भारत में एंटीबायोटिक का दुरुपयोग ज्यादा
वाशिंगटन | समाचार डेस्क: भारत दुनिया का न केवल एंटीबायोटिक का सबसे बड़ा बाजार है वरन् यहां इसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग भी होता है. एक अध्ययन ‘ग्लोबल ट्रेंड्स इन एंटीबायोटिक कंजप्शन, 2000-2010’ के अनुसार ब्रिक्स देशों में एंटीबायोटिक का उपयोग 36 फीसदी तक बढ़ गया है. इस अध्ययन से यह बात उभर कर आती है कि भारत में चीन तथा अमरीका से भी ज्यादा एंटीबायोटिक का उपयोग होता है.
इस अध्ययन से पता चलता है कि एंटीबायोटिक के 16 समूहों में सेफेलेस्पोरिन तथा क्यूनोलोन्स का उपयोग वर्ष 2000 से वर्ष 2010 के बीच 55 फीसदी तक बढ़ गया है जबकि इन दवाओं का कम से कम उपयोग किया जाना चाहिये ताकि इनसे मानव शरीर में प्रतिरोध की क्षमता न विकसित होने पाये.
इस अध्ययन से पता चलता है कि राम-बाण के रूप में सुरक्षित रखे गये उच्च क्षमता वाले एंटीबायोटिक कार्बापेनेम तथा पॉलीमिक्सिन से मानव शरीर में प्रतिरोधक होती जा रही है. इससे भविष्य में जब इन दवाओं की जरूरत होगी तो उनका उपयोग नहीं किया जा सकेगा. इस अध्ययन के लिये 71 देशों में एंटीबायोटिक के उपयोग की समीक्षा की गई है.
रिपोर्ट में इस बात के लिये संतोष प्रकट किया गया है कि एंटीबायोटिक तक ज्यादा लोगों की पहुंच बढ़ी है परन्तु इसका उपयोग बिना चिकित्सीय निगरानी के किया जाता है जिससे समस्या उत्पन्न हो रही है. अध्ययन से पता चला है कि भारत में एंटीबायोटिक का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है परन्तु प्रति व्यक्ति एंटीबायोटिक के उपयोग के अनुसार अमरीका में इसकी खपत सबसे ज्यादा है.
भारत में आमतौर पर देखा गया है कि लोग एंटीबायोटिक उपयोग दवा दुकानदार से पूछकर ही कर लेते हैं. यहा तक कि पतले दस्त के लिये क्यूनोलोन्स तथा सर्दी-बुखार के लिये सेफेलेस्पोरिन का धड़ल्ले से दुरुपयोग किया जाता है. इस दुरुपयोग के चलते आने वाली पीढ़ी के लिये समस्या पैदा हो रहा है.