किसकी चूक है यह?
सुरेश महापात्र
अब तो यह भी कहा नहीं जा सकता कि हर बार नक्सली नए तौर तरीकों के साथ हमला करते हैं. दरभा-झीरम घाट पर 25 मई 2013 को पहली घटना बस्तर पुलिस जिला के क्षेत्र में हुई थी. इस बार 11 मार्च 2014 को इसी घाट पर कुछ ही दूरी के अंतर में नक्सलियों ने दूसरे बड़े हमले को अंजाम दिया है. एक ही जगह पर दस महीने के अंतराल में दूसरी बड़ी वारदात! तो बड़ा सवाल यह है कि हमले से नक्सलियों ने सबक लिया या हमारी सुरक्षा में तैनात फोर्स ने?
अफसोस, दोनों बार नक्सली ही सफल रहे. जिसका जवाब सरकार से ही लेना होगा. झीरम घाट पर अपनी इस क्रूरतम सफलता के साथ नक्सली पीछे दहशत छोड़ गए हैं.
25 मई 2013 को झीरम घाट पर कांग्रेस के काफिले पर नक्सली हमले के बाद पूरे देश में चर्चा छिड़ गई थी कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर नक्सली इतनी बड़ी घटना को अंजाम कैसे दे सकते हैं? तब राज्य सरकार क्या कर रही थी? सुरक्षा के मामले में कहां चूक हुई थी? फिलहाल मामले की जांच जारी है. इस मामले की जांच भी अभी पूरी नहीं हो पाई है और ठीक उसी स्थान पर नक्सलियों ने दूसरी बार अपनी ताकत का अहसास कराया है. यह स्थिति बेहद चिंतनीय है.
दोनों हमलों से एक बात निकलकर सामने आ रही है कि नक्सलियों के खिलाफ हो रही कार्रवाईयों में रणनीतिक चूक लगातार हो रही है. इस पर सरकार का रवैया केवल बयानों से खानापूर्ति तक ही दिखाई दे रहा है. मैदान में डटी फोर्स को सही जानकारी नहीं दी जा रही है. हमले में हो रहा नुकसान नक्सल मामले में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा बरती जा रही घोर लापरवाही की ओर इंगित कर रहा है.
अगर हमले के बाद भी हम नहीं चेत पा रहे हैं, तो ईश्वर भी रक्षा करे तो करे कैसे? छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद बीते 10 साल में तेजी से पैर पसारने में कामयाब हुआ है. जितने भी बड़े हमले हुए हैं, सभी बीते 10 बरस के आंकड़ों में शामिल हैं. इसके पीछे के कारणों को बड़ी बारिकी के साथ समझने और उसके निदान के उपाय ढूंढने की दरकार है.
बड़ी बात यह है कि इस हमले के ठीक दस दिन पहले 28 फरवरी को भी दंतेवाड़ा जिले के पालनार इलाके में ऐसे ही सड़क निर्माण में सुरक्षा दे रही जिला पुलिस पर नक्सलियों ने अटैक किया था. इस हमले में कुआकोंडा थानेदार विवेक शुक्ला समेत 6 जवान शहीद हो गए थे. अभी इन शहीद जवानों की चिता की राख भी ठंडी नहीं हो पाई थी और नक्सलियों ने इसी तर्ज पर सड़क निर्माण में लगी सुरक्षा एजेंसी को टारगेट किया. नक्सली हमले में न केवल सफल हुए बल्कि एक ही तरह की परिस्थितियों में रिपीट अटैक की नई ईबारत लिख गए हैं.
पालनार में हुए हमले के बाद एक बात सामने आई थी कि खुफिया विभाग ने अलर्ट जारी किया था बावजूद इसके नक्सली हमले में सफल हो गए. झीरम घाट पर नक्सली अटैक के बाद गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने फिर स्पष्ट किया है कि खुफिया सूचना थी और अलर्ट जारी किया गया था. बावजूद इसके चूक का मतलब क्या है?
यह स्पष्ट है कि बस्तर की परिस्थितियां नक्सलियों के लिए सुरक्षित ठिकाने की तरह हैं. यहां सुरक्षाबल को नक्सलियों से निपटने में कई तरह की मैदानी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इन दिक्कतों को समझने और दूर करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. लगातार रणनीतियों पर ध्यान देकर माओवाद से निपटने में केवल विभाग प्रमुख ही नहीं बल्कि सरकार की भी सीधी जिम्मेदारी बनती है. इसके उलट छत्तीसगढ़ में गृह विभाग की जिम्मेदारी जिसे भी सौंपी जा रही है, उसकी कार्यक्षमता की अनदेखी भी कहीं भारी न पड़ रही हो. यह भी सोचने की दरकार है.
पहले रामविचार नेताम, फिर ननकी राम कंवर और अब रामसेवक पैकरा गृह मंत्री नियुक्त किए गए. इसके पीछे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की राजनीतिक वजह भले ही कुछ भी हो पर उन्हें यह बताना ही होगा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे गृहमंत्री की स्थिति कभी भी अफेंसिव देखने को क्यों नहीं मिल रही है?
पुलिसिंग की कमजोरी की बड़ी वजह विभागीय मंत्री की कार्यक्षमता का परिणाम भी हो सकता है. इसे भी समझने की दरकार है. हो सकता है आदिवासी बहुल प्रदेश में मुख्यमंत्री इस आशंका से ग्रस्त हों कि अगर कोई घटना होती है तो सीधे सरकार टारगेट न बने. इसे ध्यान में रखते हुए ही गृहमंत्री के रूप में आदिवासी चेहरा सामने कर सरकार जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही हो. अफसोस तो बस इतना ही है कि प्रदेश के गृहमंत्री को नक्सली हमले के दो घंटे बाद तक सही जानकारी न तो पहले होती थी न अब होती है. ऐसे में इस प्रदेश में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी पर्दे के पीछे जो भी शक्तियां संभाल रही हैं, कम से कम उन्हें अपनी गलतियों से सबक लेने की ज़रुरत है.
* लेखक दंतेवाड़ा से प्रकाशित दैनिक ‘बस्तर इंपैक्ट’ के संपादक हैं.