नक्सली रामन्ना से जीरम पर पूरी बातचीत
2005 में भाजपा ने कांग्रेस के साथ सांठगांठ कर सलवा जुडूम चलाया था. उन्हीं दिनों में उसने टाटा और एस्सार के साथ दो भारी इस्पात संयंत्रों की स्थापना के लिए एमओयू पर दस्तखत किए थे. अब तो यह किसी से छिपी हुई बात नहीं रही कि कार्पोरेट लूटखसोट का रास्ता साफ करने के लिए ही सलवा जुडूम चलाया गया था. उसके बाद आपरेशन ग्रीनहंट के नाम से एक और फासीवादी अध्याय शुरू हुआ. गांव दहन, नरसंहार, बलात्कार, लूटपाट आदि सरकारी सशस्त्र बलों के रोजमर्रा का काम बन गए. रमन सरकार के आदिवासी विरोधी चरित्र को समझने के लिए यह एक उदाहरण भर है.
रमन सरकार कार्पोरेट हितों के सामने नतमस्तक होकर एक तरफ किसानों से जमीनें छीनते हुए दूसरी ओर एक/दो रुपये में किलो चावल देने का ढिंढोरा पीट रही है. भ्रष्टाचार, घोटालों में डूबे रहकर भी विकास की रट लगाते रहना उसके दोगलेपन का साफ सबूत है. कोयला घोटाला, इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाला, अनाज घोटाला आदि में रमन सरकार खूब बदनाम हुई थी. फिर भी कार्पोरेट मीडिया उसकी ‘स्वच्छ छवि’ का मनगढ़त चित्रण करता रहा है. भाजपा शासन में महिलाओं को कितनी सुरक्षा और इज्जत मिल रही है इसका अंदाजा सोनी सोड़ी, मीना खल्को, झलियामारी कांड आदि उदाहरणों से आसानी से लगाया जा सकता है.
भाजपा सरकार कर्मचारी-विरोधी सरकार के रूप में बदनाम हुई. शिक्षाकर्मियों, वनकर्मियांे, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों, पंचायत सचिवों – लगभग हर तबके ने कई बार आन्दोलन का बिगुल बजाया. सरकार ने हर संघर्ष का जवाब दमन से ही दिया. उनकी जायज मांगों को हर बार ठुकरा ही दिया.
इस प्रकार भाजपा का दस सालों का शासन जनविरोधी, दमनकारी और लूटखोर ही रहा.
प्रश्न – रमन सरकार ‘ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट’, ‘क्रेडिबुल छत्तीसगढ़’ आदि बातें कहकर विकास का दावा कर रही है. आप इसे किस रूप में देखते हैं?
उत्तर – विकास के मामले में रमनसिंह के दावों को खारिज करने के लिए सरकारी आंकड़े ही पर्याप्त हैं. रमन के दावों के विपरीत छत्तीसगढ़ की विकास दर 8 प्रतिशत के आसपास ही रह गई है जो मिजोरम जैसे कई छोटे राज्यों से भी काफी नीचे है. हालांकि विकास दर के आंकड़े यह समझने का पैमाना तो कतई नहीं है कि जनता के जीवन स्तर में कितना विकास हुआ है, फिर भी आंकड़ों के खेल में भी रमन सरकार फिसड्डी साबित हुई है. दरअसल रमन सरकार का ‘विकास’ का नजरिया ही गलत है. मुठ्ठी भर रईसजदों के विकास को वह जनता के विकास के रूप में चित्रित कर रही है. ‘ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट’ दरअसल लुटेरों का मेला था. छत्तीसगढ़ की अनमोल सम्पदाओं को, जिन पर जनता का जायज हक बनता है, की नीलामी के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया था. ‘क्रेडिबुल छत्तीसगढ़’ या ‘विश्वसनीय छत्तीसगढ़’ का नारा कार्पोरेट घरानों के हौसलों को बुलंद करने वाला नारा है, न कि जनता में विश्वास जगाने वाला. इस मेले में जितने भी पूंजीनिवेश के समझौते हुए थे उनसे न छत्तीसगढ़ की गरीबी दूर होने वाली है और न ही बेरोजगारी खत्म होने वाली. यह मंत्रियों और अधिकारियों के जेबें गर्म करने का नायाब हथकंडा भी था.
प्रश्न – आप पर रमनसिंह ‘विकास विरोधी’ का आरोप लगा रहे हैं. इस पर आप क्या कहेंगे?
उत्तर – हां, हम उन मुठ्ठी भर शोषक-लुटेरों के ‘विकास’ के विरोध में ही खड़े हैं, जिनकी सेवा में रमनसिंह पूरी तरह समर्पित हैं. छत्तीसगढ़ की धरती को टाटा, एस्सार, जिन्दल, मित्तल, वेदांता, नेको जयसवाल आदि कार्पोरेट गिद्धों की जागीर बनाने के उनके सपनों को हम कभी पूरा नहीं होने देंगे. अगर इसी का नाम ‘विकास विरोधी’ है तो हम इस आरोप को गर्व से कबूल करेंगे.
प्रश्न – रावघाट परियोजना का आप क्यों विरोध करते हैं, जबकि यह कहा जा रहा है कि इसे चालू नहीं करने पर भिलाई इस्पात संयंत्र को कच्चामाल की कमी पड़ जाएगी?
उत्तर – रावघाट परियोजना का विरोध जनता ने 1990 के दशक की शुरूआत में ही प्रारम्भ किया था. हमारी पार्टी के उस इलाके में पहुंचने से भी पहले से. बाद में हमारी पार्टी ने इस संघर्ष का नेतृत्व किया. जनता का विरोध जायज है क्योंकि इस परियोजना से यहां की जमीनों, जंगलों और नदियों को, कुल मिलाकर यहां के समूचे जनजीवन को भारी खतरा है. यह परियोजना इस क्षेत्र की जनता के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान खड़ी कर देगी. एक व्यापक इलाके में तबाही मचाकर आखिर किन वर्गों का विकास किया जाने वाला है? हमारा मानना है कि भिलाई स्टील प्लांट का कच्चामाल संकट महज एक बहाना है. यहां पर टाटा, नेको जैसी बड़ी कार्पोरेट कम्पनियों की लूटखसोट का खेल शुरू होने वाला है. सार्वजनिक कम्पनी सेल इसका रास्ता साफ करने वाले दलाल का काम कर रही है.