नक्सली रामन्ना से जीरम पर पूरी बातचीत
प्रश्न – अभी-अभी आपकी पार्टी द्वारा जजों को धमकियां देने की खबर भी मीडिया में आई थी. क्या यह सच है?
उत्तर – सबसे पहले आपको यह बता दूं कि छत्तीसगढ़ के जेलों में आज तीन हजार से ज्यादा आदिवासी बंद हैं. और यह संख्या आए दिन बढ़ती जा रही है. इन पर कई झूठे केस लगाए गए हैं. जमानत मिलना तो छत्तीसगढ़ की अदालतों में नामुमकिन सा हो गया. छोटे-छोटे केसों में भी जिसमें अगर सजा हो भी जाती है तो दो-तीन सालों के अन्दर छूट सकते हैं, लोगों को 7-8 साल जेल में सड़ना पड़ रहा है. जेलों में ढंग का खाना नहीं मिलता, बीमार होने पर इलाज की सुविधा नहीं. कुल मिलाकर अत्यंत अमानवीय हालत में आदिवासी जेलों के अंदर जिन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं. गरीबी के कारण कई लोग वकील तक को नियुक्त कर पाने की स्थिति में नहीं हैं. निरीह और बेसहारा आदिवासियों को कुछ जज झूठी गवाहियों से आजीवन कारावास समेत कई कठिन सजाएं सुना रहे हैं. भ्रष्टाचारी, बलात्कारी और चोर राजनेताओं को अदालतों में कभी कोई सजा नहीं होती. गरीबों को ही सजाएं मिलती हैं. यह इस न्याय व्यवस्था के वर्गीय पक्षपात को ही रेखांकित करता है. कुछ जज जो कट्टर प्रतिक्रियावादी हैं और लुटेरे शासक वर्गों के वफादार सेवक हैं, हमारे साथियों और आम आदिवासियों को जानबूझकर कड़ी सजाएं सुना रहे हैं. हम ऐसे लोगों को आगाह भर कर रहे हैं कि वे ऐसी जनविरोधी हरकतें न करें, कि एक दिन जनता की अदालत भी लगेगी जिसमें उन लोगों की सुनवाई भी होगी.
प्रश्न – पत्रकार नेमीचंद जैन की हत्या के संबंध में आपकी पार्टी का क्या कहना है?
उत्तर – जब नेमिचंद जैन की हत्या हुई थी थोड़ी भ्रम जैसी स्थिति उत्पन्न हुई थी. इस घटना को किसने और किसके निर्णय पर अंजाम दिया यह पता लगाने में काफी देरी हो गई. बाद में यह स्पष्ट हो गया कि हमारी एक निचली कमेटी के गलत आंकलन और संकीर्णतावादी निर्णय के चलते यह दुखद घटना घटी थी. हमें इस पर बेहद अफसोस है. मैं हमारी स्पेशल जोनल कमेटी की ओर से नेमिचंद के परिजनों और दोस्तों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता हूं. हमारी पार्टी इस पर पहले ही सार्वजनिक रूप से क्षमायाचना चुकी है. इस घटना ने हमें फिर एक बार यह सिखा दिया कि हमारे कतारों में जनदिशा और वर्गदिशा पर शिक्षा का स्तर ऊपर उठाने की सख़्त जरूरत है. मैं मीडिया के जरिए फिर एक बार जनता को यह आश्वासन देता हूं कि आने वाले दिनों में ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने पाए, हम पूरी एहतियात बरतेंगे.
प्रश्न – अन्तरराष्ट्रीय पत्रकार संघ ने पत्रकार शुभ्रांशु चैधरी को माओवादियों द्वारा धमकी देने की बात कहकर आपकी निंदा की. क्या है मामला?
उत्तर – शुभ्रांशु चैधरी छत्तीसगढ़ के एक सम्मानित पत्रकार हैं. उन्होंने सीजीनेट स्वरा के जरिए जनता के मुद्दों को एक मंच देने की कोशिश की. सलवा जुडूम के दिनों में उन्होंने उसके खिलाफ लगातार लेख लिखे थे. हम उनकी बहुत इज्जत करते रहे. हाल ही में उनकी एक किताब प्रकाशित हुई थी जिसका नाम है ‘उसका नाम वासु नहीं’. इस किताब में उन्होंने कई झूठों और अर्द्धसत्यों के साथ-साथ कई तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर भी पेश किया. आज हमारे आन्दोलन के खिलाफ शासक वर्गों द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार अभियान से उनकी पुस्तक के अंश काफी हद तक मेल खा रहे थे. यह किताब इसलिए भी विवादों के घेरे में आई थी क्योंकि उसमें उन्होंने डॉक्टर बिनायक सेन, जीत गुहा नियोगी और मुक्ति गुहा नियोगी के साथ हमारे कथित संबंधों के बारे में लिखी.
आप तो जानते ही हैं कि किसी जीवित व्यक्ति के साथ एक प्रतिबंधित संगठन से संबंध होने का आरोप लगाना, चाहे उसमें सच्चाई हो या न हो, उसकी सुरक्षा के लिए कितना खतरा हो सकता है. यह तो पत्रकारिता के नैतिक उसूलों के बिल्कुल खिलाफ है. हमारी पार्टी के अधिकृत बयानों में जो बताया गया और हमारे उच्च नेतृत्वकारी साथियों ने उन्हें जो बताया था उसे नजरअंदाज कर इधर-उधर से इकट्ठी की गई अधकचरी जानकारियों को पेश करना आदर्श पत्रकारिता कतई नहीं हो सकता. इसके बाद 25 मई को हुए झीरमघाटी हमले की पृष्ठभूमि में शुभ्रांशु ने एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने हमारी दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में हुए सांगठनिक फेरबदल का जिक्र करते हुए नेतृत्व के बीच मनमुटाव होने की मनगढ़त बातें लिखी थीं. हमने इस सबका खण्डन किया और अपना विरोध दर्ज किया. जिस प्रकार वो समझते हैं कि वो अपनी मर्जी से कुछ भी लिखने को स्वतंत्र हैं उसी प्रकार हम भी उनके गलत बयानों और झूठे आरोपों का खण्डन करने के अधिकार का प्रयोग कर लेंगे न! हमने यही किया. अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संघ को ऐसी गलतफहमी क्यों हुई हमें नहीं पता. हमारी एसजेडसी द्वारा इस संबंध में जारी प्रेस विज्ञप्ति अभी भी पब्लिक डोमेन में मौजूद है. कोई भी पढ़कर देख सकते हैं कि उसमें कहीं कोई धमकी दी गई थी क्या.