छग पुलिस फंसा सकती है -नंदिनी
रायपुर | संवाददाता: नंदिनी सुंदर ने आशंका जताई है कि छत्तीसगढ़ पुलिस नक्सलियों के नाम पर उन्हें फंसा सकती है. दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापक नंदिनी सुंदर ने नक्सलियों के लिये वसूली करने वाले कांग्रेस नेता बद्री गावडे के साथ अपना नाम जोड़े जाने पर आपत्ति दर्ज कराई है. उन्होंने रावघाट परियोजना के विरोध को नक्सलियों के इशारे पर चलाये जाने का भी खंडन किया है.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में पुलिस ने एक दिन पहले ही नक्सलियों के लिये काम करने वाले कांग्रेसी नेता बद्री गावडे को गिरफ्तार किया है. उसके पास से ऐसे कई दस्तावेज मिले हैं, जिससे नक्सलियों के लिये वसूली करने की बात साबित होती है. रायपुर में एडीजी इंटेलिजेंस मुकेश गुप्ता ने दावा किया था कि गावड़े छत्तीसगढ़ की लाइफ लाइन कहलाने वाले रावघाट रेल प्रोजेक्ट के खिलाफ साजिश कर रहा था. उसने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदनी सुंदर तथा कई स्वयंसेवी संगठन से जुड़े लोगों को माओवादियों से मिलवाने का भी काम किया था. नंदिनी सुंदर पर इससे पहले भी नक्सलियों के साथ सांठ-गांठ के आरोप लगते रहे हैं.
अब दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्राध्यापक नंदिनी सुंदर ने एख बयान जारी कर के कहा है कि बद्री गावडे की गिरफ्तारी के बाद छत्तीसगढ़ की सुरक्षा एजेंसिया एक कहानी गढ़ने में लगी हैं कि माओवादियों के कहने पर मैं रावघाट के मुद्दे को उठा रही हूं. मैं यहां ये स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि मैं माओवादियों की विचारधारा और उनके द्वारा छत्तीसगढ़ या किसी और भी स्थान पर उनके द्वारा अपनाई जा रही रणनीति का समर्थन नहीं करती हूं.
नंदिनी सुंदर ने अपने बयान में कहा है कि मैं बदलाव के लोकतांत्रिक और संवैधानिक तरीकों पर विश्वास करती हूं और सुप्रीम कोर्ट में मेरी याचिका इस बात का पर्याप्त सुबूत होना चाहिए. मेरा विश्वास है कि राज्य की एजेंसियों और माओवादियों दोनों के द्वारा आदिवासियों के अधिकारों के साथ गंभीर रूप से समझौता किया जा रहा है और सलवा जूडूम के दौरान बड़े पैमाने पर हुए हमलों के बाद आदिवासियों के अधिकारों के प्रति मेरी चिंता ने मुझे उनके जीवन जीने के अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करने के लिए प्रेरित किया है. दरअसल, सरकार ने ही स्वीकार किया है कि सलवा जुडूम एक गलती थी.
राज्य सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली नंदिनी सुंदर ने कहा कि मैं पाँचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों, जिनमें रावघाट शामिल हैं; के आदिवासियों से उनकी जमीन छीने जाने के बारे में चिंतित हूं, साथ ही उन्हें उनकी आजीविका से वंचित भी किया जा रहा है. यह उन सभी लोकतांत्रिक नागरिकों के लिए चिंता का विषय है, जो कि न्याय में भरोसा रखते हैं. अतीत में भी छत्तीसगढ़ पुलिस ने मेरी सशस्त्र माओवादियों के साथ वाली नकली फोटो जगह-जगह दिखा कर मुझे फंसाने की कोशिश की है.
नंदिनी सुंदर ने अपने बयान में कहा है कि इसकी बात की पूरी आशंका जताई है कि वे उनके द्वारा सशस्त्रीकृत व्यवस्था विरोधी और गैरकानूनी बल को तितर-बितर करने, स्कूलों को खाली करने और इस आंतरिक सशस्त्र संघर्ष के सारे प्रभावितों को क्षतिपूर्ति प्रदान करने के सुप्रीम कोर्ट आदेश को पूरा न कर पाने के कारण मुझे फिर से फंसाने की कोशिश करेंगे. नंदिनी ने कहा है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जो मेरे द्वारा सुप्रीम कोर्ट में गंभीर तरीके से उठाया जा रहा है. मेरा यह दृढता से विश्वास है कि स्थायी समाधान केवल लोकतांत्रिक और संवैधानिक तरीके से ही पाया जा सकता है.