मोदी को दंगों का दुख
नई दिल्ली | संवाददाता: गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2002 के दंगों का दुख है. मोदी का कहना है कि साल 2002 के दंगों के लिए उन्हें दु:ख है, पर वह दोषी नहीं हैं. उनके मुताबिक अभी तक कोई अदालत उन्हें दोषी स्थापित करने के करीब भी नहीं पहुंची है.
भाजपा के पीएम प्रत्याशी ने कहा कि दंगों के बाद से उन्हें 12 सालों तक लोगों की उलाहना का शिकार होना पड़ा. लेकिन उन्होंने तय कर लिया था कि मीडिया अपना काम करेगा, उसके साथ टकराव नहीं होगा.
ब्रिटिश लेखक और टीवी प्रोड्यूसर एंडी मैरीनो द्वारा लिखित नरेंद्र मोदी की जीवनी हाल ही में प्रकाशित हुई है. इसमें मोदी ने स्पष्ट कहा कि वे मीडिया से टकराव में अपना समय नष्ट नहीं करते.
“नरेंद्र मोदी-एक राजनीतिक जीवनी” नाम से प्रकाशित किताब में मैरिनो ने बताया कि चुनावी रैलियों के दौरान वह हेलीकॉप्टर में मोदी के साथ रहे और कई हफ्तों में यह साक्षात्कार पूरा किया. 310 पेज की किताब में यह भी कहा गया है कि दंगों के बाद मोदी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया.
दंगों के एक महीने बाद मोदी ने 12 अप्रैल 2002 को पणजी में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस्तीफे का फैसला कर लिया था. उन्होंने कार्यकारिणी में कहा था, “मैं गुजरात पर बात करना चाहता हूं. पार्टी के लिए यह बहुत गंभीर मुद्दा है. इस पर स्वतंत्र और स्पष्ट चर्चा की जरूरत है. मैं कार्यकारिणी के समक्ष अपना इस्तीफा रखना चाहता हूं. लेकिन पार्टी इसके लिए तैयार नहीं थी और न ही प्रदेश की जनता मुझे छोड़ने के लिए तैयार थी.”
मोदी ने आगे कहा है कि किस तरह गोधरा ट्रेन कांड के बाद की स्थितियों को उन्होंने संभाला. उन्होंने बताया कि ट्रेन अग्निकांड के दिन गोधरा से वह देर रात गांधीनगर लौटे और अधिकारियों से सेना को अलर्ट करने को कहा. उन्हें बताया गया कि सेना सीमा पर है, क्योंकि संसद पर हमले के कारण भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव है.
इसके बाद उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के दिग्विजय सिंह और महाराष्ट्र के विलासराव देशमुख से अर्धसैनिक बल मांगे. महाराष्ट्र ने तो सीमित रूप में अर्धसैनिक बल भेजे लेकिन बाकी दोनों राज्यों ने मदद भेजने से इंकार कर दिया.