें अंतरराष्ट्रीय दबावों से प्रभावित होती हैं.

हालांकि, सरकारी कर और शुल्क भी खाद्य तेलों के खुदरा मूल्य को प्रभावित करते हैं. दो महीने पहले, केंद्र ने कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क को 15% से घटाकर 10% कर दिया था., लेकिन प्रभावी शुल्क, जिसमें सेस और दूसरे शुल्क शामिल हैं अब भी कच्चे पाम तेल पर 30.25% और रिफाइंड पाम तेल पर 41.25% है.

एक सवाल के जवाब में कि क्या टैक्स कटौती हो सकती है सुधांशु पांडेय ने कहा कि महामारी ने सभी के संसाधनों को प्रभावित किया है और सरकार को भी मुश्किलों को सामना करना पड़ा है. लेकिन फिर भी सरकार जो कुछ भी कर सकती थी उसने किया.

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