नंदिनी सुंदर को 1 लाख का मुआवजा दे छत्तीसगढ़
रायपुर | संवाददाता : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हत्या के मामले में फर्जी तरीके से फंसाने के आरोप में छत्तीसगढ़ सरकार को आदेश दिया है कि वह प्रोफेसर नंदिनी सुंदर और प्रोफेसर अर्चना प्रसाद समेत अन्य पीड़ितों को एक-एक लाख रुपये का मुआवजा दे. इन सभी के ख़िलाफ़ बस्तर में हत्या का मामला दर्ज किया गया था. लेकिन जांच के बाद राज्य सरकार ने इन सभी का नाम मामले से हटा लिया था.
नवंबर 2016 में दरभा क्षेत्र के ग्राम नामा में संदिग्ध माओवादियों ने सामनाथ बघेल की हत्या कर दी थी. पुलिस ने इस मामले में सामनाथ बघेल की पत्नी की कथित शिकायत पर तोंगपाल थाने में प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, सीपीएम नेता संजय पराते, विनीत तिवारी, मंजू कवासी और मंगल राम कर्मा के ख़िलाफ़ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था.
तब बस्तर के आईजी शिवराम प्रसाद कल्लुरी ने दावा किया था कि इन सभी के ख़िलाफ़ पुलिस के पास प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कई सबूत हैं.
हालांकि नंदिनी सुंदर और दूसरे लोगों ने पुलिस के दावे का खंडन किया था और आरोप लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट में सलवा जुडूम और उसके बाद ताड़मेटला कांड में पुलिस के ख़िलाफ़ उनकी याचिका के कारण पुलिस और छत्तीसगढ़ सरकार के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई है, इसलिए पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी मुक़दमा दर्ज किया है.
नंदिनी सुंदर व अन्य लोगों का कहना था कि मई 2016 में उक्त 6 सदस्यीय दल बस्तर के हालत का अध्ययन करने के लिए क्षेत्र के अंदरूनी इलाकों में गया था. यह दौरा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सलवा जुडूम को बंद करने के आदेश के बाद किया था. अपने दौरे में वे कांकेर, बीजापुर, दंतेवाडा व सुकमा के कई गांवों में गए थे, इनमें सुकमा जिले का नामा नामक एक गांव भी शामिल था. दौरे से वापस आने के बाद इस दल ने एक रिपोर्ट “दो पाटों के बीच पिसते आदिवासी और गैर-जिम्मेदार राज्य” भी लिखी थी, जिसे कई प्रतिष्ठित अख़बारों व पत्रिकाओं ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था.
अध्ययन दल के इस दौरे से नाराज पुलिस अधिकारियों ने इस दल के सदस्यों के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया था. बस्तर पुलिस ने राज्य सरकार के संरक्षण में नंदिनी सुंदर और अन्य लोगों के पुतले जलाये थे. भाजपा ने सभी सदस्यों को गिरफ्तार करने की मांग की थी, वहीं तत्कालीन आईजी एसआरपी कल्लूरी ने “अबकी बार इन लोगों को पत्थर मार-मार कर सबक सीखाने” की बात कही थी.
अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बस्तर पुलिस द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. नंदिनी सुंदर व अन्य पांच लोगों के खिलाफ बस्तर पुलिस द्वारा हत्या का झूठा मुक़दमा गढ़ने पर पीड़ितों को हुई मानसिक प्रताड़ना के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को एक-एक लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश दिया है. अन्य लोगों में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की प्रो. अर्चना प्रसाद, माकपा के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव संजय पराते, बुद्धिजीवी-साहित्यकार विनीत तिवारी, भाकपा कार्यकर्ता मंजू कोवासी व इस दल में सहयोगी आदिवासी कार्यकर्ता मंगल राम कर्मा शामिल हैं.
मानवाधिकार आयोग ने इस साल फरवरी में कहा था कि “हमारी दृढ़ राय है कि पुलिस द्वारा इन लोगों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज किए जाने के कारण वे निश्चित ही मानसिक रूप से परेशान और प्रताड़ित हुए हैं और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है. छत्तीसगढ़ सरकार को इसका मुआवजा देना चाहिए. अतः मुख्य सचिव के जरिये छत्तीसगढ़ सरकार को हम सिफारिश करते हैं और निर्देश देते हैं कि प्रो. नंदिनी सुंदर, सुश्री अर्चना प्रसाद, श्री विनीत तिवारी, श्री संजय पराते, सुश्री मंजू और श्री मंगला राम कर्मा को, जिनके मानवाधिकारों का छत्तीसगढ़ पुलिस ने बुरी तरह उल्लंघन किया है, को एक-एक लाख रूपये का मुआवजा दिया जाए.”
आयोग ने ऐसा ही आदेश नोटबंदी के दौरान हैदराबाद से प्राध्यापकों और छात्रों के एक अध्ययन दल को गिरफ्तार करने के मामले में भी पारित किया है. इस दल के सदस्यों को 7 माह जेल में रहना पड़ा था. मामला चलने के बाद न्यायलय ने उन्हें बरी कर दिया था.
कल्लूरी के ख़िलाफ़ हो कार्रवाई
मानवाधिकार आयोग के आदेश का स्वागत करते हुये नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, मंजू कोवासी, विनीत तिवारी, संजय पराते और मंगला राम कर्मा ने एक बयान में कहा है कि हम लोगों पर झूठे आरोप पत्र दाखिल करने वाले जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों, ख़ास तौर से तत्कालीन बस्तर आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी के खिलाफ जांच की जायेगी और उन पर मुकदमा चलाया जाएगा.
बयान में कहा गया है कि श्रीमान कल्लूरी के नेतृत्व में चलाये गए सलवा जुडूम अभियान और उनके मातहत काम कर रहे एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारियों) को वर्ष 2011 में ताड़मेटला, तिमापुरम और मोरपल्ली गांवों में आगजनी करने और स्वामी अग्निवेश पर जानलेवा हमले का सीबीआइ द्वारा दोषी पाए जाने के तुरंत बाद ही हम लोगों के खिलाफ ये झूठे आरोप मढ़े गए थे.
बयान में कहा गया है कि यह दुखद है कि वर्ष 2008 की मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों और सुप्रीम कोर्ट के लगातार निर्देशों के बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार ने उन हजारों ग्रामीणों को कोई मुआवजा नहीं दिया है, जिनके घरों को सलवा जुडूम अभियान में जलाया गया है और न ही बलात्कार और हत्याओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर आज तक कोई मुकदमा ही चलाया गया है.
इस बयान में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ के सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामलों को उठाने और आयोग के इस आदेश से हमें अवगत कराने के लिये हम पीयूसीएल के प्रति आभार प्रकट करते हैं. यह बहुत ही निराशाजनक है कि पीयूसीएल की सचिव और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, जिन्होंने छत्तीसगढ़ के ऐसे सभी मामलों को खुद उठाया है, आज झूठे आरोपों में गिरफ्तार हैं. हमें विश्वास है कि सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को, जिन्हें गलत टीके से आरोपित किया गया है, न्याय मिलेगा.