मानवाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ को ठहराया अपराधी
रायपुर | संवाददाता: मानवाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासियों की हत्या पर कड़ी टिप्पणी की है. आयोग ने सुकमा में आठ आदिवासियों की हत्या को लेकर सरकार को फटकार लगाते हुये कहा है कि यह अपराध सुकमा जिले/राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा किया गया है.
आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर आठ सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है. इस पूरे मामले में मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल को ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले की जांच कर के रिपोर्ट मांगी थी.
पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के डॉक्टर लाखन सिंह और सुधा भारद्वाज के अनुसार वर्ष 2007 में ग्राम कोंडासवाली, कामरागुडा और कर्रेपारा में सलवा जुडूम अभियान के दौरान 7 व्यक्तियों की हत्या और करीब 90 घरों की आगज़नी की घटना हुई थी. इन गाँवों की पूरी आबादी को सुरक्षा बलों और एस. पी. ओ. लोगों के द्वारा उस समय बड़ी क्रूरता से खदेड़ा गया था. गाँव वालों ने कुछ वर्ष जंगल में भटकने के बाद वापस आकर अपना गाँव फिर से बसाना शुरू किया.
जुलाई 2013 में तत्कालीन सरपंच सुंडम सन्नू ने सुकमा कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को, 2007 में 7 व्यक्तियों की हत्या और 90 घरों के जलाये जाने की शिकायत की थी. अगस्त 2013 में सुरक्षा बलों ने अपने ऑपरेशन के दौरान इनमे से एक मृतक की विधवा पत्नी, जो कि शिकायतकर्ता थी, को भी मार डाला. इस गंभीर परिस्थिति में छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन ने भी इस शिकायत की पुनरावृति राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष सितम्बर 2013 में की.
सुधा भारद्वाज के अनुसार- 16 जून 2017 को आयोग ने छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल की महासचिव को प्रभावित गाँवों का दौरा कर इस शिकायत के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए निर्देशित किया. इन निर्देशों का पालन करते हुए पी.यू.सी.एल की ओर से सुश्री सोनी सोरी, श्री सुकुल प्रसाद नाग, श्री लिंगाराम कोडोपी, श्री रामदेव बघेल तथा सुश्री जे.के. विद्या (शोधकर्ता), एक दुभाषिये, एवं 2 पत्रकारों का जाँच दल 20-21 अगस्त 2017 को काफी कठिन यात्रा करते हुए दूरस्थ ग्राम पंचायत कोंडासवाली पहुंचा. इस जांच दल की जानकारी जिला सुकमा व दंतेवाडा के पुलिस अधीक्षकों को दी गयी थी. 8 मृतकों के परिवारजनों ने अपने बयान जांच दल के समक्ष दर्ज कराये. कोंडासवाली, कामरागुडा और कर्रेपारा बस्तियों के निवासियों ने घरों के आगज़नी के मामले में अपने बयान दर्ज कराये. पूर्व सरपंच जो मूल शिकायतकर्ता थे, ने बयान दर्ज कराया. पूरे ग्राम पंचायत के 300 से अधिक ग्रामवासियो ने मिलकर आयोग को एक सामूहिक मांग पत्र प्रस्तुत किया. दल की महिला साथियों ने ग्रामीण महिलाओं से भी चर्चा की. विडियो बयानों और अपनी टिप्पणियों और सुझावों के साथ छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल ने जाँच दल की रिपोर्ट 5 सितम्बर 2017 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को सौंपा और उनके वरिष्ट अधिकारियों से चर्चा की.
इस रिपोर्ट को आधार बना कर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य की छत्तीसगढ़ सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाये हैं. आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को जारी नोटिस में लिखा है- आयोग को उपलब्ध तथ्यों से ऐसा लगता है कि वर्ष 2007 में कोंडासावली, कमरागुड़ा और कर्रेपाड़ा गांवों में घरों को जलाने की घटना और सात गांववाले की हत्या हुई थी. कलेक्टर, सुकमा और पुलिस अधीक्षक, सुक्मा के अनुसार, इस घटना के सम्बन्ध में कोई भी मामला इसलिए पंजीकृत नहीं किया गया था क्योंकि किसी ने भी कभी भी इस गाँव के अधिकार क्षेत्र में आने वाले थाना पर कोई रिपोर्ट नहीं लिखवाई थी.
