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फ्लाई एश से जिंदगी हो रही राख

रायपुर। संवाददाताः छत्तीसगढ़ में फ्लाई एश की समस्या से लोगों की जिंदगी राख हो रही है.

छत्तीसगढ़ के आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी शुक्रवार की दोपहर जब पर्यावरण संरक्षण मंडल के कार्यालय में ताप विद्युत केंद्रों से निकलने वाली लाखों टन फ्लाई एश यानी राख के उपयोग और निष्पादन को लेकर बैठक कर रहे थे, ठीक उसी वक्त कोरबा के किसान फ्लाई एश से मची तबाही के बाद अपना माथा पकड़ कर बैठे थे.

दरअसल, कोरबा के खरमोरा विद्युत सब स्टेशन व फल और सब्जी मंडी के पीछे हजारों टन फ्लाई एश डंप किया गया था. गुरूवार रात तेज बारिश के बाद खरमोरा सब स्टेशन की दीवार टूट गई, जिससे सब स्टेशन समेत आसपास के इलाके और खेतों में फ्लाई एश की मोटी परत चढ़ गई.

किसानों के मुताबिक, उनके खेतों में केवल राख ही राख दिखाई दे रही है. पूरी फसल चौपट हो गई है.

ताप विद्युत केंद्रों से निकलने वाले फ्लाई एश को हसदेव नदी के किनारे भी डंप किया जा रहा है. बारिश के बाद फ्लाई एश नदी में बह रहा है, जिससे नदी का अस्तित्व भी खतरे में पड़ता जा रहा है.

कोरबा के स्थानीय निवासियों के लिए फ्लाई एश की समस्या कोई नई नहीं है. ठंड हो, गर्मी या बरसात, स्थानीय लोगों को हर मौसम में इस समस्या से दो-चार होना ही पड़ता है. लोग इस समस्या के समाधान के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाकर देख रहे हैं, लेकिन समस्या का कोई समाधान होता दिख नहीं रहा है.

कोरबा के ताप विद्युत केंद्रों से हर दिन सैकड़ों टन फ्लाई एश निकलता है. इस फ्लाई एश को रखने के लिए बनाए गए अधिकांश तालाब भर चुके हैं. बंद हो चुकी खदानों को भरने, सड़क बनाने या ईंट बनाने के लिए फ्लाई एश का उपयोग पिछले कई सालों से किया जा रहा है, लेकिन इसकी खपत नहीं हो पा रही है.

गरमी के दिनों में कोरबा जैसे शहर और आस-पास के सैकड़ों गांवों में, कई किलोमीटर तक जैसे फ्लाई एश की आंधी चलती है, वहीं बारिश के दिनों में पानी के साथ बहती हुई लाखों टन राख, खेतों को बर्बाद करती हुई, पानी के स्रोत को भी प्रदूषित करती जाती है.

साल-दर-साल बढ़ती जा रही खपत की मियाद

ताप बिजली घरों से निकलने वाली फ्लाई एश के 100 फ़ीसदी उपयोग के लिए तय की गई मियाद साल दर साल बढ़ती चली जा रही है. साल 1999 में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राख के 100 फ़ीसदी उपयोग के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन इस आदेश पर कई राज्यों में आज तक अमल नहीं किया गया.

देश में 2022-23 की पहली छमाही में कुल 20,5,623 मेगावाट की क्षमता वाले 175 ताप विद्युत केंद्रों से 142.0653 मिलियन टन फ्लाई एश का उत्पादन हुआ. केंद्र सरकार का दावा है कि इसमें से 111.0124 मिलियन टन फ्लाई एश का उपयोग किया गया है.

छत्तीसगढ़ में 23 ताप बिजली घरों से 23,520 मेगावाट बिजली उत्पादन के दौरान 20.6330 मिलियन टन फ्लाई एश का उत्सर्जन हुआ है, लेकिन इसमें से केवल 14.5693 मिलियन टन का ही उपयोग हो पाया है.

