छत्तीसगढ़

एनटीपीसी का राखड़ डैम फूटा, किसानों की फसल बर्बाद

कोरबा। संवाददाताः कोरबा स्थित एनटीपीसी का धनरास राखड़ डैम शनिवार रात अचानक फूट गया है, जिससे सैकड़ों टन राखड़ युक्त पानी आसपास के खेतों में फैल गया. इससे करीब 50 एकड़ फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है.

किसान इन खेतों की बुआई कर चुके थे, लेकिन अब ये खेत राख की परत से ढंक गए हैं.

गौरतलब है कि कोरबा के जमनीपाली में एनटीपीसी का 2600 मेगावाट क्षमता का विद्युत संयंत्र संचालित है, जहां प्रतिदिन औसतन 40 हजार टन कोयले की खपत होती है. इससे उत्सर्जित होने वाली राख की शत प्रतिशत उपयोगिता सुनिश्चित नहीं हो पाने कारण पाइप लाइन के माध्यम से राख को राखड़ डैम भेजा जाता है.

किसानों की मानें तो धनरास राखड़ डैम में क्षमता से अधिक राख भर चुकी है और अब डैम की ऊंचाई बढ़ा कर राख डंप की जा रही है. क्षमता से अधिक राख होने की वजह से बारिश के पानी का दबाव तटबंध झेल नहीं पाया और उसका एक हिस्सा शनिवार की रात को फूट गया.

इसकी जानकारी होते ही ग्रामीण मौके पर पहुंचे और घटना को लेकर अपना रोष जताया. प्रभावित किसान मुआवजा और एनटीपीसी प्रबंधन पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

अपनी मांगों को लेकर प्रभावित किसान डैम में ही धरने पर बैठ गए थे, जिसके बाद नायब तहसीलदार जानकी काटले, पटवारी बाबूलाल कोरवा और जितेंद्र कुमार क्षतिग्रस्त डैम स्थल पर पहुंचे और किसानों के नुकसान का जायजा लिया.

प्रशासन ने प्रभावित किसानों को मुआवजा दिलाने और कार्रवाई का आश्वासन दिया, जिसके बाद किसान शांत हुए.

नायब तहसीलदार जानकी काटले ने बताया कि शनिवार रात राखड़ डैम फूटने की जानकारी आई थी. प्रारंभिक तौर पर कई किसानों के खेतों की बुआई का नुकसान हुआ है. प्रभावित किसानों को एनटीपीसी प्रबंधन से उचित मुआवजा दिलाया जाएगा.

उन्होंने कहा कि डैम फूटने के कारणों की जांच की जा रही है. लापरवाही सामने आई तो कार्रवाई की भी जाएगी.

एनटीपीसी प्रबंधन ने भी प्रभावित किसानों को मुआवजा देने की बात कही है.

पहले भी फूट चुका डैम

धनरास राखड़ डैम के फूटने की यह पहली घटना नहीं है.

2021 में भी इसी तरह की घटना हो चुकी है. उस वक्त भी किसानों के खेतों में राख भर गया था, जिसकी वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा था.

किसानों ने बताया कि इसका मुआवजा एनटीपीसी प्रबंधन ने अब तक नहीं दिया है.

किसानों के मुताबिक, राखड़ पानी की वजह से आसपास के खेत दलदल बन गए हैं और कृषि योग्य नहीं रह गए हैं. इसका मुआवजा भी प्रबंधन नहीं दे रहा है.

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