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मप्र के लिए जैसे मोदी, वैसे मनमोहन!

भोपाल | संदीप पौराणिक: लगता है कि मध्य प्रदेश की किस्मत में उपेक्षा झेलना ही लिखा है, यही कारण है कि केंद्र में सरकार भले बदल गई हो लेकिन राज्य के साथ सौतेला व्यवहार जारी है. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय में मप्र के साथ जैसा बर्ताव होता था, ठीक वैसा ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में भी हो रहा है.

इन दिनों करीब पूरा राज्य बिजली संकट से जूझ रहा है. इसी का नतीजा है कि लोग सड़कों पर उतरकर अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं. राज्य में शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने सभी को 24 घंटे बिजली देने के लिए विधानसभा चुनाव से पहले अटल ज्योति योजना शुरू की थी, लेकिन अब यह योजना बेमानी साबित हो रही है.

राज्य में बिजली संकट पिछली सरकारों के दौरान भी रहा है, लेकिन तब केंद्र और राज्य में विरोधी दलों की सरकारें हुआ करती थीं.

इन दिनों राजधानी भोपाल को छोड़कर सभी जगहों पर दो से 10 घंटे तक की कटौती हो रही है, लेकिन सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा कोई कटौती न होने की बात कर रहे हैं. उनके अनुसार, शेड्यूल के मुताबिक किस इलाके को कितनी बिजली मिलेगी इसका पूरा ब्यौरा है.

सरकार भले सीधे तौर पर बिजली कटौती की बात न माने, लेकिन मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड के प्रबंध संचालक एवं प्रदेश की तीन विद्युत वितरण कंपनियों के अध्यक्ष मनु श्रीवास्तव मानते हैं कि मानसून के कमजोर होने से जलाशयों में पर्याप्त पानी की कमी से जल बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है. वहीं कोयले की आपूर्ति न होने से प्रदेश की ताप बिजली इकाइयों से भी बिजली उत्पादन कम हो रहा है.

वह बताते हैं कि राज्य को सेन्ट्रल सेक्टर के राष्ट्रीय तापविद्युत निगम लिमिटेड, एनटीपीसी एवं दामोदर घाटी निगम, डीवीसी से निर्धारित 3,735 मेगावाट की तुलना में सिर्फ 1,950 मेगावाट बिजली मिल रही है. सरदार सरोवर विद्युत परियोजना से मध्य प्रदेश को 8,26.5 मेगावाट बिजली मिलती है. इस परियोजना से भी वर्तमान में सिर्फ 250 मेगावाट बिजली मिल पा रही है.

कांग्रेस ने इसी बात पर सवाल उठाए हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया का कहना है कि जब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की सरकार थी तब मुख्यमंत्री चौहान कोयला, बिजली को लेकर धरना-प्रदर्शन करने को तैयार रहते थे अब दिल्ली में जाकर प्रदर्शन क्यों नहीं करते?

भोपाल से भाजपा सांसद आलोक संजर का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यों को सक्षम बनाना चाहते हैं. बिजली के मामले में वह राज्य के सांसदों के साथ प्रधानमंत्री व ऊर्जा मंत्री से चर्चा करेंगे. बिजली कटौती के लिए उनका अपना तर्क है. वह कहते हैं कि हो सकता है कि किसी अन्य राज्य में ज्यादा बिजली संकट हो, इसलिए मप्र के हिस्से की बिजली वहां दे दी गई हो.

ऐसे में राज्य वासियों को मनमोहन व मोदी सरकार में ज्यादा अंतर नजर नहीं आ रहा है.

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