स्वास्थ्य

पीने योग्य पानी 3 फीसदी

चित्रकूट | एजेंसी: वैज्ञानिक प्रो. विवेक नारायण भावे ने कहा कि पृथ्वी में 97 प्रतिशत जल है, लेकिन वह पीने योग्य नहीं है. मात्र 2.8 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है, जो भू-जल और सतह जल के रूप में उपलब्ध है, मगर इसके गैरजिम्मेदाराना प्रयोग से इसकी मात्रा दिन-ब-दिन घट रही है.

महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में भौतिक एवं संस्कृतिक पर्यावरण प्रदूषण की चुनौतियां विषय पर आयोजित कार्यक्रम में भावे ने कहा, “हमारी नगरीय जीवनशैली में व्यक्ति को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रतिदिन एक हजार लीटर जल की आवश्यकता होती है, जबकि इसके अनुपात में जल संचयन के उतने उत्साहवर्धक प्रयास नहीं हो रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “हमें इस विचार को मन में गहराई से बैठान होगा कि पृथ्वी में मानव के लिए असीमित मात्रा में जल नहीं है. पानी के संरक्षण और इसके सदुपयोग को अपनी आदत बनाकर हम लंबे समय तक पृथ्वी पर पेयजल की उपलब्धता को सुनिश्चित कर सकते हैं.”

उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों- रामायण, वेद, उपनिषदों के उद्धरणों से सिद्ध किया कि भारतीय ऋषि-मुनि पर्यावरण के प्रति न केवल जागरूक थे, बल्कि उन्होंने उसे संरक्षित व संपोषित करने की विधियां भी विकसित की थीं. दुर्भाग्य का विषय यह है कि हमने पश्चिम के अंधानुकरण से जो विधियां विकसित कीं, उससे पर्यावरण संवरने के बजाय बिगड़ा ही है.

जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का जिक्र करते हुए प्रो. भावे ने कहा कि रेनफॉल पैटर्न बदल रहा है. देश के कई क्षेत्रों में सामान्य वर्षा तो होती है, किंतु उसका 90 प्रतिशत जल एक दो दिन में ही गिर जाता है और यह आपदा के रूप में सामने आता है. इसे संरक्षित करने की कारगर प्रणाली अब तक विकसित नहीं हुई है, उन्होंने जल संचयन के अच्छे प्रयोगों की जानकारी दी और उसे अपनाने की सलाह दी.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरेश चंद्र गौतम ने छात्रों का आह्वान किया कि वे प्रकृति के प्रति परस्पर पूरकता का भाव रखकर ही पर्यावरण को संतुलित रख सकते हैं.

प्रो. गौतम ने विश्व पर्यावरण दिवस को एक प्रतीक दिवस न मानकर पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने के पर्व के रूप में अंगीकार करने की सलाह दी.

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