नगालैंड में कुर्सी का खेल
इंफाल | प्रदीप फंजोबमः नगालैंड में राज्यपाल के हस्तक्षेप के बावजूद राजनीतिक नाटक अभी खत्म नहीं हुआ.19 जुलाई को नगालैंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले टीआर जेलियांग ने विधायकों को खुश रखने के लिए नए कायदे बनाए हैं. 21 जुलाई को बहुमत साबित करने के बाद उन्होंने 11 मंत्री बनाए. इनमें दो भारतीय जनता पार्टी के हैं. पार्टी के चार विधायक हैं. नगा पीपुल्स फ्रंट के 47 में से 35 बागियों को उन्हें अभी संतुष्ट करना है. इन लोगों के समर्थन से ही वे मुख्यमंत्री बने हैं. 25 जुलाई को उन्होंने इनमें से 26 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया. यह कैबिनेट स्तर का पद है. बचे हुए नौ विधायकों को उन्होंने कैबिनेट स्तर देकर सलाहकार नियुक्त किया है. इसका मतलब यह हुआ कि 60 सदस्यों वाली विधानसभा के जिन 47 सदस्यों ने जेलियांग के पक्ष में मतदान किया, उन सभी को अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा है.
लेकिन जेलियांग के लिए बुरी खबर आई 26 जुलाई को उच्चतम न्यायालय से आई. अदालत ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति संबंधित 2004 के असम के एक कानून को असंवैधानिक करार दिया. इससे जेलियांग की तुष्टिकरण की योजना को झटका लग सकता है. लेकिन अपने अभिनव प्रयोगों से संभव है कि वे कोई और रास्ता निकाल लें.
सत्ता तक उनके पहुंचने की हालिया यात्रा नाटकीय और विवादास्पद रही है. उन्हें फरवरी में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के साथ वे स्थानीय चुनाव करा रहे थे. इसकी वजह से भारी विरोध प्रदर्शन हुए. पार्टी ने उस वक्त 81 सालके शुरुहजेली लिजोत्सु को मुख्यमंत्री बना दिया. वे विधानसभा के सदस्य नहीं थे. उनके बेटे ने जो सीट खाली की उसके लिए 29 जुलाई को होने वाले उपचुनाव में वे उतरने वाले थे. लेकिन इसके महीने भर पहले जेलियांग ने अपनी चाल चल दी.
पूर्वोत्तर में भाजपा के प्रभारी सचिव रहे पीबी आचार्य की नगालैंड के राज्यपाल के तौर पर भूमिका भी विवादास्पद रही. जब लिजोत्सु बहुमत साबित करने नहीं आए तो राज्यपाल ने जेलियांग को जल्दबाजी में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पार्टी के अंदर की बगावत को पार्टी के अंदर सुलझाया जाएगा न कि विधानसभा के अंदर. आम तौर पर जब तक कोई संवैधानिक संकट नहीं पैदा हो जाए ऐसे मामलों को पार्टियों के स्तर पर ही छोड़ दिया जाता है. आश्चर्यजनक बात यह है कि पार्टी के विप का उल्लंघन करके दूसरे पक्ष में वोट देने के बावजूद एनपीएफ की टूट को नहीं माना जा रहा है.
जेलियांग द्वारा तख्तापलट करने के बावजूद लेजित्सु ने इस्तीफे से इनकार कद दिया. इसके बाद राज्यपाल ने उनसे बहुमत साबित करने को कहा. इसे उन्होंने गुवाहाटी उच्च न्यायालय की कोहिमा पीठ में चुनौती दे दी और इसे पार्टी का आंतरिक मसला बताया. कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए मामले को राज्यपाल पर छोड़ दिया. बाद में लेजित्सु राज्यपाल पर ही आरोप लगाने लगे.
उन्होंने जेलियांग पर यह आरोप भी लगाया कि राज्यपाल के साथ मिलकर वे भाजपा को राज्य में सत्ता में लाना चाह रहे थे. जेलियांग नगालैंड, मणिपुर और असम में फैले जेलियांगग्रोंग जनजाति से हैं. इस जनजाति ने सबसे आखिर में इसाई धर्म अपनाया था. अब भी ये अपनी पुरानी आस्था के केंद्र हेराका को मानते हैं. इन्हें आजादी की लड़ाई में शामिल होने वाली रानी गैडिनलु ने लोकप्रिय बनाया था. उन्होंने न सिर्फ अंग्रेजों का मुकाबला किया बल्कि नगा स्वायत्ता के लिए काम करने वाले नगा राष्ट्रीय परिषद से भी लोहा लिया.
आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंग्रेजों की एक जेल में पाया और उनके प्रतिरोध को जानकर न सिर्फ उन्हें ‘रानी’ का खिताब दिया बल्कि पद्म भूषण भी दिया. मणिपुर में उनका बहुत सम्मान है लेकिन नगालैंड में उनके स्मारक बनाने का भारी विरोध हुआ. इस बीच भाजपा हेरका को मानन वालों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है.
जेलियांग की वापसी का विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है. लेजित्सु और उनके समर्थक उन विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग के साथ मुकदमा करने वाले हैं जिन्होंने पार्टी विप के खिलाफ मतदान किया. अगर वे सफल होते हैं तो बागियों को विधानसभा की किसी दूसरी पार्टी में विलय करना होगा. नहीं तो उनकी सदस्यता चली जाएगी.
अटकलें तेज हैं कि आगे चलकर इनका भाजपा में विलय हो जाएगा. क्योंकि हालिया बगावत में भाजपा उनके साथ थी. अगर ऐसा होता है तो एनपीएफ का आधार कमजोर होगा और सबसे बड़ा फायदा भाजपा को होगा.
1966 से प्रकाशित इकॉनोमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली के नये अंक के संपादकीय का अनुवाद