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रेप पर समझौता गलत: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: शीर्ष अदालत ने कहा रेपिस्ट को शादी कर लेने से बरी नहीं किया जा सकता. उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में एक रेपिस्ट को पीड़िता के साथ शादी का समझौता कर लेने के बाद निचली अदालत ने बरी कर दिया था. शीर्ष अदालत ने इसे निचली अदालत का भूल माना है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दुष्कर्म के मामले में विवाह पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने निचली अदालत के एक फैसले को चुनौती देने वाली मध्य प्रदेश सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें दुष्कर्मी को विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लेने पर मामले से बरी कर दिया गया था.

मामला मध्य प्रदेश के गुना ज़िले का है. 7 साल की बच्ची से बलात्कार के मामले में निचली अदालत ने मदनलाल नाम के शख्स को 7 साल की सजा दी. लेकिन हाई कोर्ट ने पुलिस की तरफ से पेश सबूतों के फैसले को ख़ारिज करते हुए कहा कि ये कि मामला बलात्कार का नहीं लगता. ऐसे में हाईकोर्ट ने इसे आईपीसी की धारा 376 (2)(f) यानी 12 साल से कम उम्र की बच्ची से बलात्कार की बजाय आईपीसी की धारा 354 यानी महिला की गरिमा को चोट पहुँचाने के लिए बल के प्रयोग का मामला माना.

हाई कोर्ट ने धारा 354 के तहत मदनलाल को सिर्फ 1 साल की सज़ा दी. हाई कोर्ट ने इस मामले में नतीजे तक पहुँचने के लिए दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते को भी आधार माना. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि हाई कोर्ट ने मामले में आईपीसी की हल्की धारा को लगाकर गलत किया.

इस फैसले को कानूनन सही नहीं माना जा सकता. इसलिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट दोबारा मदनलाल की अपील पर सुनवाई करे. इस मामले में दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते की दलील को भी सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया. 2 साल पुराने अपने ही एक फैसले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बलात्कार के मामलों में दोनों पक्षों के बीच कोई भी समझौता आरोपी की सज़ा कम करने का आधार नहीं हो सकता.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि दुष्कर्म के आरोपी तथा पीड़िता के बीच विवाह के नाम पर समझौता वास्तव में महिलाओं के सम्मान से समझौता है. साथ ही यह इस तरह के समझौते कराने वाले पक्ष की असंवेदनशीलता का भी परिचायक है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर वह उदार रवैया नहीं अपना सकता. न्यायालय ने यह भी कहा कि इस बारे में निचली अदालत का फैसला उसकी भारी भूल व असंवेदनशीलता को दर्शाता है, जिसने विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिए जाने के बाद दुष्कर्मी को मामले से बरी कर दिया.

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