36 हजार करोड़ के घोटालेबाजों की मदद कर रही छत्तीसगढ़ सरकार
नई दिल्ली | डेस्क: भाजपा शासनकाल का कथित 36 हज़ार करोड़ का नान घोटाला अब भूपेश बघेल सरकार के लिए परेशानी का सबब बनता नज़र आ रहा है. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान ईडी ने कई गंभीर आरोप लगाए.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला इतना बड़ा है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकता है.
तुषार मेहता ने कहा कि इस घोटाले के आरोपी आरोपियों को वर्तमान छत्तीसगढ़ सरकार से मदद मिली है. उन्होंने यह भी कहा कि रजिस्ट्री में उल्लेखित होने के बावजूद मामलों को सूचीबद्ध नहीं किया जा रहा था.
मुकुल रोहतगी के हस्तक्षेप के बाद तुषार मेहता ने कहा- “अगर यह सार्वजनिक डोमेन में आता है, तो यह सिस्टम में लोगों के विश्वास को खत्म सकता है। उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश संवैधानिक अधिकारियों के संपर्क में हैं जो आरोपी की मदद कर रहे हैं, क्या आप चाहते हैं कि मैं इसे सार्वजनिक कर दूं?”
जिसे जेल भेजने की मांग की थी भूपेश बघेल ने
नान घोटाले को कांग्रेस पार्टी बड़ा मुद्दा बनाती रही है. इस मामले के दो मुख्य आरोपी आईएएस अधिकारियों डॉक्टर आलोक शुक्ला और अनिल टूटेजा की गिरफ़्तारी की मांग भूपेश बघेल करते रहे हैं.
यहां तक कि कांग्रेस पार्टी इस मामले को अदालत में भी ले गई. लेकिन 2018 में सत्ता में आने के बाद दोनों आरोपी, भूपेश बघेल सरकार की नाक के बाल बन गए.
हालत ये हुई कि डॉक्टर आलोक शुक्ला को सेवानिवृत्ति के बाद राज्य सरकार ने उनका कार्यकाल बढ़वाने के लिए केंद्र से अनुरोध किया. आज की तारीख में 36 हजार करोड़ के आरोपी आलोक शुक्ला राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य समेत 9 विभागों के प्रमुख सचिव के पद पर कार्यरत हैं.
अब इन्हीं दो अधिकारियों को बचाने को लेकर ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है.
ईडी ने अदालत में क्या कहा
ईडी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “ईडी की जांच से पता चलता है कि आरोपी संवैधानिक पदाधिकारी के संपर्क में था. अन्य सह-आरोपियों के अनुसूचित अपराधों की गंभीरता को कम करने का प्रयास किया गया था. आरोपी ने गवाह को ईडी के समक्ष दिए गए बयानों को वापस लेने के लिए भी प्रभावित किया.”
तुषार मेहता ने कहा कि ईडी को जो व्हाट्सएप चैट मिले हैं, उससे आरोपी आईएएस अधिकारियों और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के बीच मिलीभगत का राज खुला है.
उन्होंने अदालत में कहा कि “इन उच्च पदस्थ अधिकारियों ने संवैधानिक पदों पर अधिकारियों की मिलीभगत से फायदा उठाया. मैंने नामों का उल्लेख नहीं किया है. लेकिन मेरे पास व्हाट्सएप चैट हैं.”
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मुकदमे के स्थानांतरण के लिए ईडी की दलील पर सहमति जताते हुए कहा कि जांच की निगरानी उच्चतम न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि सीबीआई, ईडी राजनीतिक प्रभाव के लिए उत्तरदायी हैं और इसकी निगरानी इसी अदालत द्वारा की जानी चाहिए ताकि एक स्वतंत्र जांच हो.
भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने अंततः छत्तीसगढ़ और अन्य पक्षों को सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.
मामले की सुनवाई 26 सितंबर को होगी, जिसमें तय होगा कि मामला विचार योग्य है या नहीं.