मोदी का चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव
नई दिल्ली | समाचार डेस्क: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंगोलिया दौरे का मुख्य उद्देश्य चीन पर एक मनौवैज्ञानिक बढ़त हासिल करना था. न कि व्यापार और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना जैसा दावा किया जा रहा है. यह बात यहां इस क्षेत्र के जानकारों ने कही. भारत के पूर्व राजदूत पुंचोक स्टॉब्दन ने कहा कि यह दौरा एक रणनीतिक कदम था. एक अन्य विशेषज्ञ एस. कल्याणरमण का भी कहना है कि दौरे का उद्देश्य पूरे क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना था.
मोदी 14 मई को चीन गए थे, जहां उन्होंने तीन दिन बिताए. वह 17 मई को मंगोलिया गए. उसके बाद 18 और 19 मई को मोदी ने दक्षिण कोरिया का दौरा किया.
किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला मंगोलिया दौरा था. इस दौरान मोदी ने मंगोलिया में अवसंरचना परियोजनाओं के लिए 1 अरब डॉलर के सरल ऋण की घोषणा की और संस्कृति, वायु सेवाओं, साइबर सुरक्षा संबंधी प्रशिक्षण तथा कई अन्य क्षेत्रों में समझौते किए.
स्टॉब्दन के अनुसार मंगोलिया के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने में यूरेनियम या तांबा या प्राकृतिक संसाधनों का आयात कोई मुद्दा नहीं था. दिल्ली स्थित थिंक टैंक रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान में वरिष्ठ शोधकर्ता के रूप में कार्यरत स्टॉब्दन का कहना है, “भारत को यूरेनियम कहीं से भी मिल सकता है. व्यापार भी कोई मुद्दा नहीं था क्योकि परिवहन लागत काफी ज्यादा है. साथ ही आयात-निर्यात के लिए चीन के मार्ग का प्रयोग करना होगा जहां कई प्रतिबंध लगाए जाएंगे.”
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत और मंगोलिया के बीच 2010 में कुल द्वीपक्षीय व्यापार 1.74 करोड़ डॉलर था जो 2013 में 3.5 करोड़ डॉलर हो गया.
दूसरी तरफ, सीआईए के तथ्यों के मुताबिक चीन के साथ मंगोलिया का व्यापार इसके कुल बाहरी व्यापार का आधा है. चीन, मंगोलिया के निर्यात में 90 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है और यह चीन का सबसे बड़ा निर्यातक है.
स्टॉब्दन का तर्क है कि मंगोलिया हमारे लिए दबाव का एक हथकंडा है जैसे कि चीन के लिए पाकिस्तान.
उनके अनुसार, “चीन इस तथ्य को नहीं स्वीकार कर पाया है कि मंगोलिया उसका हिस्सा नहीं है. हम तिब्बत की आजादी सुनिश्चित नहीं कर सके लेकिन हम मंगोलिया की आजादी चाहते हैं.” स्टॉब्दन का कहना है कि चीन की मंशा मंगोलिया को अपनी अर्थव्यवस्था पर इतना निर्भर रखना है कि इसकी आजादी अप्रासंगिक हो जाए.
स्टाब्दन ने भारत और मंगोलिया के साझा इतिहास का भी उल्लेख किया. इसकी पुष्टि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आंतरिक एशिया अध्ययन केन्द्र के प्रोफेसर के. वारिकु ने भी की.
वारिकु ने कहा, “हमारे बीच गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध है और जरूरत यह है कि हम इसे अलगे स्तर पर ले जाएं.”
वारिकु के अनुसार, मंगोलिया के पास प्राचीन भारतीय संस्कृत और बौद्ध दस्तावेजों का समृद्ध धरोहर है. इसलिए भारत के लिए यह एक उचित अवसर है कि वह इन्हें डिजिटल प्रारुप दे और देश के अंदर विद्वानों के लिए उपलब्ध कराए.
उन्होंने कहा कि मोदी की घोषणा, नई सरकार की एक्ट ईस्ट नीति का वास्तविक कार्यान्वयन है.
वारिकु ने अनुसार भारतीयों को मंगोलिया के यूरेनियम सहित अन्य समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों पर नजर रखनी चाहिए जिसका दोहन अभी चीन कर रहा है.
लेकिन आईडीएसए के एक अन्य वरिष्ठ शोधकर्ता कल्याणरमन का तर्क है कि चीन को मंगोलिया के साथ व्यापार में सहज लाभ है क्योंकि भारत की पहुंच वहां सीमित है.
कल्याणरमन के अनुसार रूस और चीन के बीच स्थित मंगोलिया, भारत के करीब नहीं आ सकता है. लेकिन मंगोलिया का हमारे साथ होना हमारे हित में है.
लगभग 15,65,000 वर्ग किलोमीटर में फैला मंगोलिया, विश्व में सबसे कम आबादी घनत्व वाला देश है. देश की आबादी करीब 30 लाख है, यानी, प्रति वर्ग मील केवल चार लोग.
कल्याणरमन के अनुसार मोदी का चीन पर मंगोलिया नाम का यह मनोवैज्ञानिक दबाव मंगोलिया के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि उसे भी एक ऐसे सहयोगी की जरूरत है जो इसकी आजादी की वकालत करता हो.