छत्तीसगढ़बस्तर

नक्सली रामन्ना से जीरम पर पूरी बातचीत

प्रश्न – क्या यह लोकतंत्र पर हमला नहीं था?
उत्तर – हम पहले भी कह चुके हैं कि शोषक शासकों को लोकतंत्र का नाम तक लेने का नैतिक अधिकार नहीं है. जिस सलवा जुडूम को सुप्रीम कोर्ट तक ने अवैध ठहराया था, जिसके बारे में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा तैयार मसौदा रिपोर्ट में यह कहा गया था कि टाटा, एस्सार जैसे कार्पोरेट घरानों के हित में ही इसे रचाया गया, ऐसे फासीवादी सलवा जुडूम के सरगना को निशाना बनाना लोकतंत्र पर हमला कतई नहीं हो सकता. इसे लोकतंत्र पर हमला बताने वालों को यह जवाब देना होगा कि सिंगारम से लेकर एड़समेट्टा तक दर्जनों गांवों में किए गए नरसंहारों के वक्त वो चुप क्यों थे. क्या महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, वीसी शुक्ल जैसे नेताओं की मौत पर ही उन्हें लोकतंत्र की याद आती है? यह सरासर दोगलापन है.

प्रश्न – नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल को बंधक बनाकर मार डालना कहां तक उचित है?
उत्तर – इस हमले में कुछ निर्दोष लोग और कांग्रेस के कुछ ऐसे नेता जो हमारी पार्टी के दुश्मन नहीं थे, भी मारे गए थे. इस पर हमारी कमेटी ने पहले ही खेद जताया. यहां पर इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि इस हमले में जितने भी लोग हताहत हुए थे वो सभी सरकारी सशस्त्र बलों और पीएलजीए के बीच हुई भीषण गोलीबारी का शिकार हुए थे. महेन्द्र कर्मा के अलावा सिर्फ नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल को छोड़कर किसी को भी हमारे साथियों ने बंदी बनाकर नहीं मारा. बाद में इस पूरी कार्रवाई पर हमने उच्च स्तर पर समीक्षा की. हमारी समीक्षा का निष्कर्ष यह है कि महेन्द्र कर्मा जैसे कट्टर जन दुश्मन का सफाया करने में ऐतिहासिक कामयाबी प्राप्त करने के बावजूद इस हमले में कुछ गंभीर गलतियां भी हुई थीं. सबसे पहले दिनेश पटेल को मारना हमारी एक बड़ी गलती थी क्योंकि उन्होंने हमारी पार्टी या आन्दोलन के खिलाफ कभी कोई काम नहीं किया था. उनका कोई जनविरोधी रिकार्ड नहीं रहा. हमारी पीएलजीए की कमांड ने, जिसने इस हमले का नेतृत्व किया था, जल्दबाजी में यह गलत निर्णय लिया था.

जहां तक नंदकुमार पटेल को मारने का सवाल है, यह बात सही है कि उन्होंने दस साल पहले गृहमंत्री रहते हुए हमारे आंदोलन का दमन करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी. लेकिन चूंकि पिछले दस सालों से प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से दूर है और व्यक्तिगत रूप से नंदकुमार पटेल हमारे आन्दोलन के खिलाफ प्रत्यक्ष रूप से आगे नहीं आ रहे थे, इसलिए उन्हें नहीं मारना चाहिए था. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार की शह पर ही यहां आज छत्तीसगढ़ में जनता पर भारी दमनचक्र चलाया जा रहा है और आदिवासियों के नरसंहार हो रहे हैं. फिर भी उस खास दौर में जबकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से नंदकुमार पटेल सारकिनगुड़ा, एड़समेट्टा जैसे नरसंहारों के खिलाफ अवाज उठा रहे थे, उन्हें मारने का निर्णय लेना सही नहीं था. इसके अलावा, गोलीबारी के दौरान भी कुछ अतिरिक्त सावधानियां बरतने से हताहतों की संख्या को कम किया जा सकता था. इन बिंदुओं को इस हमले में हुई गलतियों के रूप में हमने ठोस रूप से चिन्हित किया. इस समीक्षा को हम अपने कतारों के बीच ले जाकर शिक्षित कर रहे हैं ताकि भविष्य में ऐसी गलतियों की पुनरावृत्ति न हो. इसे आज हम आपके जरिए सार्वजनिक भी कर रहे हैं.

प्रश्न – क्या यह सही है कि यह हमला एक राजनीतिक साजिश का परिणाम था?
उत्तर – नहीं, यह सही नहीं है. ‘परिवर्तन यात्रा’ की जानकारी हमारी पीएलजीए को जनता से मिली थी. और उसके आधार पर उसने इस हमले की योजना बनाई. कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में और खासकर चुनावी फायदा उठाने के लिए उल्टे-सीधे आरोप लगा रहे हैं. यह उनके राजनीतिक दिवालिएपन को ही दर्शाता है.

प्रश्न – आपकी हिटलिस्ट में और कौन-कौन लोग हैं?
उत्तर – यह भी सही नहीं है कि हम कोई हिटलिस्ट तैयार करके चलते हैं. यह महज मीडिया का प्रचार है. हमारे आन्दोलन का उन्मूलन करने के लक्ष्य से जो नेता या अधिकारी आक्रामकता से आगे आते हैं और जो जनता के हितों के खिलाफ काम करते हैं उन्हें हम जन दुश्मन के रूप में देखते हैं. इनमें से हम किसे और किस रूप में दण्डित करते हैं, वह समय, स्थल, संदर्भ, जनता की मांग, आवश्यकता आदि कई अन्य पहलुओं पर निर्भर करता है.

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