मोदी सरकार भ्रष्ट अफसरों के साथ
रायपुर | संवाददाता: नान घोटाले में 6 महीने बाद भी बड़े अफसर बचे हुये हैं. भ्रष्टाचार मुक्त भारत का नारा देने वाली केंद्र की मोदी सरकार ने इन दो बड़े अफसरों के खिलाफ 6 महीने बाद भी कार्रवाई की अनुमति नहीं दी है. राज्य सरकार भी इस मामले में एक चिट्ठी लिख कर चुप्पी साध गई है.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नागरिक आपूर्ति निगम के अरबों रुपये के घोटाले में छोटे-छोटे अफसरों को तो जेल भेज दिया गया लेकिन राज्य के आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा दो आईएएस अधिकारियों डॉक्टर आलोक शुक्ला और अनिल टूटेजा के खिलाफ 12 फरवरी को अपराध दर्ज किये जाने के बाद भी दोनों अफसर अपने पदों पर बने हुये हैं.
नागरिक आपूर्ति निगम के तत्कालीन चेयरमेन डॉक्टर आलोक शुक्ला और नागरिक आपूर्ति निगम के तत्कालीन प्रबंध संचालक अनिल टूटेजा के खिलाफ अपराध क्रमांक 09/2015 धारा 109, 120 बी, 409, 420 व धारा 13 (2), 13 (1) डी एवं धारा 11 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 12 फरवरी को दर्ज किया गया था.
राज्य भर में धरना-प्रदर्शन के बाद दोनों ही अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के लिये राज्य सरकार ने 18 जुलाई 2015 को केंद्र सरकार को पत्र लिखा. लेकिन हालत ये है कि लगभग 6 महीने बाद भी केंद्र सरकार ने इन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश जारी नहीं किये हैं. माना जा रहा है कि राज्य सरकार भी इन अफसरों को बचाना चाहती है. यही कारण है कि इस संबंध में केंद्र से दुबारा कोई पत्र-व्यवहार तक नहीं किया गया है.
गौरतलब है कि इसी साल 12 फरवरी को एंटी करप्शन ब्यूरो ने राज्य में 28 स्थानों पर छापा मारा था और करोड़ों रुपए की नकदी समेत कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ ज़ब्त किए थे. छापेमारी की इस कार्रवाई के बाद 18 अधिकारियों को निलंबित किया गया था.
राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल औऱ नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने आरोप लगाया था कि छापेमारी के दौरान एंटी करप्शन ब्यूरो ने एक डायरी ज़ब्त की थी, जिसमें कथित तौर पर मुख्यमंत्री, उनकी पत्नी, उनकी साली के अलावा मुख्यमंत्री निवास के कर्मचारी, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव सहित अन्य वरिष्ठ अफ़सरों के नामों का उल्लेख है.
एंटी करप्शन ब्यूरो ने इस मामले में स्थानीय अदालत में जो चालान प्रस्तुत किया, उसमें भी इस डायरी के पन्ने को प्रस्तुत किया है. इसके अलावा एंटी करप्शन ब्यूरो के मुखिया मुकेश गुप्ता साफ तौर पर कह चुके थे कि एंटी करप्शन ब्यूरो का जो अधिकार क्षेत्र है, उसमें सारे पहलुओं की जांच संभव नहीं है. इसके बाद से ही राज्य में एंटी करप्शन ब्यूरो की जांच पर सवाल शुरु हो गये थे. विपक्षी दलों का कहना था कि एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा मुख्यमंत्री के ही अधीन है, इसलिए मामले की निष्पक्ष जांच संभव नहीं है.