महाराष्ट्र में पटोले होंगे स्पीकर
मुंबई | डेस्क : महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा ने स्पीकर पद के लिये अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लिया है. भाजपा के इस क़दम के बाद अब नानाभाऊ पटोले के स्पीकर बनने का रास्ता साफ हो गया है.
इससे पहले माना जा रहा था कि भाजपा के किशन कठोरे अंतिम समय तक मैदान में होंगे और चुनाव की स्थिति आयेगी. लेकिन सत्ता पक्ष के अनुरोध के बाद भाजपा ने उनका नाम वापस ले लिया.
एनसीपी नेता छगन भुजबल ने भी कहा कि पहले विपक्ष ने भी स्पीकर पद के लिए फॉर्म भरा था लेकिन अन्य विधायकों के अनुरोध के बाद और विधानसभा की गरिमा को बनाए रखने के लिए उन्होंने नाम वापस ले लिया है. अब, स्पीकर का चुनाव निर्विरोध होगा.
शनिवार को बीजेपी ने किशन कठोरे को अपना उम्मीदवार बनाया था और महा विकास अघाड़ी की ओर से कांग्रेस के नाना पटोले तो उम्मीदवार घोषित किए गए थे.
वहीं, शनिवार को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बहुमत परीक्षण में जीत हासिल की थी. सरकार के पक्ष में 169 विधायकों ने वोट दिया था. इस दौरान विपक्ष में कोई भी वोट नहीं पड़ा क्योंकि बीजेपी ने सदन से वॉकआउट कर दिया था.
बीबीसी के अनुसार नाना पटोले बीजेपी के पूर्व सांसद हैं. उन्होंने पीएम मोदी पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. फ़िलहाल वह सकोली से विधायक हैं.
नाना पटोले ने 2014 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ा था और एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल को हराया था.
लेकिन, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कुछ सालों बाद ही नाना पटोले पीएम मोदी के ख़िलाफ़ बयान देने लगे थे.
उन्होंने नागपुर में हुए एक कार्यक्रम में आरोप लगाया था कि पीएम मोदी किसी की बात नहीं सुनते. पीएम ने पार्टी बैठक में उन्हें किसानों का मुद्दा उठाते वक़्त अपनी बात नहीं रखने दी.
इसके बाद पटोले ने 2017 में बीजेपी से इस्तीफ़ा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए.
2018 में नाना पटोले को किसान खेत मजदूर कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में नाना पटोले ने नितिन गडकरी के ख़िलाफ़ नागपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन वो हार गए.
बीजेपी से पहले पटोले कांग्रेस में ही रह चुके हैं. उन्होंने दोनों ही दलों को छोड़ते वक़्त ये आरोप लगाया था कि वो किसानों के मुद्दों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.
नाना पटोले ने 2009 में अपना पहला लोकसभा चुनाव भंडारा-गोंडिया से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था. हालांकि, तब वह प्रफुल्ल पटेल से हार गए थे.
लेकिन, उन चुनावों में वो दूसरे नंबर पर रहे थे और उन्हें बीजेपी के शिशुपाल पटले से ज़्यादा वोट मिले थे. अपनी मजबूत स्थिति को भांपते हुए पटोले बीजेपी जुड़ गए और लगभग छह महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भंडारा से जीत हासिल की.