छत्तीसगढ़ के हसदेव में फिर नए कोल ब्लॉकों की नीलामी
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने के साल भर बाद फिर से हसदेव अरण्य के इलाके में नए कोयला खदान की नीलामी की प्रक्रिया शुरु की जा रही है. इसके अलावा भी राज्य के अलग-अलग हिस्सों की कोयला खदानों को इस नीलामी प्रक्रिया में शामिल किया गया है.
वर्ष 2014 कोयला खदानों के बेलगाम आवंटन में पाई गई गड़बड़ियों पर उच्चत्तम न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए 214 कोल ब्लॉक के आवंटन को निरस्त कर दिया था. कोर्ट ने आपने आदेश में लिखा कि “कोल ब्लॉक आवंटन में पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया नही अपनाई गई जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय संपदा का अनुचित वितरण हुआ.”
न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट लिखा था कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों को समझे और ऐसी दूरदर्शी नीतियाँ बनाए, जिससे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग देश की वास्तविक जरूरतों और जनता के हितों के लिए हो.
यह एक ऐतिहासिक अवसर था, जब सम्पूर्ण कोयला खनन क्षेत्र में “जन केन्द्रित” और “पर्यावरणीय संतुलन नीतियों” को अपना कर सुधार की एक प्रक्रिया की शुरुआत की जा सकती थी. परन्तु इस अवसर को केंद्र सरकार ने सिर्फ कार्पोरेट हितों को साधने में बदल दिया.
केंद्र सरकार ने संघीय ढांचे में राज्य सरकारों की भूमिका को नगण्य करते हुए सम्पूर्ण कोयला आवंटन की प्रक्रिया का घनघोर केन्द्रीयकरण कर दिया. नतीजा सामने है कि पिछले 5 वर्षो में कई बार राज्यों ने या तो कोल ब्लॉक के आवंटन का खुलकर विरोध किया या फिर सूची में से कई कोल ब्लॉक को हटाने की मांग की.
वर्ष 2019 में झारखण्ड, महाराष्ट, छत्तीसगढ़ सरकार ने कोल ब्लॉक नीलामी के खिलाफ केंद्र को कई पत्र लिखे. झारखण्ड सरकार तो न्यायालय के दरवाजे तक पहुँच गई.
ऐसा ही मामला पुनः सामने आया है, जब केंद्र सरकार ने खुले बाजार में कोयला बेचने के लिए 10 राज्यों के 98 कोल ब्लाकों की सूची नीलामी के लिए जारी की. कोयला खान (विशेष उपबंध) अधिनियम 2015 के तहत 17 वे ट्रेंच एवं खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) अधिनियम 1957 के 7 वे ट्रेंच के तहत कोल ब्लॉकों की नीलामी में छत्तीसगढ़ के 23 कोल ब्लॉक शामिल हैं.
छत्तीसगढ़ शासन के खनिज संधाधन विभाग ने दिनांक 23 जून 2023 को सचिव कोयला मंत्रालय भारत सरकार को पत्र भेजकर 23 में से 9 कोल ब्लॉक को नीलामी से पृथक कर सूची से हटाने की मांग की है. खनिज साधन विभाग के पत्रानुसार 9 कोल ब्लॉक हसदेव एवं मांड नदियों के केचमेंट में स्थित हैं, जो अति घने वन क्षेत्र है और जैव विविधता से परिपूर्ण हैं. ये सभी कोल ब्लॉक नए अधिसूचित लेमरू हाथी रिजर्व की सीमा के अंदर या सीमा से लगे हुए हैं. इन ब्लॉकों में खनन से न सिर्फ हसदेव और मांड नदियों के जल तंत्र, पर्यावरण का विनाश होगा बल्कि प्रदेश में मानव-हाथी संघर्ष में भी भारी बढ़ोत्तरी होगी.
दरअसल यह पत्र छत्तीसगढ़ विधानसभा के संकल्प के तारतम्य में लिखा गया है.
दिनांक 26 जुलाई 2022 को छत्तीसगढ़ विधानसभा में सर्व सम्मति से अशासकीय संकल्प “हसदेव क्षेत्र में आवंटित सभी कोल ब्लॉक रदद किए जाएँ“ पारित किया गया था. विधानसभा के इस संकल्प को पूर्व ही कोयला मंत्रालय को भेजा जा चुका है, जिसे सत्ता पक्ष और विपक्ष के सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से पारित किया था. बावजूद इसके हसदेव अरण्य और उसकी सीमा से लगे हुए कोल ब्लॉक को नीलामी की सूची में रखा गया है.
