ख़बर ख़ासछत्तीसगढ़ विशेष

बस्तर में टोरा तेल प्रसंस्करण केंद्र बंद, महिलाएं बेरोजगार

जगदलपुर | संवाददाताः छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों की बड़ी आबादी के लिए वनोपज संग्रह आय का मुख्य स्रोत है. लेकिन इन वनोपज के प्रसंस्करण की दिशा में शुरु किए गए काम ठप्प पड़ गए हैं. जिसके कारण आदिवासी यहां से वहां भटक रहे हैं.

महुआ, टोरा, चिरोंजी, रागी, कोदो, कुटकी, इमली और तेंदूपत्ता बस्तर की मुख्य वनोपज हैं. साल भर यहां के आदिवासी ग्रामीण इन्हीं वनोपजों से गुजारा करते हैं. प्रशासन के उदासीन रवैये के चलते इन वन उपजों की न तो सही तरीके से प्रोसेसिंग हो पाती है और न ही ब्रांडिंग हो पा रही है. इनके प्रसंस्करण के लिए बड़े-बड़े दावे तो किए गए लेकिन धरातल पर यह दावे खोखले ही साबित हो रहे हैं.

वहीं जिन वनोपजों के लिए प्रसंस्करण केंद्र खोले भी गये, वह रखरखाव के अभाव में कबाड़ हो रहे हैं.

कई केंद्र बंद भी हो चुके हैं.

बस्तर की एक मुख्य वनोपज कहे जाने वाले टोरा से तेल निकालने का प्रसंस्करण केंद्र भी प्रशासन की लापरवाही के चलते बंद हो गया है. इसके चलते इस काम में लगी ग्रामीण महिलाओं का रोजगार छिन गया है.

टोरा बीज का करते हैं संग्रहण

दरअसल बस्तर जिले में “वन धन विकास केंद्र” के तहत धुरागांव में टोरा तेल प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किया गया था. जहां पिछले कई महीनों से टोरा से तेल निकालने का प्रसंस्करण का काम बंद पड़ा है. इससे यहां स्थापित मशीनें जंग खा रही हैं.

महिलाओं को लघु वनोपज के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने धूरागांव में टोरा से तेल निकालने के लिए प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किया गया था.

शुरुआत में महिलाओं को अच्छा काम मिल रहा था. जिससे महिलाओं की आमदनी भी हो रही थी.

लेकिन पिछले लंबे समय से प्रसंस्करण का कार्य बंद पड़ा हुआ है.

दो सालों से बंद पड़ा है प्रसंस्करण केंद्र

बस्तर में ग्रामीण बड़ी संख्या में महुआ बिनने के बाद टोरा के बीज संग्रहण करते हैं. इसके बाद तेल निकालने इसे शहर तक पहुंचाते हैं. ऐसे में अगर धूरागांव प्रसंस्करण केंद्र में टोरा से तेल निकाला जाता तो यहां की महिलाओं को रोजगार मिलने के साथ ही आसपास के गांव के लोगों को भी इससे सुविधा मिलती है.

बस्तर में टोरा तेल की अच्छी खासी खपत है. टोरा तेल का इस्तेमाल शरीर में मालिश और दीपावली में दिया जलाने के साथ ही रोजर्मरा की कई चीजों में इस्तेमाल होता है.

ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं शहर में टोरा तेल लेकर पहुंचती हैं और इसे विक्रय करती हैं. इससे इन महिलाओं को अच्छी आमदनी भी होती है.

धुरागांव में टोरा तेल प्रसंस्करण केंद्र के कर्मचारियों का कहना है कि जब मांग रहती है तब टोरा तेल निकाला जाता है. यही कारण है कि दूसरे मौसम में गांव की ग्रामीण महिलाएं बेरोजगार हो जाती हैं. अगर बस्तर के टोरा तेल की ब्रांडिंग की जाती तो अच्छी बाज़ार उपलब्ध होने की पूरी संभावना थी.

प्रशासन इस मामले में पूरी तरह से उदासीनता बरत रहा है, जिसके चलते बस्तर के इस मुख्य वनोपज की ब्रांडिंग नहीं हो पा रही है.

error: Content is protected !!