आयोग ने सरकार पर टिप्पणी करते हुये लिखा है- एक जिले में, राजस्व संग्रह और विकास की जिम्मेदारी जिला कलेक्टर की होती है. इसी तरह, कानून और व्यवस्था के रखरखाव की ज़िम्मेदारी, जिले के पुलिस अधीक्षक के कंधों पर है, जिन्हें इस कार्य में पुलिस स्टेशनों और पुलिस पदों में तैनात उनके विभिन्न अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है. अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए, राजस्व विभाग के अधिकारी और विभिन्न विकास संबंधित विभाग जैसे ब्लॉक विकास अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी, जिला समाज कल्याण अधिकारी और उनके अधीनस्थों को नियमित रूप से अपने क्षेत्राधिकार में गांवों का दौरा करना पड़ता है और इन यात्राओं के दौरान उन गांवों में हुई घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त/एकत्र करनी होती है. इसी प्रकार, विभिन्न पुलिस स्टेशनों में तैनात पुलिस अधिकारियों को नियमित रूप से सूचनाओं को एकत्रित करने के लिए, जांच के संबंध में आदि के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के विभिन्न गांवों में जाने की आवश्यकता होती है. इसके अलावा, प्रत्येक जिले में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों का एक नेटवर्क है, स्वास्थ्य उप केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है. इन स्कूल और स्वास्थ्य सम्बंधित कार्यों को सरकारी कर्मचारियों द्वारा ही किया और संभाला जाता है. इस प्रकार, एक जिले में जिला कार्यकर्ताओं का नेटवर्क काफी बड़ा और व्यापक है; खासकर के पुलिस और राजस्व विभाग का इसलिए, यह अविश्वसनीय और अस्वीकार्य है कि उपरोक्त नामित तीन गांवों में इस प्रकार की भयानक घटनाएं हुईं और जिसके शिकायत आखिरकार 2013 में दर्ज की गई, जिसके बाद जगरगुंडा पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई और यह जिला सुकमा के किसी भी गांव / ब्लॉक / पुलिस पद / पुलिस स्टेशन स्तर के कार्यकर्ताओं के ध्यान में न आया हो.
अपनी नोटिस में आयोग ने लिखा है- आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि ये घटनाएं पुलिस, राजस्व और जिला सुकमा के अन्य अधिकारियों के ध्यान में घटना होने के तुरंत बाद आ गईं थी, लेकिन पुलिस और जिला अधिकारियों ने जानबूझकर इन हत्याओं और आगजनी की घटनाओं को नज़रंदाज़ कर दिया. वास्तव में, राज्य और जिला सुकमा अधिकारियों द्वारा सात साल तक इन घटनाओं का संज्ञान नहीं लेना यह बहुत मजबूती से दर्शाता है कि यह अपराध सुकमा जिले/ राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा किया गया है.
आयोग के अनुसार इस तरह लंबी अवधि तक इन घटनाओं का संज्ञान नहीं लेने की जानबूझकरकर की गयी चूक, इस तथ्य की ओर दृढ़ता से इंगित करता है की ये भयावह अपराध जगरगुंडा बेस कैंप के एसपीओ द्वारा किये गए थे, जैसा कि FIR No. 10/2013 के शिकायतकर्ता द्वारा आरोप लगाया गया है. जिस तरीके से पुलिस द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है और जिस तरीके से कोंटा तहसीलदार ने अपनी जांच की है, उस तरीके को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि राज्य विभागों का उद्देश्य पुलिस और प्रशासन दोनों का उद्देश्य इन घटनाओं के बारे में सच्चाई का पता लगाने का नहीं रहा है बल्कि इन अपराधों को छिपने का रहा है. तहसीलदार कोंटा की जांच रिपोर्ट और जांच अधिकारी द्वारा दर्ज बयानों का पढ़ने से पता चलता है कि उनका उद्देश्य सत्य को खोजने के लिए बिल्कुल भी नहीं है और वह केवल इस घटना का एक कवर अप ऑपरेशन कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ राज्य के सरकारी कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले ये कार्य कोंडासावली, कमरागुड़ा और कर्रेपारा गांव के मारे गए निवासियों और जिनके घर/ झोपड़े जला दिए गए थे के मानवाधिकारों का एक बड़ा उल्लंघन है. लेकिन, आयोग अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले, छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार को उपरोक्त वर्णित अनियमितताओं और टिपण्णीयों पर जवाब देने का अवसार प्रदान करता है.
आयोग ने कोंडासावली, कामरागुड़ा और कर्रेपारा के पटवारियों के नाम की जानकारी, इन तीन गांवों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले नायब तहसीलदारों, तहसीलदारों, ब्लाक विकास अधिकारियों, कृषि विकास अधिकारियो, खाद्य अधिकारियों, आशा कर्मचारियों के नामों की जानकारी भी राज्य सरकार से मांगी है. इसके अलावा पुलिस अधिकारियों के बारे में भी जानकारी मांगी गई है.