जीएसटी और मोदी सरकार का मुंडन
वेद प्रताप वैदिक | वाट्सऐप पर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में जैसी मजबूरी और विनम्रता दिखाई पड़ रही थी, उसी समय मुझे लग गया था कि एकरुप कर (जीएसटी) की दमघोंटू अव्यवस्था में कुछ न कुछ परिवर्तन जरुर होगा. वित्तमंत्री ने 27 चीजों पर कर की दरें घटा दीं और डेढ़ करोड़ रु. तक के व्यापारियों को अब तीन महीने में एक बार टैक्स रिटर्न भरने की छूट दे दी है. इस मजबूरी और छूट पर सरकार की मजाक उड़ाने के बजाय उसकी सराहना की जानी चाहिए.
यह भी कुछ हद तक ठीक है कि जीएसटी की इन रियायतों का सीधा संबंध गुजरात के चुनावों से भी हो सकता है.
इसके अलावा हमें इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि हमारे सर्वज्ञजी ने अपने जीवन में कभी कोई व्यापार नहीं किया और हमारे वित्त मंत्रीजी के पास वित्त तो खूब है लेकिन वह व्यापार से नहीं आया है. इतनी अनुभवहीनता के बावजूद उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी जैसे सांप अपने गले में डाल लिये, यह कम बड़ी बात नहीं है. अब धीरे-धीरे उनकी अकड़ निकल रही है, तो भाजपा के भविष्य के लिए यह अच्छी बात है लेकिन अभी भी व्यापारी संतुष्ट नहीं हैं.
यदि सर्वज्ञजी अैर वित्तमंत्रीजी अपने संघ के कार्यकर्ताओं से ही खुलकर बात करें तो उनको ‘मार्गदर्शक मंडल’ की जरुरत ही नहीं रहेगी. इस समय जरुरत तो इस बात की है कि देश के सभी प्रमुख अर्थशास्त्रियों और कर विशेषज्ञों (विदेशी भी) की संगोष्ठी बुलाई जाए और उनसे पूछा जाए कि यदि आयकर को ही खत्म कर दिया जाए तो कैसा रहेगा ? दुनिया के लगभग डेढ़ दर्जनों देशों में आयकर नहीं है. इंदिराजी के सहयोगी वसंत साठेजी ने आयकर खत्म करने का अभियान भी चलाया था.
नोटबंदी की योजना के जन्मदाता अनिल बोकील की भी पहली शर्त यही थी कि आयकर की व्यवस्था खत्म की जाए. उनकी बात को पूरी तरह समझे बिना ही सर्वज्ञजी ने अपने नाम से नोटबंदी चला दी. अब वह वापस तो नहीं हो सकती लेकिन उसके मूर्खतापूर्ण दुष्परिणाम रोज सामने आ रहे हैं.
ताजा खबर यह है कि 5800 फर्जी कंपनियों ने नोटबंदी के दौरान 4574 करोड़ रु. बैंकों में जमा करवा दिए याने काले को सफेद कर लिया और बाद में 4552 करोड़ रु. निकलवा लिये याने उनके सिर्फ 22 करोड़ रु. अब बैंकों में है.
ऐसे फर्जी खाते लगभग 2 लाख हैं. भारत का आयकर विभाग अब अपनी पूरी ताकत इन्हें पकड़ने में लगाएगा.
सरकार लोगों से काला धन मूंडना चाहती थी लेकिन भारत की जनता ने मोदी सरकार का चुपचाप मुंडन कर दिया. नोटबंदी और जीएसटी मूलतः काफी अच्छी योजनाएं थीं लेकिन ठीक अमल के अभाव में वे लगभग फेल हो गई हैं. अब सरकार के शेष डेढ़ साल इनकी मरहमपट्टी में ही बीत जाएंगे या वह हिम्मत करके अपनी गलतियां स्वीकार करेगी ? यदि करेगी तो उसे शायद नए रास्ते भी मिल जाएं. वरना फिसलन तो शुरु हो ही गई है.