छत्तीसगढ़

मीना खलखो हत्याकांड में सभी पुलिस वाले बरी

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित मीना खलखो हत्याकांड में रायपुर की एक अदालत ने सभी आरोपी पुलिस वालों को दोषमुक्त करार दिया है.मीना खलखो हत्याकांड के नामजद आरोपी पुलिसकर्मियों धर्मदत्त धनिया और जीवनलाल रत्नाकर को संदेह का लाभ देते हुए अदालत ने दोषमुक्त करार दिया है. जबकि एक अन्य आरोपी निकोदिम खेस की पहले ही मौत हो चुकी है.

मामले में दोषमुक्त करार दिए गये हरियाणा के रहने वाले धर्मदत्त धानिया इन दिनों एनएसजी, गुड़गांव में तैनात हैं, जबकि दूसरे आरोपी जीवनलाल रत्नाकर, प्रधान आरक्षक रामानुजगंज में कार्यरत हैं.

रायपुर की एक स्थानीय अदालत ने पिछले महीने इस मामले में फ़ैसला सुनाया है, जिसके आदेश की प्रति अब जा कर सार्वजनिक हुई है.

सात साल पहले इस मामले की न्यायिक जांच रिपोर्ट आई थी और मीना खलखो की मुठभेड़ में मारे जाने के दावे को फर्जी बताया गया था.

इसके बाद आईपीएस अधिकारी नेहा चंपावत के निर्देश में सीआईडी ने मामले की विवेचना के बाद तीन लोगों के ख़िलाफ़ नामजद अपराध दर्ज किया गया था.

सीआईडी ने अपनी विवेचना में माना था कि मीना खलखो की हत्या आरक्षक धर्मदत्त धनिया एवं आरक्षक जीवनलाल रत्नाकर द्वारा अपने हथियार से की गई थी और थाना प्रभारी द्वारा बचाव के लिए झूठे साक्ष्य गढ़ गये.

इस मामले में विशेषज्ञ जांच में भी मीना की मौत एसएलआर की गोलियों से होना पाया गया.

अपने माता-पिता के साथ मीना खलखो
अपने माता-पिता के साथ मीना खलखो

लेकिन अब जा कर स्थानीय अदालत ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया है.

मीना खलखो हत्याकांड

गौरतलब है कि बलरामपुर के करचा गांव के पास पुलिस ने 6 जुलाई 2011 को कथित माओवादियों के साथ मुठभेड़ में 16 साल की मीना खलखो को मारने का दावा किया था.

पुलिस का कहना था कि माओवादी मीना खलखो की गिरफ़्तारी के लिए पुलिस दल करचा पहुंचा था, जहां माओवादियों और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ में मीना खलखो मारी गईं. लेकिन परिजनों और गांव वालों ने इस मामले में फर्जी मुठभेड़ का आरोप लगाया था.

मामला राजधानी रायपुर तक पहुंचा तो राज्य सरकार ने आनन-फ़ानन में मीना के परिजनों को मुआवज़ा देने की घोषणा कर दी. संसद में मीना के फ़र्ज़ी मुठभेड़ का मामला उठा. विधानसभा में तीखी बहसें हुईं.

इसके बाद राज्य सरकार ने 30 अगस्त, 2011 को पूरे मामले की जांच बिलासपुर की ज़िला न्यायाधीश अनिता झा से तीन महीने के भीतर कराने की घोषणा की.

चार साल बाद 26 फरवरी 2015 में आई न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में माना गया कि मीना का माओवादियों से कोई संबंध नहीं था और मीना को पुलिस ने मार डाला.

रिपोर्ट को आधार बना कर सरकार ने मामले की सीआईडी जांच के आदेश दिए. इसके बाद अप्रैल 2015 में सीआईडी ने 11 पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ हत्या और 14 अन्य पुलिसकर्मियों पर हत्या में सहयोग करने के आरोप में मामला दर्ज किया. इस मामले की जांच के लिये आईपीएस अधिकारी नेहा चंपावत के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई थी.

मामले में केवल तीन लोगों के ख़िलाफ़ नामजद रिपोर्ट की गई थी.

अदालत की गंभीर टिप्पणी

इस मामले में सुनवाई करते हुए न्यायाधीश श्रीमती शोभना कोष्टा ने अपने फ़ैसले में सीआईडी जांच को लेकर गंभीर टिप्पणी की है.

अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि अभियोजन ने ज़ब्त हथियारों को प्रकरण में विचारण के दौरान प्रस्तुत नहीं किया,और ना ही आर्टिकल के रुप में साक्ष्य से प्रमाणित किया, अभियोजन को जप्त किए दोनों शस्त्रों को अदालत में पेश करना था. दोनों एसएलआर रायफल थी. आरोपियों को वितरित हथियारों के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है, दस्तावेज़ी साक्ष्य के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि अभियोजन द्वारा कथित उक्त हथियार आरोपियों को ही आबंटित हुए थे.

अदालत ने लिखा है कि अभियोजन का यह दायित्व था कि वह यह प्रमाणित करता कि उक्त शस्त्र आरोपीगणों के हैं ख़ाली कारतूस और छर्रे आरोपियों के ही हथियार से निकले हैं, लेकिन अभियोजन ने ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है कि घटना स्थल से जप्त संपत्तियाँ आरोपियों की थी या घटना दिनांक को आरोपियों को आबंटित थीं.विवेचक साक्षीगण ने सदृढ़ विवेचना नहीं की है.

अपने फ़ैसले में अदालत ने कहा कि विवेचना के दौरान आरोपियों के घटना स्थल पर जाते समय उनके हथियार वितरण के संबंध में परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार उनके हथियार और गोलियों का संबंध स्थापित करने में और आरोपियों के ही हथियार से मृतिका की मृत्यु होने के संबंध में कार्यवाही करनी थी. लेकिन दस्तावेज़ों में आरोपियों को हथियार वितरण और उन्ही हथियारों से फैसला होने के संबंध में कारतूस के ख़ाली खोखों और छर्रों में मिलान का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया. अभियोजन ने घटना स्थल से जप्त वस्तुओं को प्रकरण में प्रस्तुत नहीं किया. उसे प्रस्तुत कर प्रदर्शांकित कराना था, जिसमें अभियोजन की लापरवाही दिखती है.

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