हसदेव में पेड़ कटाई पर छत्तीसगढ़ से जवाब तलब
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के जंगल में परसा कोयला खदान के आवंटन और पेड़ों की कटाई को लेकर भारत सरकार के पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग से संबद्ध नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने छत्तीसगढ़ सरकार से जवाब तलब किया है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी और वाइल्ड लाइफ बोर्ड को इस संबंध में सूचना तक नहीं दी थी. जबकि इस संबंध में दोनों संस्थाओं से अनिवार्य रुप से सहमति लिए जाने का क़ानून है.
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने इस संबंध में छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव को पत्र लिख कर कोयला खनन के लिए ज़मीन दिए जाने और पेड़ों की कटाई के मामले में आवश्यक कार्रवाई कर जवाब देने के लिए कहा है.
एक दिन पहले ही छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इस मामले में राज्य सरकार से पूछा था कि पेड़ों की कटाई को लेकर इतनी हड़बड़ी क्यों की जा रही है. अदालत ने कहा था कि अगर कोयला खनन के लिए आवंटित ज़मीन का अधिग्रहण ही रद्द हो जाए तो क्या वे पेड़ों को पुनर्जीवित कर पाएंगे?
हसदेव अरण्य में ग्रामसभा को हाशिये पर रख कर लगभग 2 लाख पेड़ों की कटाई का काम शुरु हो गया है. छत्तीसगढ़ में पेड़ों की यह कटाई राजस्थान सरकार को आवंटित और अडानी को MDO के द्वारा सौंप दिए गये परसा कोयला खदान के लिए किया जा रहा है.
हसदेव अरण्य में प्रस्तावित परसा कोयला खदान परियोजना को वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि डायवर्सन की अंतिम स्वीकृति राज्य सरकार द्वारा जारी की गई है.
चुनाव से पहले इसी इलाके में आ कर कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने आदिवासियों को भरोसा दिया था कि वे उनके संघर्ष में साथ हैं.
पिछले एक दशक से हसदेव अरण्य के आदिवासी, संविधान की पांचवी अनुसूची, पेसा कानून 1996 और वन अधिकार मान्यता कानून 2006 द्वारा ग्राम सभाओं को प्रदत्त अधिकारों के माध्यम से हसदेव अरण्य जैसे सघन वन क्षेत्र में प्रस्तावित कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध करते आ रहे हैं.
सरगुजा जिले में प्रस्तावित परसा खदान की पर्यावरणीय स्वीकृति, वन स्वीकृति एवं भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाओं में हो रही गड़बड़ियों और नियम विरुद्ध कार्यों पर भी प्रभावित आदिवासी समुदाय ने लगातार अपनी आपत्तियां दर्ज कराई है. 2017 से ही इस परियोजना हेतु स्वीकृति की प्रक्रियाएं शुरू हो गई थी और लगातार ग्रामीणों ने इन प्रक्रियाओं का विरोध किया है.
ग्रामीणों का आरोप है कि इस परियोजना के वन भूमि डायवर्सन की प्रक्रिया में फर्जी ग्राम सभा दस्तावेज प्रस्तुत कर वन स्वीकृति हासिल की गई है. साल्ही, हरिहरपुर और फत्तेपुर जो कि परियोजना प्रभावित गाँव है, इनकी ग्राम सभाओं ने वन भूमि डायवर्सन के प्रस्ताव को कभी भी सहमति नहीं दी.
ग्राम सभा सहमति हासिल करने के लिए कंपनी के दबाव में बार-बार ग्राम सभा का आयोजन कराया गया जिसमे लगातार विरोध में प्रस्ताव पारित हुए. स्वीकृति हासिल करने के लिए कंपनी द्वारा ग्राम सभा सहमति के कूटरचित दस्तावेजों का उपयोग किया गया. फर्जी ग्राम सभा दस्तावेज के माध्यम से हासिल की गई वन स्वीकृति का प्रभावित गाँव लगातार विरोध कर रहे है.