हजारों मिलयन टन फ्लाई एश डंप

2022-23 की पहली छमाही में कोरबा स्थित एनटीपीसी के 2,600 मेगावाट बिजलीघर में उत्पादित 2.5562 मिलियन टन राख में से केवल 19.59 प्रतिशत यानी 0.5008 मिलियन टन फ्लाई एश का ही उपयोग किया गया.

इसी तरह बिलासपुर के सीपत स्थित एनटीपीसी के 2980 मेगावाट क्षमता वाले बिजलीघर में से निकले 2.5801 मिलियन टन राख में से केवल 0.9338 मिलियन टन यानी 36.19 प्रतिशत का ही उपयोग हो पाया.

रायगढ़ के लारा स्थित 1600 मेगावाट के बिजलीघर से निकलने वाले 1.8282 मिलियन टन फ्लाई एश में से केवल 16 प्रतिशत यानी 0.3034 मिलियन टन का ही उपयोग हो पाया.

हालत ये है कि राज्य सरकार के कोरबा स्थित 500 मेगावाट के श्यामा प्रसाद मुखर्जी बिजली घर से निकले 0.5802 मिलियन टन में से 0.2394 मिलियन टन यानी केवल 41.26 प्रतिशत फ्लाई एश का ही उपयोग हो पाया.

वहीं राज्य सरकार के कोरबा के ही 1,340 मेगावाट क्षमता के हसदेव बिजली घर से निकले 1.3803 मिलियन टन में से 0.4088 मिलियन टन यानी 29.62 प्रतिशत फ्लाई एश का ही उपयोग हो पाया.

2022-23 की पहली छमाही के आंकड़ों के अनुसार देश के कुल 175 ताप विद्युत केंद्रों में कुल 205623 मेगावाट बिजली का उद्पादन हुआ है. इसमें से कुल 142.0653 मिलियन टन फ्लाई एश का उत्पादन हुआ है, जिसमें से केवल 111.0124 मिलियन टन यानी 78.14 प्रतिशत फ्लाई एश का ही उपयोग किया गया है.

राख से भर चुके हैं सभी एश डाइक

छत्तीसगढ़ के आवास एवं पर्यावरण विभाग से प्राप्त दस्तावेज़ के अनुसार, अकेले कोरबा के एनटीपीसी से निकलने वाली फ्लाई एश को रखने के लिए एश डाइक यानी तालाबनुमा बांध ‘धनरास राखड़बांध’ में मार्च 2023 तक 1,056 लाख मेट्रिक टन राख एकत्र हो चुका था.

इसी तरह कोरबा में ही राज्य सरकार के पावर प्लांट से निकलने वाली राख के लिए बनाए गए ‘डगनियाखार, लोतलोता और झाबू राखड़बांध’ में जहां 520.12 लाख मेट्रिक टन फ्लाई एश एकत्र है, वहीं ‘पंडरीपानी राखड़बांध’ में 192.557 लाख मेट्रिक टन राख जमा हो चुका है.

आवास एवं पर्यावरण विभाग के अनुसार अप्रैल 2023 तक कोरबा में कुल 1,962.547 लाख मेट्रिक टन फ्लाई एश एकत्र हो चुका है और यह आंकड़ा हर दिन बढ़ता ही जा रहा है. कोरबा और आसपास के इलाके में राख के कई पहाड़ खड़े हो गए हैं, जो बारिश के दिनों में घुलकर खेतों और जल स्रोतों तक पहुंचता है.

अवैध तरीके से डंप हो रही फ्लाई एश

कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, बिलासपुर जैसे ज़िलों में बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियां फ्लाई एश को लो-लाइन एरिया में डालने के नाम पर अवैध तरीके से गांव की सार्वजनिक जमीन, खेत, जंगल, नाला, तालाब, सड़क, श्मशान, स्कूल के मैदान और शहर के भीतर तक राख डाल रही हैं, जिससे जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. लेकिन इधर-उधर राख फेंकने का सिलसिला ख़त्म ही नहीं हो रहा है.

