एनआईए ने नहीं की थी झीरम में शामिल नक्सलियों से पूछताछ
रायपुर | संवाददाता: झीरम कांड में क्या एनआईए ने स्थानीय पुलिस के दबाव में जांच की थी? कम से कम एनआईए की जांच रिपोर्ट से तो ऐसा ही लगता है कि एनआईए ने जाने-अनजाने उन्हीं तथ्यों की जांच की, जो राज्य पुलिस ने अपने तरीके से उपलब्ध कराये. और राज्य पुलिस ने उन सबूतों, गवाहों और नक्सलियों को कभी एनआईए को सौंपा ही नहीं, जो उसके पास उपलब्ध थे.
किसी राजनीतिक काफिले पर सबसे बड़े माओवादी हमला, झीरम दरभा कांड के चार साल पूरे हो गये हैं. झीरम के माओवादी हमले की जद में कुल 96 फंसे थे, जिनमें 27 लोग मारे गये थे और 35 लोग घायल हुये थे. मारे गये लोगों में 12 कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेता थे, जबकि 10 पुलिसकर्मी शामिल थे. इसके अलावा 3 ड्राइवर और 2 मज़दूर भी माओवादियों के हमले में मारे गये थे.
जिन लोगों को इस माओवादी हमले में अपनी जान गंवानी पड़ी थी, उनमें तत्कालीन छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश कुमार पटेल, बस्तर के आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा, पूर्व मंत्री विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार, सियाराम सिंह, पवन कोंद्रा, पैतृक खलको, चंदेर राम, प्रहलाद मांझी, तरुण देशमुख, इम्मानुएल केरकेट्टा, चंद्रहास धुर्वा, प्रफुल्ल शुक्ला, अशोक कुमार, दीपक उपाध्याय, सदा सिंह नाग, गणपत नाग, अभिषेक गोलछा, मनोज जोशी, राजेंद्र चंद्राकर, योगेंद्र शर्मा, अल्लहाह नूर, गोपीचंद माधवानी, राजकुमार और भागीरथी शामिल थे.
इस मामले में घटना के तीसरे ही दिन एनआईए ने एफआईआर दर्ज़ कर मामले की जांच शुरु कर दी थी. लेकिन आज भी लाख टके का सवाल है कि क्या एनआईए ने सच में उन तमाम सबूतों और गवाहों को अपनी जांच की जद में लिया था, जिनसे झीरम हमले का राज फाश हो सकता था?
मामले की गंभीरता का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि ऐसे नक्सली झीरम कांड में शामिल थे, उनसे एनआईए ने औपचारिक पूछताछ भी नहीं की. ये नक्सली झीरम कांड के बाद पुलिस की गिरफ़्त में आये थे और बस्तर की पुलिस ने दावा किया था कि इनकी झीरम कांड में महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
लेकिन यह चकित करने वाला विषय है कि ऐसे नक्सलियों को न तो एनआईए को सौंपा गया और ना ही उनके नाम आरोप पत्र में शामिल किये गये. जिन 39 लोगों के नाम एनआईए के आरोप पत्र में हैं, उनमें भी इनका कहीं उल्लेख नहीं है.
उदाहरण के लिये पोडियामी लक्ष्मण और कोसी मरकाम का मामला देखा जा सकता है. पुलिस के अनुसार इंद्रावती एरिया कमेटी की जनमिलिशिया प्लाटून नं 3 के डिप्टी कमांडर रहे पोडियामी लक्ष्मण ने अक्तूबर 2014 में आत्मसमर्पण किया था.
पुलिस ने ऑन रिकार्ड यह दावा किया था कि पोडियामी लक्ष्मण झीरम हमले में शामिल था और इसमें इसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.
इसी तरह 2 दिसंबर 2015 में आत्मसमर्पण करने वाली कोसी मरकाम को भी पुलिस ने झीरम कांड में शामिल बताया था. तत्कालीन पुलिस अधीक्षक आरएन दाश ने दावा किया था कि कोसी मरकाम पर दो लाख रुपये का इनाम था. झीरम के अलावा 11 मार्च 2014 को तोंगपाल के हमले में भी वह शामिल थी, जिसमें पुलिस के 16 जवान मारे गये थे. नक्सलियों के प्लाटून नंबर 26 और दरभा डिवीज़नल कमेटी की सदस्य कोसी मरकाम 2010 में माओवादी संगठन में शामिल हुई थी.
जनवरी 2016 में पुलिस के ही संरक्षण में इन दोनों की शादी हुई लेकिन इन दोनों में से किसी को कभी एनआईए को नहीं सौंपा गया. ना ही एनआईए ने अपनी जांच में इन दोनों नक्सलियों को शामिल किया. एनआईए की 27 मई 2013 की दर्ज़ एफआईआर आरसी 06/2013/एनआईए/डीएलआई के आरोप पत्र और पूरक आरोप पत्र में भी इनका नाम कहीं शामिल नहीं है.