शिवराज की छवि पर गर्द!
भोपाल | एजेंसी: मध्य प्रदेश में चल रहे आंदोलनों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तौहान की छवि को नुकसान पहुंचाया है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पहचान गरीब, किसान और जरूरमंदों के नेता के रूप में बनाई और दोबारा सत्ता भी पा ली, मगर एक तरफ जहां व्यापमं घोटाले का साया उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ इन दिनों राज्य में चल रहे आंदोलनों से चौहान की छवि पर गर्द जमने लगी है.
बीते 11 वर्षो में चौहान के मुख्यमंत्रित्व काल में हर वर्ग को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाई गईं. कन्यादान योजना, लाडली लक्ष्मी योजना और तीर्थदर्शन जैसी योजनाओं ने चौहान को नई पहचान दिलाई. उसी का नतीजा रहा कि उनके नेतृत्व में पार्टी ने लगातार दो विधानसभा और कई अन्य चुनाव जीते हैं.
देश में भूमि अधिग्रहण विधेयक पर एक तरफ केंद्र सरकार को विपक्ष घेरने पर तुला हुआ है तो राज्य में सामाजिक संगठनों ने शिवराज की योजनाओं से किसानों की छिनती जमीन को बड़ा मुद्दा बना दिया है.
राष्ट्रीय एकता परिषद के संस्थापक पी.वी. राजगोपाल ने जनजातीय वर्ग सहित अन्य वर्गो की जमीन संबंधी समस्याओं को लेकर भोपाल में चार दिन तक उपवास रखा. इस उपवास में विभिन्न सामाजिक आंदोलनों से जुड़े लोगों ने हिस्सा लिया और शिवराज को जमकर कोसा.
राजगोपाल ने कहा, “जरूरतमंदों से जो जमीन छीनने का कुचक्र चल रहा है, वह ठीक नहीं है. बाहरी विकास समाज के लिए घातक है. शिवराज तो स्वदेशी आंदोलन से आगे बढ़े हैं, मगर अब उन्हें ‘अमरीकी विकास’ पसंद आ रहा है.”
राजगोपाल ने आगे कहा कि खंडवा में चल रहे जल सत्याग्रह से गरीब किसानों की निराशा आशा में बदलेगी और एक दिन उन्हें सफलता जरूर मिलेगी. सरकार तो सामाजिक आंदोलनों को खत्म करने में लगी है, मगर उसकी यह मंशा पूरी नहीं हो हो पाएगी. जमाना बदल रहा है, लोग जागरूक हो रहे हैं.
वहीं, देश में ‘जलपुरुष’ के नाम से चर्चित राजेंद्र सिंह ने कहा, “कई लोग 22-23 दिनों से लगातार पानी में खड़े रहकर जल सत्याग्रह कर रहे हैं, मगर सरकार संवेदनशीलता का परिचय नहीं दे रही है. मुख्यमंत्री शिवराज को अपने प्रदेश की जनता के हित में काम करना चाहिए न कि किसी और के लिए.”
उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री किसी और के लिए ‘यस मैन’ की भूमिका निभाने में लगे हैं जो उनके लिए और राज्य के लोगों के लिए हितकर नहीं है. सरकार को जल सत्याग्रह कर रहे लोगों से तुरंत बात करनी चाहिए, ताकि वे पानी से निकलकर सामान्य जिंदगी जी सकें. शिवराज सरकार को यह अकड़ भारी पड़ सकती है.
शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में यह पहला मौका है, जब जमीन बचाने के आंदोलनों ने उन पर सीधे तौर पर हमला किया है. अगर समय रहते इन आंदोलनों पर लगाम नहीं लगी तो शिवराज की छवि को प्रभावित होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकेगा.