प्रसंगवश

मोंटेक जी का लाभ

डाकघर की लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दर घटाये जाने को हमारे योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने अभी भी लाभकारी बताया है. उनके अनुसार ‘सही मायने में अभी भी डाकघर की बचत योजनाएं जमाकर्ताओं के लिए लाभकारी हैं‘. एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि ‘वास्तविक रूप में देखा जाए, तो दो साल पहले की तुलना में महंगाई दर काफी नीचे आ गई है. इसलिए, ब्याज दरें अभी भी बेहतर हैं. सरकार के इस कदम से ऐसा नहीं है कि डाकघर के जरिए जमाकर्ताओं को मिलने वाला ब्याज देश के अन्य वित्तीय व्यवस्था के जरिए मिलने वाले ब्याज के मुकाबले पूरी तरह अतार्किक हो जाएगा’.

लेकिन वास्तविक रूप से देखा जाये तो लंबे समय से यह कोशिश की जा रही है कि जनता अपना पैसा सरकारी संस्थाओ में जमा न करवाकर बाज़ार में लगाये. इसी मकसद को अमली जामा पहनाने के लिये ही तो तमाम तरह के नीति बनाये जा रहे हैं. याद कीजिये पहले बैंकों मे फिक्सड डिपाजिट रखने से 10 से 12 प्रतिशत तक ब्याज मिलता था और आज कितना ब्याज मिलता है. लोगो को हतोत्साहित किया जा रहा है कि वे बैंको एवं डाकघरों में पैसा जमा न रखें. तो फिर इस धन को कहा रखा जाये. यही वो खेल है जो खेला जा रहा है कि इसे शेयर ब़ाजार में लगाया जाए.

पीपीएफ पर ब्याज दर को 8.8 से घटाकर 8.7% कर दिया गया है. पांच व दस साल की परिपक्वता अवधि वाले एनएससी पर अब क्रमश: 8.5 एवं 8.8 फीसदी ब्याज मिलेगा. वरिष्ठ नागरिक बचत स्कीम पर देय ब्याज को भी 9.3 से घटाकर 9.2 प्रतिशत कर दिया गया है. इस प्रकार बचत योज़नाओ मे करोड़ो लोग जो धन लगाते हैं उन्हें कम ब्याज दिया जाये, ऐसी कोशिश की जा रही है. एक बार शेयर या म्यूचुअल फंड में धन लगाने के बाद स्वंय कुबेर भी उसे लूटने से नही बचा सकता. इसे ही कहते हैं कि कड़वी दवा को हौले हौले पिलाया जाये. नवउदारवादी नीतियों को पिछले दरवाजे से देश मे लाया जाये. जाहिर है, मोंटेक सिंह तो इसके उस्ताद हैं और जनता के लिये हो या न हो, मोंटेक सिंह और उनके यार-दोस्तों के लिये तो यह लाभदायक होगा ही होगा.

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