नमो चाय की चुस्कियां
कनक तिवारी
एक. चाय हम सबकी देह की, नहीं- नहीं, जीवन की रक्तशिराओं में घुसी हुई है. अब वह देश के जीवन में एक भूतपूर्व चाय वाले की वजह से प्रधानमंत्री के सरकारी निवास 7 रेसकोर्स रोड तक घुस जाना चाहती है. मेरे दोस्त अंगरेज़ी के पूर्व प्राध्यापक शुभेन्दु (रंजन) मजूमदार चाय के बेहद शौकीन रहे हैं. वे दिन में बीसियों कप चाय और उतनी ही सिगरेटें पीने के महारथी रहे हैं. कभी बात चली कि रंजन, यदि तुम्हारा ऑपरेशन हो जाए तो तुम्हारी देह से कितना खून निकलने में तुम्हें तकलीफ नहीं होगी? रंजन ने छूटते ही उत्तर दिया, ‘मेरे शरीर से कोई खून नहीं निकलेगा. उसमें तो फकत चाय ही चाय भरी है. डॉक्टर को ऑपरेशन करना है तो चाय निकालकर करे. बदले में मैं किसी से खून नहीं उतनी ही चाय दिलवा सकता हूं.‘ पता नहीं रंजन का उसके बाद कभी ऑपरेशन हुआ या नहीं. यह ज़रूर है कि उसकी देह में खून से ज़्यादा चाय ही होगी. रंजन वामपंथी हैं लेकिन नमो चाय पीने में उन्हें दिक्कत नहीं है.
दो. मेरे एक और मित्र भिलाई के रवि शुक्ला चाय पीने के मामले में बड़ी नफासत के कायल हैं. कॉलेज के दिनों में अपने स्टोव पर यदि एक कप भी चाय बनाते तो पानी और चायपत्ती उबालते उबालते चाय के छोटे चम्मच से उसमें एक एक चम्मच दूध डालते जाते. अपने चश्मे को माइक्रोस्कोप समझते हुए चाय को ऐसे निहारते जैसे कोई प्रेमिका को निहारता है. प्रेमिका-चाय की देह का सही रंग उभरने पर ही स्टोव बन्द होता. उतने कम दूध की चाय हम लोगों से पीते नहीं बनती थी. उनसे जब कोई पूछता, ‘चाय पिएंगे या कॉफी?‘ तो वे लगभग झिड़कते हुए कहते, ‘कॉफी कभी नहीं. चाय और केवल चाय और हमेशा चाय. कॉफी भी कोई पीने की चीज़ है?‘ नरेन्द्र मोदी का यदि उनसे परिचय हो जाए तो नरेन्द्र मोदी का बढ़े न बढ़े, नरेन्द्र मोदी की निगाह में खुद के चाय वाले होने का और चाय का सम्मान ज़रूर बढ़ जाएगा. ऐसे चाय प्रेमियों का कोई राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित क्यों नहीं होता?
तीन. वर्षों पहले रेडियो और बाद में दूरदर्शन के दिनों में भी ग्वालियर के प्रसिद्ध कन्फेक्शनरी कारखाने जे.बी. मंघाराम का विज्ञापन बोलता. ‘चाय पिओ और बिस्कुट खाओ जे.बी. मंघाराम के.’ धीरे धीरे जे.बी. मंघाराम का बिस्कुट साम्राज्य दरकने लगा. अब वह पूरी तरह डूब गया है. उसे किसी बड़ी कंपनी ने खरीद लिया. अंगरेज़ों का सूर्य भी कभी पूरी दुनिया में कहीं न कहीं चमकता ही रहता था. अब वह भी डूब गया है लेकिन भारत में अंगरेजी और चाय का साम्राज्य ऐसा है कि वह कभी डूबता ही नहीं. एशियाई चाय का महासागर पूरी दुनिया के कंठ बल्कि आत्मा को गीला कर रहा है. चाय ने सब कुछ लील लिया है. दूध, कॉफी, कोको वगैरह को. नरेन्द्र मोदी ने बड़ी दूरदृष्टि, नहीं नहीं चाय-दृष्टि पाई है! उन्होंने यह नहीं बताया कि चाय के साथ वे और क्या क्या अपने ग्राहकों को खिलाते पिलाते थे? क्या वे भारतीय मतदाताओं को अब भी ग्राहक ही समझते हैं? अब उनकी राजनीतिक चाय का रेट क्या होगा?
चार. मेरे एक और दोस्त रायपुर के शांतिलाल धारीवाल का ब्याह तब हुआ था, जब गोवा की आज़ादी के लिए भारतीय सेना सक्रिय हो गई थी. ठंड के दिन थे. रायपुर से भोपाल जाने वाली रेलवे की बोगी नागपुर से दूसरी गाड़ी में जोड़ी गई. उसे शाम को इटारसी पहुंचना था. वह आधी रात के बाद इटारसी पहुंची. कड़कड़ाती ठंड में सभी बाराती अपनी अपनी बर्थ पर रजाई या कंबल में लिपटे सिकुड़े सो रहे थे. लड़की वालों ने प्लैटफॉर्म पर शाम के लिहाज़ से गर्मागर्म नाश्ते के साथ मसाला चाय और केसरिया दूध का इंतज़ाम किया था. वह बारातियों के आराम करने के कारण बरबाद हो रहा था. आनन फानन में कन्या पक्ष के नौजवान कुछ लड़कों ने एक एक बाराती को दोनों बाहों से पकड़कर प्लैटफॉर्म पर खड़ा कर दिया. एक साथ नारे लगे, ‘चाय दूध.‘ एक हाथ में चाय का और दूसरे हाथ में दूध का मग पकड़ाया गया. ठंड और थकावट के कारण सब बारातियों ने उसे एक घूंट में ही पी लिया. हमें नहीं मालूम था कि केवल चाय कभी भाजपा का प्रतीक बनेगी और दूध बेचारा तो अब भी उसमें उसी तरह होगा जैसे भाजपा में आर.एस.एस.