कितना नेहरू बचेगा?
कनक तिवारी
बीसवीं सदी के भारत पर सबसे ज़्यादा असर नेहरू का रहा है. वे अपने जीवनकाल में उपेक्षित नहीं हुए. रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में जवाहरलाल ‘भारतीय जीवन के ऋतुराज‘ थे. विनोबा ने उन्हें ‘स्थितप्रज्ञ‘ कहा है. एक प्रख्यात विदेशी पत्रकार ने उनकी तुलना शेक्सपियर के असमंजस में डूबते अमर पात्र डेन्मार्क के राजकुमार ‘हैमलेट‘ से की है.
आल्डस हक्सले ने उन्हें चट्टानी राजनीति की छाती पर अपना अस्तित्व जमाने वाला गुलाब का पौधा कहा है. ये अतिशयोक्तियां नहीं हैं. नेहरू के व्यक्तित्व का अणु सूक्ष्म रूप में मूल्यांकन है. कभी जवाहरलाल ने खुद को अपने खिलाफ लेख लिखकर तानाशाह कहा था.
जवाहरलाल का इतिहास-बोध अकादेमिक गलियारों में आज भी प्रकाश-पुंज की तरह विद्वानों को समझ का रास्ता दिखाता है. वनस्पतिशास्त्र, भूगर्भशास्त्र और रसायनशास्त्र की तिकड़ी के स्नातक केम्ब्रिज विश्विद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज के छात्र जवाहरलाल ने ‘वैज्ञानिक वृत्ति‘ जैसा नया शब्द नये भारत के लिए गढ़ा था.
नेहरू का समाजवाद कार्ल मार्क्स और लेनिन के साम्यवाद की तरह नुकीला, पथरीला या धारदार नहीं था. वे ब्रिटेन के शाइस्तगीयुक्त फेबियन समाजवाद को अपने सहयोगी कृष्ण मेनन की मदद से बूझने का जतन युद्ध की खंदकों में बैठकर कर रहे थे.
बेटी इन्दिरा के नाम लिखे नेहरू के पत्र इतिहास अध्ययन के पाठ्यक्रम में पत्थर की लकीर हैं. जेलों में बैठकर किताबों से अधिक स्मृति और श्रुति के सहारे जवाहरलाल ने शब्दों से भाषायी नक्काशी करते मनुष्य के अस्तित्व को देखने की अनोखी नई दूरबीन ईजाद की.
वे स्वघोषित नास्तिक थे लेकिन उनकी आध्यात्मिक रहस्यमयता,बौद्धिक क्रियाशीलता और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता मिलकर उन्हें बेहतर इंसान बनाती रहीं. उनसे प्यार करने को अंगरेज रमणियों और हिन्दुस्तानी सन्यासिनों से लेकर अकिंचन बच्चों तक के किस्से आमफहम हैं. ये अनगिनत बच्चे नेहरू के चेहरे की मुस्कराहट लिए गुलाब का फूल बने हुए हैं.
भारत से नेहरू को अनोखा और स्पन्दनशील प्यार था. वे रूढ़ साम्यवादियों की तरह अवाम के प्रति कटिबद्ध प्रयत्नों का ढिंढोरा नहीं पीटते थे. वे समकालीन भारतीयों के जस का तस आचरण और रूढ़ समझ को भारत का समानार्थी नहीं समझते थे.
नेहरू अपनी पांचों ज्ञानेन्द्रियों से जिस भारत को महसूस करते थे, वह स्वप्नशील भारत बहुतों की समझ के बाहर था. ‘विश्व इतिहास की झलक‘ जैसे उर्वर गल्प-ग्रन्थ का कोई समानान्तर विश्व वांड़मय में नहीं है. उनकी ‘आत्मकथा‘ के शीशे की पारदर्शिता में कोई भी अपना चेहरा पहचान सकता है.
अपनी प्रजातांत्रिक समझ के चलते नेहरू ने जम्मू कश्मीर के विलय के मामले में ‘हैमलेट‘ का अभिनय किया. उन्होंने वामपंथी साथियों की सलाह पर भरोसा करते चीन के दरिंदों पर पूरा यकीन किया. हिन्दुओं की पारंपरिक प्रथाओं को अधुनातन बनाने का उनका आग्रह लोकसभा में कई अधिनियम पास कराने को लेकर साकार हुआ.
