मोदी राज में कोलगेट से बड़ा कोल घोटाला
इसके अलावा एम.डी.ओ. के रास्ते से निजी कंपनियां कई महत्वपूर्ण माइन विकास सम्बंधित जोखिमों की तथा अग्रिम भुगतान की ज़िम्मेदारी को भी राज्य सरकारों पर स्थानांतरित कर सकती है. साथ ही इस रास्ते से निजी कंपनियों को बड़ी खदानों का भी संचालन मिल जाता है जोकि सामान्यतः केवल सरकारी कंपनियों के लिए ही सुरक्षित रखी गई हैं. इस रास्ते से पक्षपात एवं क्रोनी कैपिटलिज्म को भी बढ़ावा मिलता है जिसके कई उदाहरण हमने कोलगेट स्कैम में देखे हैं. ऐसे में यह बिलकुल आश्चर्यजनक नहीं है कि अदानी जैसे बड़े कॉरपोरेट घरानों ने नीलामी प्रक्रिया में अपने संसाधन और ताकत को व्यर्थ करने की जगह एम.डी.ओ. के आसान रास्ते को चुना है. पर सवाल यह खड़ा होता है की क्या यह राष्ट्र एवं जन हित में है ?
निजी कंपनियों की बल्ले-बल्ले
हाल ही में जारी कॉरपोरेट प्रेजेंटेशन में अदानी ने कहा है कि 3 साल में वह 150 मिलियन टन से अधिक का उत्पादन करेगी, जबकि उसके पास अभी 10 मिलियन टन की भी उत्पादन क्षमता नहीं है. सितम्बर 2016 में आयोजित एक कोल मार्केट्स कांफ्रेंस में अदानी माइनिंग विभाग के चीफ कमर्शियल ऑफिसर राजेश अग्रवाल ने इस क्षमता उत्पादन का रास्ता भी साफ़ बताय, जिसमें कहा गया की उन्हें कम से कम 15 नए एम.डी.ओ. कॉन्ट्रैक्ट मिल जाने का पूर्ण विशवास है. जिस कंपनी को नीलामी प्रक्रिया में सफलता ना मिली हो, उसको ऐसा विश्वास होना गंभीर सवाल खड़े करता है.
छत्तीसगढ़ में अदानी के इस विश्वास का आधार भी दिखाई दे रहा है, जहां लगातार नए खदानों के एम.डी.ओ. आवंटन में अदानी को ही सफलता मिलती नज़र आ रही है जैसे परसा ईस्ट केते बासेन, परसा, केते एक्सटेंशन, गारे पेलमा -1, इत्यादि में अदानी का साम्राज्य है.
2015 में भी नीलामी प्रक्रिया के बारे में कई सवाल उठाये गए थे, जिस पर विभिन्न न्यायालयों में कई मामले लंबित हैं. फरवरी और मार्च में दो चरणों में कराए गए कोयला नीलामी को खनिज आवंटन की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण और अच्छे कदम के रूप में देखा गया था. परन्तु, आश्चर्यजनक है कि मार्च 2015 के बाद से सरकार ने नीलामी प्रक्रिया को जैसे दरकिनार ही कर दिया हो और लगभग सभी खदानों को अलॉटमेंट रूट (आवंटन) के ज़रिये सरकारी कम्पनियों को गैर-प्रतिस्पर्धी नीलामी के ही आवंटित कर दिया.
2015 के बाद से कोयला मंत्रालय ने 61 से अधिक कोल ब्लाकों को राज्य सरकार की कंपनियों को आवंटित किया, जबकि इस बीच केवल 3 खदानों की ही नीलामी हुई. इससे ना सिर्फ नीलामी प्रक्रिया की प्रभावशीलता बल्कि सरकार की मंशा पर भी बड़े सवाल खड़े होते हैं. नीलामी प्रक्रिया की विफलता का अंदाजा कोयला खदानों के तीसरे चरण के आवंटन से ही स्पष्ट हो गया था, जब 13 कोयला खदानों की नीलामी को केवल इसलिए रद्द किया गया क्योंकि उनके लिए पर्याप्त कंपनियों ने बोलियां ही नहीं लगाईं. चौथे चरण को तो पूरी ही तरह से निरस्त करना पड़ा क्योंकि उसमें चुने गए सभी 9 कोयला खदानों में पर्याप्त रुचि नहीं दिखाई पड़ी.
इसके बाद तो सरकार ने मानो नीलामी प्रक्रिया को जैसे छोड़ ही दिया और किसी नए खदान की नीलामी की कोशिश ही नहीं की. सरकारी कंपनियों को गैर-प्रतिस्पर्धी आवंटन के ज़रिये 61 कोयला खदान आवंटित की गयी, जिससे लगभग 17 बिलियन टन के कोल रिज़र्व को इन कंपनियों को सौंप दिया गया. इसकी तुलना में नीलामी प्रक्रिया से केवल 2 बिलियन टन से भी कम कोयला रिज़र्व का आवंटन किया गया. इन आंकड़ो से साफ़ है कि कोयले की पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया पूरी तरह से विफल है और उसकी सफलता का सरकार द्वारा गुणगान मात्र ढोंग और छलावा ही है.
छत्तीसगढ़ में एमडीओ
रॉयल्टी भुगतान राज्य सरकार को मिलने वाले खनिज राजस्व का प्रमुख हिस्सा होता है. ऐसे में खनिज आवंटन के लिए अलॉटमेंट रूट को चुनना खनिज राजस्व की क्षमता को बहुत कम कर देता है,जबकि इसका कुछ फायदा उस राज्य सरकार को मिलता है, जिसे यह खदान आवंटित हुई है.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के अनुसार ऐसे देखा जाए तो इस पूरी प्रक्रिया का सबसे बड़ा नुकसान छत्तीसगढ़ राज्य पर ही पड़ा है जहां राज्य में स्थित कोल ब्लाकों का एक बड़ा हिस्सा अन्य राज्यों को आवंटित किया गया है. हालांकि राज्य में स्थित 7 कोयला खदानों को नीलामी के माध्यम से दिया गया हैं , ये सभी खदानें बहुत छोटी थी, जिनकी कुल क्षमता मात्र 12.4 मिलियन टन प्रतिवर्ष है और इनमें कुल माइन रिज़र्व 348 मिलियन टन ही हैं. लेकिन इन खदानों की नीलामी से यह तो सिद्ध हो गया कि छत्तीसगढ़ राज्य में कोयला की रॉयल्टी की दर औसतन 2400 रूपये प्रति टन है. लेकिन इस महत्वपूर्ण खनिज राजस्व की क्षमता के बावजूद, राज्य की अधिकाँश बड़ी खदानों को कौड़ियों के भाव पर विभिन्न राज्य सरकारों को दे दिया गया.
उदाहरण के लिये राजस्थान सरकार की कंपनी को आवंटित तथा अदानी द्वारा संचालित परसा ईस्ट केते बासेन खदान ही अपने आप में पूरी नीलामी हुए 7 खदानों से अधिक क्षमता की है- 15 मिलियन टन का प्रतिवर्ष उत्पादन तथा 450 मिलियन टन के कोयला रिज़र्व. इसी तरह गुजरात राज्य की सरकारी कंपनी को आवंटित गारे पेलमा सेक्टर-1 खदान की वार्षिक उत्पादन क्षमता 21 मिलियन टन है और कुल रिज़र्व 900 मिलियन टन से भी अधिक हैं.