देश को कोयले की जरुरत नहीं
हसदेव और मांड केचमेंट के सभी 9 कोल ब्लॉक तारा, करकोमा, काइलर, तेंदूमुड़ी, जिल्गा बरपाली, बरपाली कर्मी टिकरा, बताती कोल्गा नार्थ ईस्ट, बताती कोल्गा ईस्ट और फतेहपुर साऊथ का कुल खनिज क्षेत्र 16810 हेक्टेयर (कुल परियोजना क्षेत्र इससे कहीं अधिक होगा) है, जिससे 34 गाँव सीधे रूप से प्रभावित होंगे.
आईआईएम से संबद्ध प्रोफेसर प्रियांशु गुप्ता का मानना है कि और नए कोल ब्लॉक की नीलामी की आवश्यकता नही है. देश में पहले ही 2400 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन क्षमता की कोयला खदाने आवंटित हो चुकी हैं.
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2030 तक कोयले की पीक डिमांड 1192 -1325 मिलियन टन होगी. वहीं अंतर्राष्ट्रीय उर्जा संस्था (IEA) का अनुमान है कि भारत में वर्ष 2040 तक कोयले की पीक डिमांड 1350 मिलियन टन हो सकती है.
प्रियांशु गुप्ता का कहना है कि वैसे भी भारत ने COP26 में यह वचन दिया है कि वर्ष 2030 तक देश की कुल उर्जा में 50 प्रतिशत उर्जा का योगदान नवीनीकरण उर्जा का होगा. मतलब साफ की को कोयले आधारित बिजली की मांग धीरे धीरे कम होगी. इस स्थिति में हमारे पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्रों में कोल ब्लाकों का आवंटन होना ही नही चाहिये.
आदिवासियों का संघर्ष जारी है
राज्य सरकार द्वारा लिखे गए पत्र में 9 में से एक कोल ब्लॉक “तारा” सूरजपुर जिले में है, जो राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित परसा कोल ब्लॉक की सीमा से लगा हुआ है.
MDO अनुबंध के माध्यम से अदानी कम्पनी को मिले इन कोल ब्लॉक में खनन के खिलाफ पिछले 10 वर्षो से आदिवासी आन्दोलनरत हैं और लगभग 475 दिनों से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति निरस्त करने के लिए केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र भेज चुकी है.
छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य में नए कोयला खदानों के खिलाफ पर्यावरण प्रेमियों ने पहले ही राज्य सरकार को पत्र लिखा है.पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि हसदेव अरण्य को खनन से मुक्त रखने की सिफ़ारिशो के वाबजूद नए कोल ब्लॉक की नीलामी समझ से परे है.
भारतीय वन्य जीव संस्थान जो केंद्र सरकार की ही एक संस्था है, ने हसदेव की जैव विविधता अध्ययन रिपोर्ट में लिखा है कि –“सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में किसी भी कोयला खनन परियोजना को अनुमति नही देनी चाहिए. यदि खनन की अनुमति दी गई तो छत्तीसगढ़ में मानव हाथी संघर्ष की स्थिति इतनी विकराल हो जाएगी कि कभी इसे नियंत्रित नही किया जा सकेगा.”
इसके बाद भी नए कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया बताती है कि कोयला मंत्रालय राज्य सरकारों और पर्यावरण मंत्रालय के साथ कोई विचार विमर्श ही नहीं करता है.
दरअसल सम्पूर्ण कोयला खनन क्षेत्र को कार्पोरेट मुनाफा केन्द्रित करने के परिणामस्वरूप कोल ब्लॉकों के आवंटन में न सिर्फ हड़बड़ी दिखाई दे रही है, बल्कि नीतियों का भी दिवालियापन नजर आ रहा है. ज़ाहिर है, पर्यावरणीय चिंताओं, स्थानीय ग्रामसभाओं और संघीय व्यवस्था में राज्य सरकारों के अधिकारों को नजर अंदाज करके कोयला खनन से आने वाले दिनों कार्पोरेट और स्थानीय समुदायों के बीच टकराव भी बढ़ेंगे.