नेहरू की वैज्ञानिक समझ को संविधान सभा के अप्रतिम प्रारूप लेखक डा0 अंबेडकर का सहयोग अमूमन मिलता रहा. ये बड़े नेता खुदगर्ज़ नहीं थे. वे समझ ही नहीं पाये कि राजनीति के जरिए देश का चेहरा तराशने के जो उपकरण वे तैयार कर रहे हैं उन्हें इतिहास अंततः ‘बंदर के हाथ में उस्तरा‘ जैसा मुहावरा बना देगा. नेहरू को सरदार वल्लभभाई पटेल जैसा सहयोगी, आलोचक और विवादज्ञ उपलब्ध था.
इकलौती बेटी इन्दिरा प्रियदर्शिनी को कुलदीपक की तरह बाले रखकर राजनीति में कथित वंशवाद का बिरवा नेहरू रोपित नहीं कर रहे थे. इसकी फूहड़ आलोचना कुछ मंदबुद्धि के लोग घृणा के कारण फिर भी करते हैं. नेहरू का सबसे बड़ा योगदान उनकी भविष्यदृष्टि है.
वेस्टमिन्स्टर प्रणाली का प्रशासन, यूरो-अमेरिकी ढांचे की न्यायपालिका, वित्त और योजना आयोग, बड़े बांध और सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने, शिक्षा के उच्चतर संस्थान, संविधान के कई ढके मुंदे दीखते लेकिन समयानुकूल सैकड़ों उपक्रम हैं जिन्हें बूझने में जवाहरलाल की महारत का लोहा मानना पड़ता है.
प्रगतिशील इस्लामी मुल्कों और मानवोचित चेहरे के साम्यवादी देशों से मिलकर तीसरी दुनिया का उनका सपना अमेरिकी हेकड़बाजी के मुकाबले सोवियत मैत्री और पंचशील सहित जवाहरलाल का गोदनामा है. उन्होंने भारतीय अस्तित्व की भूमध्यरेखा गंगा को आधार बनाकर इतिहास की बहती हुई नदी के जल पर अपनी वसीयत लिखी.
भारत की धरती का एक वैध कण बनकर जवाहरलाल ने खुद को धरती की भाषा का ककहरा बना दिया. क्रांतिकारी नायक भगतसिंह ने वस्तुपरक तटस्थ मूल्यांकन में गांधी,लाला लाजपतराय और सुभाष बोस जैसे नेताओं को दरकिनार करते हुए नेहरू को नए भारत का धु्रुवतारा बनाया. उन्होंने नौजवानों से अपील की कि केवल नेहरू ही देश को समझकर समस्याओं को हल कर सकते हैं.
नेहरू की मौत के बाद तकिए के पास शंकरदर्शन की पुस्तक, कमला नेहरू की भस्मि और अमेरिकी कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविता की पंक्तियां मिली थीं जिनमें भविष्य के लिए कुछ करने का जज्बा था.
आज जतन हो रहा है कि देश में जो कुछ बुरा हुआ है उसकी कालिख जवाहरलाल के खुशनुमा चेहरे पर मल दी जाए. दमित महत्वाकांक्षाओं के नेता नेहरू का नाम धरते या उपेक्षित करते समझ नहीं पाते कि गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों के चलते आसमान की ओर देखकर नहीं थूकना चाहिए. उन्हें समझ नहीं आता कि किसी की ओर निंदा की एक उंगली उठाने से खुद की ओर तीन उंगलियां उठ जाती हैं.
इतिहास को यह मालूम है कि लगभग 1928 से नेहरू गांधी का शिष्यत्व स्वीकार करने के बावजूद उनसे मैदानी राजनीति के अंधड़ों से देश को बचाने के प्रयत्न में छिटक रहे थे. 1942 के बाद विशेषकर 1945 के आसपास जवाहरलाल ने क्रूर चिट्ठियां गांधी को लिखी हैं.
वे नेहरू के चरित्र की नमनीयता के अनुकूल नहीं हैं. गांधी ने अलबत्ता कहा था कि भविष्य में जवाहर उनकी भाषा बोलेगा. गांधी की गांव की समझ को दरकिनार कर नेहरू ने नगर आधारित भारत का जो ढांचा खड़ा किया उसको गलत लोग हिला रहे हैं.
‘स्मार्ट सिटी‘, ‘बुलेट ट्रेन‘, ‘डिजिटल इंडिया‘, ‘गूगल‘, ‘मेक इन इंडिया‘, ‘एफडीआई‘ वगैरह नए अमेरिकी शोशे नेहरू द्वारा रखी गई नागर संस्कृति पर उठने वाली इमारतें तो हैं लेकिन दोनों में संवेदना का कोई आपसी रिश्ता नहीं है. काश! जवाहरलाल ने गांधी को इतना ज्यादा खारिज नहीं किया होता!