फ्लाई एश के कारण होने वाले नुकसान को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक, कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी राख को यहां-वहां फेके जाने और इसके दुष्प्रभावों को लेकर दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए, तीन अधिवक्ताओं को न्याय मित्र बना कर इसकी जांच के निर्देश दिए थे.

कोरबा में प्रदूषण और राख को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दर्ज हैं.

फ्लाई एश के मसले पर सरकार ने निर्देश दिए थे कि कोयला खदानों से खाली होने वाली ज़मीन को भरने के लिए इस राख का उपयोग किया जाए.

कोरबा की तीन कोयला खदानें इसी शर्त पर आवंटित की गई थीं, लेकिन इस शर्त का न तो पालन हो रहा है और न ही पालन कराने में किसी की दिलचस्पी है.

स्वास्थ्य पर पड़ रहा प्रतिकूल असर

ताप विद्युत केंद्रों से निकलने वाली फ्लाई एश के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर तो पड़ ही रहा है, ज़मीन की उर्वरता भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है. चार साल पहले राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र ने एक सर्वेक्षण के बाद दावा किया कि सिंचाई का पानी भी फ्लाई ऐश से दूषित होता है जो धान के खेतों को प्रभावित करता है. इसके अलावा फसल उत्पादकता में कमी के कारण कई किसानों ने कथित तौर पर अपनी जमीनें छोड़ दी हैं.

दो साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार के राज्य स्वास्थ्य अनुसंधान ने एक सर्वेक्षण के बाद दावा किया था कि कोरबा में वायु प्रदूषण, राष्ट्रीय मानक स्तर से 28 गुणा अधिक है और यह ख़तरनाक स्तर पर है.

राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र की दो साल पहले जारी की गई एयर क्वालिटी रिपोर्ट-2021 के अनुसार भारत में हवा के अंदर सूक्ष्म कणों, पार्टिकुलेट मैटर 2.5 या पीएम 2.5 का मानक स्तर 60μg/m3 और दुनिया में 10µg/m3 निर्धारित है. लेकिन कोरबा में राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र ने अपने सर्वेक्षण में जिन 14 इलाकों में इसकी जांच की, वहां यह ख़तरनाक स्तर पर पाया गया.

इमली छापर क्षेत्र की हवा में पीएम 2.5 का स्तर 1,613.3 था तो गांधी नगर सिरकी में यह 1,699.2 था. बालको चेकपोस्ट में पीएम 2.5 का स्तर सबसे कम 150.3 था जो कि मानक स्तर कहीं ज़्यादा था.

कोरबा के कुछ इलाको में सिलिका मानक स्तर 3 के मुकाबले 89.9, निकल के मानक स्तर 0.0025 के मुकाबले 0.050, लीड यानी सीसा के मानक स्तर 0.15 के मुकाबले 0.117, मैगनीज़ के मानक स्तर 0.15 के मुकाबले 0.994 पाया गया.

इन सबके कारण कोरबा में रहने वाले लोगों के स्नायु तंत्र, फेफड़े, श्वसन तंत्र, ह्रदय, किडनी, त्वचा, रक्त और आंख पर इसका सीधा असर पड़ा है.

जीपीएस से निगरानी के निर्देश

राज्य के आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी ने शुक्रवार को नवा रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के कार्यालय में राज्य के सभी क्षेत्रीय अधिकारियों की समीक्षा बैठक ली.

इस बैठक में ओपी चौधरी ने उद्योगों द्वारा फ्लाई ऐश के परिवहन एवं निपटारे के नियमों का कड़ाई से पालन कराने के निर्देश दिए.

उन्होंने फ्लाई ऐश लाने, ले जाने के लिए उपयोग किए जा रहे वाहनों में जीपीएस सिस्टम व जियो टेगिंग के उपयोग के निर्देश भी दिए, जिससे फ्लाई ऐश इधर-उधर न फेका जा सके.

हालांकि मंत्री के निर्देशों का कितना पालन होता है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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