मैसूर का दशहरा उत्सव
मैसूर | एजेंसी: महलों की इस नगरी में 10 दिवसीय दशहरा उत्सव समारोह का गवाह बनने के लिए राज्य और देशभर से हजारों लोग जुट रहे हैं. परंपरागत आमोद-प्रमोद और जश्न के साथ शनिवार को इस उत्सव की शुरुआत हुई.
इस साल मानसून के दौरान प्रचुर बारिश होने से अच्छी फसल मिलने की उम्मीद से यहां सभी धन्य महसूस कर हैं. भव्य नवरात्र उत्सव ने पुराने मैसूर के लोगों खासकर किसानों, ग्रामीणों, महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष महत्व हासिल कर लिया है.
दशहरा उत्सव समिति के प्रभारी वी. रंगनाथ ने यहां आईएएनएस को बताया, “इस उत्सव से सदियों से संबद्ध रहे भव्यता व वैभव के साथ इसे आयोजित करने के लिए राज्य प्रशासन एक माह से काम कर रहा है.”
बेंगलुरू से 140 किलोमीटर दूर स्थित राज्य की सांस्कृतिक राजधानी मैसूर का स्मारकों, किलों, देवालयों, मस्जिदों, गिरिजाघरों, पुरातात्विक, वास्तु और विरासत मूल्यों के चित्रण के साथ गौरवशाली इतिहास रहा है.
सृमद्ध जैव विविधता वाले पश्चिमी घाट के करीब स्थित यह जिला प्रचुर वनस्पति, पशु-पक्षियों, नदियों, पर्वतीय झीलों और शांत जलवायु से आनंदित करता है.
रंगनाथ ने बताया, “यह शहर वोडेयर राजाओं के शानदार अंबा विलास राजमहल, उनकी राजशाही हवेलियों, जन इमारतों, बगीचों और नियोजित बाजारों के साथ इसके पूर्व महाराजाओं, उनके दीवानों और उस काल के प्रतिभावान दिग्गजों के विचारों को दर्शाता है.”
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक, दशहरा 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य द्वारा मनाया जाता था. उसके बाद पिछले पांच दशकों से वोडेयर शासक इस त्योहार को मनाते रहे हैं. राज्य सरकार वर्ष 1973 से वोडेयर राजवंश के वंशज श्रीकांतादत्त नरसिंहराजा के सहयोग से इसे राज्य महोत्सव के रूप में आयोजित करती आ रही है.
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार इस उत्सव पर 10 करोड़ रुपये खर्च कर रही है. इसमें 14 अक्टूबर को विजयादशमी के दिन बान्निमंतप शाही महल से पूरे शहर में निकाला जाने वाला हाथियों का जुलूस भी शामिल होगा. इसी रात एक मशाल जुलूस भी निकाला जाएगा.
रंगनाथ ने कहा, “हमें अगले सात दिनों में सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम, संगीत गोष्ठी, फिल्म महोत्सव, प्रदर्शनी, पुष्प प्रदर्शनी, कुश्ती, खाद्य मेले और अन्य आयोजनों का गवाह बनने के लिए शहर में 10,000 विदेशी पर्यटकों सहित एक लाख से अधिक लोगों के पहुंचने की उम्मीद है. इसमें युवा शाही वंशज द्वारा लगाया गया निजी दरबार और गौरवशाली शाही स्थानों की यात्रा भी शामिल हैं.”
इस मौके पर शाही परिवार और रोशनी से जगमगाते महल आकर्षण का मुख्य केंद्र होते हैं.
इस उत्सव के नौवें शुभ दिन को महानवमी कहा जाता है. इस दिन राजशाही तलवार की पूजा होती है और उसे हाथी, ऊंट और घोड़ों वाले जुलूस संग शाही महल ले जाया जाता है.