नक्सली रामन्ना से जीरम पर पूरी बातचीत
प्रश्न – तो फिर इस संसदीय लोकतंत्र के विकल्प में आप क्या पेश करना चाहेंगे?
उत्तर – हमारा स्पष्ट मत है कि जनता का जनवादी गणतंत्र ही, जिस पर मजदूरों, किसानों, निम्न एवं मध्यम पूंजीपतियों के संयुक्त मोर्चे की हुकूमत हो, एक मात्र और सच्चा विकल्प है. मौजूदा व्यवस्था पर साम्राज्यवादियों, दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों और बड़े जमींदारों का नियंत्रण है. यह शोषित और उत्पीड़ित जनता के लिए तानाशाही के अलावा कुछ नहीं है. इसलिए इसे ध्वस्त कर जनता के सच्चे लोकतंत्र का निर्माण करना ही एक मात्र विकल्प है. दशकों से जारी क्रांतिकारी आंदोलन की बदौलत आज दण्डकारण्य समेत देश के कुछ और हिस्सों में जनता की जनवादी सत्ता के अंगांे का निर्माण हो रहा है. दण्डकारण्य में ‘क्रांतिकारी जनताना सरकार’ के नाम से मशहूर इस नई जनसत्ता के अंगों के नेतृत्व में जनता के सच्चे विकास को केन्द्र बिन्दु में रखते हुए कई काम हो रहे हैं. क्रांतिकारी भूमि सुधार, सिंचाई की व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में नए बदलाव हो रहे हैं. हालांकि यह आज अत्यंत प्राथमिक स्तर पर, बहुत ही सीमित क्षेत्रों में मौजूद है, लेकिन यह प्रगतिशील है और बढ़ते क्रम में है. यह उदीयमान व्यवस्था जनता को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाली है. यही देशवासियों के सामने मौजूद विकल्प है.
प्रश्न – अलग-अलग चुनावी पार्टियों के प्रति आपका रुख कैसे रहेगा?
उत्तर – इस चुनाव बहिष्कार अभियान में हमारा मुख्य नारा होगा – ‘‘भ्रष्टाचारी, जनविरोधी, देशद्रोही और फासीवादी कांग्रेस और भाजपा को मार भगाओ’’. हम समझते हैं कि देश में साम्राज्यवाद-निर्देशित नवउदार नीतियों को लागू कर देश की असीम प्राकृतिक सम्पदाओं, श्रम शक्ति और तमाम अन्य संसाधनों की कार्पोरेट लूटखसोट में इन्हीं दो पार्टियों की प्रमुख भूमिका है. छत्तीसगढ़ में पहले सलवा जुडूम और अब आपरेशन ग्रीनहंट के नाम से जारी अत्यंत विनाशकारी दमन अभियानों के संचालन में, जिसमें सैकड़ों लोगों की जानें गईं, इन्हीं दो पार्टियों का हाथ रहा. इसलिए हम जनता का आह्वान कर रहे हैं कि इन दोनों पार्टियों के नेताओं को गांवों में कदम रखने मत दें. उन्हें मार भगा दें. जहां तक दूसरी पार्टियों का सवाल है, जैसे कि भाकपा, माकपा, बसपा और गोण्डवाना गणतंत्र पार्टी, छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच आदि – इनके पास भी कोई वैकल्पिक कार्यक्रम नहीं है. ये सभी पार्टियां कमोबेश लुटेरे वर्गों का ही प्रतिनिधित्व करती हैं. वे हमारे क्षेत्रों में आती हैं तो जनता उनका विरोध करेगी.
प्रश्न – पिछले दस सालों में भाजपा शासन का आप कैसे मूल्यांकन करते हैं?
उत्तर – एक शब्द में कहा जाए तो भाजपा शासन दमन और विनाश का पर्याय रहा. 1 नवम्बर 2000 को जब छत्तीसगढ़ प्रदेश का गठन हुआ था तब लोगों ने यह सपना देखा था कि उनके जीवन में कुछ तो बदलाव आएगा. लेकिन आज जब इसके 13 साल पूरे होने को हैं, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. शुरूआती तीन वर्षाें में जब कांग्रेस का शासन था राज्य परिवहन निगम का निजीकरण किया गया था. अजीत जोगी सरकार ने शिवनाथ नदी के पानी को एक निजी कम्पनी के हाथों बेच डाला था. क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलने के लिए बस्तर में पहली बार अर्द्धसैनिक बलों को उतारा था. उस समय केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार ने बाल्को को बेच दिया तो राज्य सरकार ने हायतौबा मचाई थी लेकिन खुद उसने भी राज्य में बड़े व विदेशी पूंजीपतियों का ही हित पोषण किया था. विश्व बैंक की शर्तों का पालन करते हुए सरकारी नौकरियों में भर्ती बंद कर दी थी. जनता में बढ़े असंतोष पर सवार होकर भाजपा ने दिसम्बर 2003 में छत्तीसगढ़ में पहली बार अपनी सरकार बना ली.
विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने जिन नीतियों का विरोध किया था सत्ता में आने के बाद ठीक उन्हीं नीतियों पर अमल कर अपने दोगलेपन का साफ प्रदर्शन किया. अपार खनिज व वन सम्पदाओं से समृद्ध छत्तीसगढ़ में पिछले दस सालों में कार्पोरेट लूटखसोट का नंगा नाच चलता रहा. उसकी औद्योगिक नीति, खनन नीति आदि सभी जन विरोधी ही हैं. देशवासियों के हितों पर कुठाराघात करते हुए उसने दलाल पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए लाल कालीन बिछा दी. कांग्रेस सरकार ने सिर्फ शिवनाथ नदी को बेचा था तो रमन सरकार ने कई अन्य नदियों के पानी को भी बेच डाला. यहां तक कि जांजगीर-चांपा जिले में रोगदा बांध, जिससे नौ सौ एकड़ खेतों को सिंचाई का पानी उपलब्ध हुआ करता था, को भी पाटकर एक निजी कम्पनी को बेचने का ‘श्रेय’ भी रमन सरकार को ही जाता है. धान का कटोरा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ में 2000-11 के बीच 14,340 किसानों ने आत्महत्या कर ली. इसी से समझा जा सकता है कि यह सरकार किसानों के लिए कितनी मददगार रही.