नेहरू: एक सांस्कृतिक प्रतीक
कनक तिवारी | फेसबुक : बीसवीं सदी के भारत पर सबसे ज़्यादा असर नेहरू का रहा है. गांधी के प्रभाव की नस्ल जुदा है. रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में जवाहरलाल ‘भारतीय जीवन के ऋतुराज‘ थे. विनोबा ने ‘उन्हें ‘स्थितप्रज्ञ‘ कहा. एक प्रख्यात विदेशी पत्रकार ने उनकी तुलना शेक्सपियर के असमंजस में डूबते अमर पात्र डेन्मार्क के राजकुमार ‘हैमलेट‘ से की है. ऑल्डस हक्सले ने उन्हें चट्टानी राजनीति की छाती पर अपना अस्तित्व जमाने वाला गुलाब का पौधा कहा है. ये नेहरू के व्यक्तित्व का अणु-रूप में मूल्यांकन हैं. कभी जवाहरलाल ने खुद अपने खिलाफ लेख लिखकर तानाशाह कहा था. वे लोकप्रिय प्रजातांत्रिक तानाशाह भी थे.
गांधी के अतिरिक्त जवाहरलाल आजादी के सूरमाओं में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बड़े राजनीतिक बुद्धिजीवी हैं. वे न इतिहासकार हैं, न ऐतिहासिक उपन्यासकार. उनका इतिहास-बोध अकादमिक गलियारों में आज भी प्रकाश-पुंज की तरह विद्वानों को समझ का रास्ता दिखाता है. वनस्पतिशास्त्र, भूगर्भशास्त्र और रसायनशास्त्र की तिकड़ी के स्नातक केम्ब्रिज विश्विद्यालय के ट्रिनिटी काॅलेज के छात्र जवाहरलाल ने ‘वैज्ञानिक वृत्ति‘ जैसा शब्द नये भारत के लिए गढ़ा था.
उनमें यूरोपीय ज्ञान का अभिजात्य भारतीय जनवादिता में छनछनकर घनीभूत होता रहा. नेहरू का समाजवाद कार्ल मार्क्स और लेनिन के साम्यवाद की तरह नुकीला, प्रहारक धारदार नहीं था. वे ब्रिटेन के फेबियन समाजवादियों के वार्तालाप से उपजी समझ को सहयोगी कृष्ण मेनन की मदद से बूझने का जतन युद्ध की खंदकों में बैठकर भी कर रहे थे. उनकी तपेदिक से तपती पत्नी स्विटजरलैंड के अस्पताल में जूझती रही थीं.
बेटी इन्दिरा के नाम लिखे नेहरू के पत्र इतिहास अध्ययन के पाठ्यक्रम में मील का पत्थर हैं. जेलों में बैठकर किताबों से अधिक स्मृति और श्रुति के सहारे जवाहरलाल ने शब्दों की भाषायी नक्काशी भी करते अनायास या सायास मनुष्य के अस्तित्व को देखने की अनोखी नई दूरबीन ईजाद की. वे घोषित तौर पर नास्तिक लेकिन उनकी आध्यात्मिक रहस्यमयता, बौद्धिक क्रियाशीलता और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता मिलकर उन्हें ऐसा इंसान बनाती हैं जिससे प्यार करने को देशी विदेशी रमणियों और हिन्दुस्तानी सन्यासिनों से लेकर अकिंचन बच्चों तक के किस्से मुख्तसर हैं.
अनगिनत बच्चे नेहरू के चेहरे की मुस्कराहट बने. जवाहरलाल का विश्व दृष्टिकोण उनके समकालीन किसी दुनियावी नेता को नसीब नहीं हुआ. अमीर लोकतंत्रों के अमेरिकी और यूरोपीय शासक तुलनात्मक अकादेमिक हीनता के कारण वंचित रहे हैं. एक नई दुनिया की कल्पना नेहरू ने की थी. वह रोमांटिक ख्वाब होने के बावजूद अपने अस्तित्व की संभावना के लिए विश्व जनमानस में लगातार खदबदाता रहता है.
भारत से नेहरू को अनोखा और स्पन्दनशील प्यार रहा. अवाम के प्रति अपने कटिबद्ध प्रयत्नों का ढिंढोरा उन्होंने नहीं पीटा. वे समकालीन भारतीयों के जस का तस आचरण और समझ को भारतीय प्रज्ञा का संवाहक नहीं समझते थे. नेहरू अपनी ज्ञानेन्द्रियों से जिस भारत को महसूस करते थे, वह बहुतों की समझ के परे था. वे एक साथ एच. जी. वेल्स की ‘टाइम मशीन‘ जैसे किसी कालयंत्र में बैठकर वेदों के काल से अशोक, अकबर, कबीर, भामाशाह और पुर्तगाल तथा अंगरेज आतताइयों तक अपने तर्क और विचार के डैने आसानी से पसार लेते थे.
