एम एफ हुसैन के 100 साल और छत्तीसगढ़
रायपुर | संवाददाता: आज अगर एम एफ हुसैन जिंदा होते तो वे अपना 100वां जन्मदिन मना रहे होते. लेकिन यह बात आज की युवा पीढ़ी को नहीं पता कि दुनिया के सबसे बड़े चित्रकारों में से एक एमएफ हुसैन का छत्तीसगढ़ से भी खास रिश्ता था. चित्रकार एम एफ हुसैन राजनांदगांव में रहने वाले कवि मुक्तिबोध के अभिन्न मित्र थे.
हुसैन की अदा में सबसे मशहूर था नंगे पैर रहना और हुसैन का कहना था कि 11 सितंबर 1964 को जब उनके मित्र और हिंदी के सबसे बड़े कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का निधन हुआ, उसके बाद से उन्होंने जूते पहनना छोड़ दिया.
हुसैन बताते थे कि कैसे राजनांदगांव में रहने वाले उनके मित्र गजानन माधव मुक्तिबोध दिल्ली के अस्पताल में भर्ती रहे और जब उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में हुआ तो उस समय पहली बार हुसैन को पता चला कि मुक्तिबोध का अब तक एक भी संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ है. उस दुख और पीड़ा में हुसैन ने जूते उतारे और फिर कभी जूते नहीं पहने.
हालांकि अपनी बढ़ती उम्र के कारण हुसैन कई दफा मुक्तिबोध से जुड़े इस संदर्भ में तारीखों का घालमेल भी कर जाते थे. इसके अलावा हुसैन नंगे पैर रहने की कुछ और खूबियां भी गिनाते थे. वे कहते थे कि करबला में जलते रेत की गरमी को महसूस करने की वजह से भी वे नंगे पैर रहते थे. उनका कहना था कि उन्हें अपने पैर, मां के पैर की तरह नजर आते थे. बचपन में ही मां को खोने वाले हुसैन इन पैरों से मां को पहचानने की बात कहते हुये इसे खुला रखने का तर्क देते थे. हुसैन का कहना था कि शरीर की अधिकांश नसें पैरों से जुड़ी होती हैं, इसलिये भी वे उन्हें खुला छोड़ कर रखते थे.
महाराष्ट्र के पंढरपुर में 17 सितंबर 1913 को जन्मे हुसैन हिन्दू देवियों की निर्वस्त्र तस्वीरें बनाने को लेकर विवादों में घिरे रहे.
हुसैन को 1955 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया. 1967 में उन्होंने एक पेंटर के नजरिए से अपनी पहली फिल्म बनाई. यह बर्लिन फिल्म समारोह में प्रदर्शित हुई और गोल्डन बीयर पुरस्कार जीता. वह 1971 में साओ पाओलो आर्ट बाईनियल में पाबलो पिकासो के साथ विशेष आमंत्रित अतिथि थे. उन्हें 1973 में पद्मभूषण सम्मान मिला और 1986 में हुसैन राज्यसभा के लिए नामांकित किए गए. 1991 में उन्हें पद्मविभूषण मिला. सन 1990 से 2011 के बीच हुसैन भारत में सबसे महंगे पेंटर बनकर उभरे. उन्होंने गजगामिनी सहित कई फिल्मों का निर्माण एवं निर्देशन भी किया.
उनके द्वारा बनाई गई दुर्गा और सरस्वती की तस्वीरों ने हिन्दुओं को क्रुद्ध कर दिया और 1998 में उन्होंने हुसैन के घर पर हमला कर दिया तथा उनकी कलाकृतियों को तोड़ डाला. हुसैन पर हिन्दू देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरें बनाने को लेकर फरवरी 2006 में लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा.
भारत में कानूनी मुकदमों और जान से मार देने की धमकियों के चलते वह 2006 से स्व निर्वासन में विदेश में रह रहे थे. उन्होंने भारतीय पासपोर्ट सौंप देने के बाद 2010 में कतर की नागरिकता हासिल कर ली थी. 2011 में लंदन में उनका निधन हुआ.