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LG की प्रधानता में बदलाव नहीं

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली में उप राज्यपाल की प्रधानता स्वीकार की है. न्यायालय ने अंतरिम आदेश देते हुये कहा दिल्ली सरकार द्वारा दो अफसरों की तैनाती के मुद्दे को उप राज्यपाल के समक्ष रखना होगा. उल्लेखनीय है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है तथा दिल्ली में अफसरों की तैनाती पर मोदी सरकार तथा आप सरकार में ठन गई है. न्यायालय ने केन्द्रीय गृह मंत्र3लय द्वारा 21 मई को जारी अधिसूचना पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने पहले की गई नियुक्तियों का डाटा अगले सुनवाई में 11 अगस्त को पेश करने का आदेश दिया है. केंद्र सरकार को राहत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्रीय गृहमंत्रालय द्वारा 21 मई को जारी अधिसूचना पर रोक लगाने की मांग खारिज कर दी. इस अधिसूचना में केंद्र ने कहा था कि दिल्ली में प्रमुख नौकरशाहों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार उप-राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आता है. न्यायाधीश न्यायामूर्ति राजीव शकधर ने राजधानी के प्रशासनिक तंत्र में उप-राज्यपाल की प्रधानता में बदलाव करने से इनकार कर दिया. वहीं केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिल्ली और अन्य संघ शासित राज्यों में पूर्व में अफसरों की तैनाती की प्रथा के संबंध में हलफनामा दायर करने के लिए कहा है.

न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को सुनिश्चित करते हुए कहा, “पूर्व में क्या हो रहा था? क्या पहले की दिल्ली सरकारों को अफसरों की तैनाती और तबादले का अधिकार था? मुझे इस संबंध में तथ्यात्मक डाटा चाहिए कि पूर्व में दिल्ली और अन्य संघ शासित राज्यों में यह प्रक्रिया कैसे पूरी की जाती थी.”

अदालत ने अंतरिम उपाय के रूप में कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा अफसरों की तैनाती के दो आदेशों को विवेचना के लिए उप-राज्यपाल के समक्ष रखना होगा और अगर उप-राज्यपाल इस प्रस्ताव के संबंध में कोई सफाई चाहते हैं तो वे मंत्रिपरिषद से इसकी मांग कर सकते हैं.

इस मामले में दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह समेत, एच.एस.फुल्का, दयान कृष्णन, राहुल मेहरा और रमण दुग्गल जैसे दिग्गज वकील उपस्थित रहे.

सुनवाई के दौरान इंदिरा जयसिंह ने 21 मई को जारी अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए न्यायालय से इस पर रोक लगाने की मांग की. उन्होंने दलील दी कि इस अधिसूचना के कारण दिल्ली सरकार के दिन-प्रतिदिन के कामकाज और प्रशासन में बाधा उत्पन्न की जा रही है.

उन्होंने कहा, “निर्वाचित सरकार की शक्तियों पर प्रतिबंध महत्वपूर्ण विभागों जैसे बिजली, पानी और स्वास्थ्य के कामकाज को प्रभावित कर रहा है और उनमें लगभग एक ठहराव सा आ गया है.”

उन्होंने कहा, “कौन से कानूनी अधिकार के तहत यह अधिसूचना जारी की गई है? ऐसा कोई अधिकार नहीं है.”

उन्होंने कहा, “आप मुझे कोई अधिकारी सौंपते हैं, समस्या इसमें नहीं है लेकिन इसका निर्णय मुझ पर है कि मैं उक्त अधिकारी को किस विभाग में नियुक्त करती हूं.”

केंद्र सरकार की ओर से दलील देते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता संजय जैन ने आप सरकार के तर्क का विरोध किया. उन्होंने कहा कि कैडर को नियंत्रित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और यह सरकार पर है कि वह किस अधिकारी को किस संघ शासित राज्य के किस विभाग में तैनात करती है. दिल्ली सरकार का तर्क है कि उसे नियुक्तियों का अधिकार न होने से कामकाज प्रभावित हो सकता है.

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