‘विश्व इतिहास की झलक‘ जैसे उर्वर गल्प-ग्रन्थ का कोई समानान्तर विश्व वांड़मय में नहीं है. उनकी ‘आत्मकथा‘ के शीशे की पारदर्शिता में कोई भी अपना चेहरा पहचान सकता है. उसके पीछे लगा पारद मिश्रण जैसा घनीभूत अनुभव भी होना चाहिए.
नेेहरू ने वामपंथी साथियों की सलाह पर भरोसा करते चीन के दरिंदों पर पूरा यकीन किया. छोटी मोटी मनुष्योचित गलतियां की होंगी. पारंपरिक हिन्दू प्रथाओं को अधुनातन बनाने का उनका आग्रह लोकसभा में हिन्दू कोड बिल पास कराने को लेकर साकार हुआ. नेहरू की वैज्ञानिक समझ को संविधान सभा के अप्रतिम प्रारूप लेखक डा0 अंबेडकर का सहकार अमूमन मिलता रहा.
नेहरू की कलात्मक नस्ल की सार्वजनिक जिद भी मनुष्य होते रहने की रोमांचकारी कहानियों में पुरअसर होती रही है. उनमें आत्मविश्वास या आत्ममोह से बढ़कर आत्मप्रतारणा का स्पर्श भी घटनाओं के संदर्भ में देखने को मिलता है. डा0 राधाकृष्णन ने उनकी कृतियों में नैतिक अहम्मन्यता के संस्पर्श को उकेरने की चेष्टा की है.
इकलौती बेटी इन्दिरा प्रियदर्शिनी को कुलदीपक की तरह बाले रखकर राजनीति में कथित वंशवाद का बिरवा नेहरू ने नहीं रोपा. राजनीतिक बियाबान में नेहरू की अप्रत्याशित मृत्यु के बावजूद इन्दिरा गांधी ने निहित संस्कारों के दम पर खुद को देश का नेता बनाया. उनका अंकुरण उनके जेहन में पिता की चिट्ठियों ने भी किया होगा. जवाहरलाल का रोमन बादशाहों जैसा नाकनख्श उनमें व्यवहार की मांसलता का भी साक्ष्य है.
नेहरू का सबसे बड़ा योगदान उनकी भविष्यदृष्टि है. वेस्टमिन्स्टर प्रणाली का प्रशासन, यूरो-अमेरिकी ढांचे की न्यायपालिका, वित्त और योजना आयोग, बड़े बांध और सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने, शिक्षा के उच्चतर संस्थान, संविधान की कई ढकी मुंदी दीखतीं लेकिन समयानुकूल वाचालता से लकदक उपपत्तियां जैसे सैकड़ों उपक्रमों को बूझने में जवाहरलाल की महारत का लोहा मानना पड़ता है.
तीसरी दुनिया का उनका साकार सपना अमेरिकी हेकड़बाजी के मुकाबले सोवियत मैत्री, ईसाई और इस्लामी मुल्कों के प्रगतिशील नेतृत्व से साझा और पंचशील सहित अहिंसा तथा सहयोग की अभिनव शैली की इबारतों का गोदनामा है. उनके नायाब प्रस्फुटित चरित्र में कवियों को लजाने वाली शख्सियत उनके गोपनीय उदास क्षणों में अभिव्यक्त होती. क्रांतिकारी नायक भगतसिंह ने वस्तुपरक तटस्थ मूल्यांकन में गांधी, लाला लाजपतराय और सुभाष बोस जैसे नेताओं का सम्मान करते हुए भी नेहरू को नए भारत का धु्रुवतारा बनाया.
उन्होंने नौजवानों से अपील की फकत नेहरू देश की उसके जीवंत समीकरण के अर्थ में समझकर समस्याओं को हल कर सकते हैं. नेहरू की मौत के बाद तकिए के पास शंकर दर्शन की पुस्तक, बुद्ध का चित्र, कमला नेहरू की भस्मि और अमेरिकी राॅबर्ट फ्राॅस्ट की कवि पंक्तियां सहेजी हुई मिलीं.
इतिहास को मालूम है गांधी का शिष्यत्व स्वीकार करने के बावजूद नेहरू उनसे मैदानी राजनीति के अंधड़ों से देश को बचाने के प्रयत्न में छिटक रहे थे. 1942 के बाद विशेषकर 1945 के आसपास जवाहरलाल ने कड़ी चिट्ठियां भी गांधी को लिखीं. वे नेहरू के चरित्र की नमनीयता के अनुकूल नहीं हैं.
गांधी ने अलबत्ता कहा था भविष्य में जवाहर उनकी भाषा बोलेगा. गांधी की गांव की समझ को मुल्तवी कर नेहरू ने नागर संस्कृति के भारत का ढांचा खड़ा किया. नेहरू के स्वप्न और मौजूदा कारनामों में संवेदना का कोई आपसी रिश्ता नहीं है.