आडवाणी उवाच
कनक तिवारी
अहमदाबाद के एक कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठतम नेता और नरेन्द्र मोदी से प्रधानमंत्री पद की दौड़ में परास्त हो गए लालकृष्ण आडवाणी ने भावविभोर होकर अपने पूर्व शिष्य की पीठ ठोंकी है. आडवाणी ने कहा कि 1952 में हुए देश के प्रथम लोकसभा चुनाव से लेकर आज तक सत्ता हथियाने का भाजपा का जितना सुगठित अभियान मोदी की अगुवाई में चलाया जा रहा है उसका कोई मुकाबला नहीं है.
एक अपुष्ट समाचार के अनुसार आडवाणी ने यहां तक भविष्यवाणी की कि मोदी वाजपेयी से बेहतर प्रधानमंत्री साबित होंगे. आडवाणी लगातार वाजपेयी से नेतृत्व की दौड़ में पराजित होते रहे हैं. अयोध्या के लिए टोयोटा रथ यात्रा की सफलता के बाद आडवाणी को लगा कि वे प्रधानमंत्री बनने बनने को हैं. अचानक हवाला कांड की आड़ में बाजपेयी ने पैरों के नीचे से उनकी दरी खींच ली. वाजपेयी ने अपने हुनर के दम पर पहले 13 दिन, फिर 13 महीने और फिर 26 सहयोगी दलों की मदद से पूरे 5 साल की सरकार चलाई.
यदि वे गंभीर रूप से अस्वस्थ नहीं हो गए होते तो उनके नेतृत्व को कोई खतरा भी नहीं था. आडवाणी की कट्टर छवि के मुकाबले वाजपेयी उदार हिन्दुत्व के प्रतिनिधि माने जाते रहे हैं. आज हालत यह है कि कट्टर आडवाणी कट्टरतम मोदी के मुकाबले उदार हिन्दुत्व के प्रतिनिधि दीखने लगे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसवेवक संघ ने इस बार कट्टर हिंदुत्व को मुख्य एजेंडा बनाया है. इस चैखटे पर सबसे ज़्यादा मोदी का चेहरा फिट बैठता है. मोदी के मनोनयन के खिलाफ आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. उन्हें लगा कि उन्हें मनाया जाएगा. लेकिन संघ ने उन्हें उनकी औकात बता दी.
देश में लोकसभा का यह पहला चुनाव होने जा रहा है, जिस पतंग की डोर कारपोरेट दुनिया के हाथ है. भारत में अब लोकतंत्र कहां बचा? लोकसभा तो बाज़ारतंत्र के हत्थे चढ़ चुकी है. अरबपति और खरबपति मिलकर तय करेंगे कि देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा. खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उनका भोंपू बन गया है. अंधेरे की इन्हीं ताकतों ने तो तय किया था कि देश का संचार मंत्री ए. राजा जैसे भ्रष्ट व्यक्ति को बनाया जाए. अब ये ही लोग मिलकर लोकसभा गठित करेंगे. फिर मंत्रिमंडल भी बनाएंगे. अवाम को तो बस टुकुर टुकुर देखना है. आडवाणी बेचारे भी क्या करें! वे एक बार फिर प्रधानमंत्री की रेस से बाहर हो गए हैं.
खिलाड़ी रिटायर होने के बाद कोच बन पाने की पूरी कोशिश करता है. वाजपेयी से बड़ा बन पाना न तो मोदी की फितरत में है और न ही नसीब में. जो आडवाणी अपना भविष्य नहीं देख पाए, वे भला मोदी का भविष्य कैसे देख सकते हैं.
* उसने कहा है-14