अब सोशल मीडिया पर बोले माओवादी
रायपुर | संवाददाता: वर्षा डोंगरे, एलेक्स पॉल मेनन और प्रभाकर ग्वाल, जस्टिस कर्नन समेत दूसरे सरकारी कर्मचारियों के मुद्दे पर माओवादियों ने एक बयान जारी किया है.माओवादियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प की ओर से जारी बयान में सरकार को लोकतंत्र विरोधी बताया गया है.
गौरतलब है कि रायपुर जेल की सहायक अधीक्षक वर्षा डोंगरे ने बस्तर के आदिवासियों पर सुरक्षाबलों द्वारा कथित अत्याचार को लेकर सोशल मीडिया में एक पोस्ट लिखा गया था. इसके बाद वे ईमेल पर आवेदन दे कर छुट्टी पर चली गई थीं. बिना स्वीकृति के छुट्टी पर जाने और सोशल मीडिया पर पोस्ट से नाराज़ सरकार ने इसे अनुशासनहीनता मानते हुये निलंबित कर दिया.
अब माओवादियों ने सरकार के इस क़दम की आलोचना की है. माओवादी प्रवक्ता विकल्प ने अपने बयान में कहा है कि- सोशल मीडिया के अपने फेसबुक वॉल पर बस्तर की स्थिति पर लिखी गयी पोस्ट के लिए रायपुर जेल की सहायक जेल अधीक्षक सुश्री वर्षा डोंगरे को हाल ही में निलंबित करके छत्तीसगढ़ की ब्राह्मणीय हिन्दुत्ववादी भाजपा सरकार ने एकबार फिर अपने दलित विरोधी चेहरे को स्वयं ही बेनकाब किया है. यह न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात है बल्कि घोर अलोकतांत्रिक व फासीवादी कदम है जिसकी हर तरफ से निंदा होनी चाहिए.
माओवादी प्रवक्ता ने बयान में कहा है कि राज्य और केंद्र की सरकार अपने ही संविधान, संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के प्रति रत्तीभर सम्मान की भावना नहीं रखती हैं. ये सरकारें तमाम शासकीय अमले का भगवाकरण करने पर तुली हुई हैं. प्रवक्ता ने कहा है-जो भी इन सरकारों या इनकी कार्यप्रणाली पर उंगली उठाते हैं, उन पर कार्रवाई करती हैं, निलंबित करती हैं, सेवा से बर्खास्त करती हैं, यहां तक कि जेल भेजती हैं. वर्षा का मामला न पहला है और न ही आखिरी होगा. यह सिलसिला तो जारी रहेगा और तेज भी होगा…यह सिलसिला तो जारी रहेगा और तेज भी होगा.
विकल्प ने कहा है कि “पूर्व में जेएनयु मामले पर सोशल मीडिया में अपनी पोस्ट के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एलेक्स पॉल मेनन को नोटिस थमा दी गयी थी. मौजूदा न्याय प्रणाली के ही तहत काम करने वाले, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के नाजायज दबाव के आगे न झुकने वाले एवं बेकसूर आदिवासियों को माओवादियों के नाम पर जबरन झूठे मामलों में फंसाने व जेल भेजने से इनकार करने वाले सुकमा के पूर्व न्यायाधीश प्रभाकर ग्वाल को नौकरी से बर्खास्त करने का मामला बहुत पुराना नहीं है.”
माओवादियों ने कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सीएस कर्नन के मुद्दे पर भी टिप्पणी की है. माओवादी प्रवक्ता ने कहा है कि सरकारें चाहती हैं कि तमाम शासकीय कर्मचारी व लोक सेवक खासकर दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक व पिछड़े तबकों के शिक्षाकर्मी, कर्मचारी व लोक सेवक ड्यूटी के नाम पर यानी शासकीय सेवा के नाम पर शोषक-शासक वर्गों की चुपचाप सेवा करें. अन्याय के खिलाफ आवाज न उठाएं, अपनी वर्गीय जड़ों को न पहचाने-भूल जाएं. एक शब्द में कहा जाए तो वे अपने अस्तित्व, अस्मिता, आत्मसम्मान को भुला दें. अपनी अलग पहचान न बनावें. वे सिर्फ और सिर्फ सरकारी नौकर-चाकर बने रहें.
माओवादियों ने सरकारी कर्मचारियों से जनता के प्रति ईमानदारी, निष्ठा व समर्पित भावना के साथ काम करने की अपील की है.